28 अगस्त 2010

प्रेम के लिए जरूरी है ज्ञान से मुक्ति ( Love's knowledge necessary for salvation )

यहां प्रेम सिखाया जा रहा है। और प्रेम को सिखाया कैसे जा सकता है? एक ही काम किया जा सकता है - ज्ञान छीन लिया जाए। चट्टान हट जाए, झरना बह उठे। वही काम यहां चल रहा है। यह अविद्यापीठ है। यह एंटी -यूनिवर्सिटी है।

इस काम को फैलाना है, क्योंकि दुनिया ज्ञान से बहुत बोझिल है। मनुष्य को ज्ञान से मुक्त करवाना है।

पश्चिम के एक विचारक डी. एच. लारेंस ने कहा था :  अगर सौ साल के लिए सारे विश्वविद्यालय बंद हो जाएं तो आदमी फिर से आदमी हो जाए, बात कीमत की है।

लेकिन मैं इस बात के लिए राजी नहीं हूं कि विश्वविद्यालय बंद हो जाएं। मेरी प्रस्तावना दूसरी है। मेरी प्रस्तावना है - जितने विश्वविद्यालय हों, उतने एंटी-युनिवर्सिटी, उतने ही अविद्यापीठ भी हों। विश्वविद्यालय बंद हो जाएं तो कुछ अधिक नहीं हो जाएगा। आदमी इससे बेहतर आदमी होगा फिर भी - आदमी हो जाएगा, जैसे जंगलों के वासी हैं। फिर थाप पड़ेगी। फिर घुंघरू बंधेंगे। फिर लोग नाचेंगे, चांद-तारों के नीचे। फिर लोग प्रेम करेंगे।

मगर इससे भी ऊंची एक जगह है और वह है - विश्वविद्यालय से गुजरना और विश्वविद्यालय ने जो भी दिया है उसे छोड़ देना। वह उससे भी ऊंची जगह है। फिर प्रेम की थाप पड़ती है। फिर घुंघरू बंधते हैं। लेकिन यह ऊंची जगह है, पहली से।

इसको ऐसा समझो तो समझ में आ जाएगा। बुद्ध ने राजमहल छोड़ा, राजपाट छोड़ा, पद-प्रतिष्ठा छोड़ी, भिखारी हो गए। एक तो भिखारी बुद्ध हैं और एक भिखारी पूना की सड़कों पर। तुम किसी को भी पकड़ ले सकते हो- भिखारी को। ये दोनों भिखारी हैं ऊपर से देखने में। लेकिन बुद्ध के भिखारीपन में एक समृद्धि है। बुद्ध ने जान कर छोड़ा। अनुभव से छोड़ा। दूसरा भिखारी सिर्फ दरिद्र है। दोनों के भीतर बड़ा अंतर है। और तुम अगर दोनों की आंखों में झांकोगे तो पता चल जाएगा अंतर। बुद्ध में तुम्हें सम्राट दिखाई पड़ेगा; और भिखारी सिर्फ भिखारी।

इसलिए हमारे पास दो शब्द हैं- भिक्षु और भिखारी । वह हमने फर्क करने के लिए बनाए हैं। दुनिया की किसी भाषा में दो शब्द नहीं हैं- भिक्षु और भिखारी। भिक्षु या भिखारी - एक ही शब्द काफी होता है, क्योंकि दुनिया ने दूसरा अनुभव ही नहीं जाना है। बुद्ध जैसे भिखारी सिर्फ भारत ने जाने; भारत के बाहर किसी ने नहीं जाने। तो हमें एक नया शब्द खोजना पड़ा- ÷भिक्षु'। भिक्षु में बड़ा सम्मान है; भिखारी में बड़ा अपमान है।

भिखारी का इतना ही मतलब है - इस आदमी के पास धन कभी था नहीं; इसने धन कभी जाना नहीं। ÷भिक्षु' का अर्थ है, धन था, धन जाना और जाना कि व्यर्थ है और उसे छोड़+ा। यहां बड़ी ऊंची बात है। इसमें बड़ी गरिमा है।

ऐसा ही मेरा खयाल है। डी. एच. लारेंस से मैं थोड़ी दूर तक राजी, लेकिन मैं इस पक्ष में नहीं हूं कि सारे विश्वविद्यालय बंद हो जाएं। विश्वविद्यालय मजे से रहें; लेकिन इनका मुकाबला भी पैदा हो। बुद्धि के विश्वविद्यालय मजे से रहें; उनकी जरूरत है - दुकानदारी में, काम-काज में, विज्ञान में - उनकी आवश्यकता है। गणित एकदम व्यर्थ नहीं है। लेकिन इनके मुकाबले हृदय के मंदिर भी हों, प्रेम के मंदिर भी हों - जहां सिर्फ ढाई अक्षर प्रेम के पढ़ाए जाते हों; जहां कुछ और न पढ़ाया जाता हो; पढ़ाया-लिखाया गया छीना जाता हो और झपटा जाता हो।

जब कोई आदमी सब जानकर जानता है कि जानना व्यर्थ है - तो वह सिर्फ आदमी नहीं हो जाता; वह सिर्फ आदिवासी नहीं हो जाता। सुकरात को तुम आदिवासी नहीं कहोगे। और आदिवासियों ने कोई सुकरात पैदा नहीं किया है, यह भी खयाल रखना। सुकरात के पैदा होने के लिए एथेंस चाहिए; एथेंस की शिक्षा चाहिए; एथेंस के शिक्षक चाहिए। और एक दिन सुकरात कहता है कि मैं कुछ भी नहीं जानता।

सुकरात ने कहा कि जब मैं युवा था, तो मैं सोचता था कि मैं बहुत कुछ जानता हूं; फिर जब मैं बूढ़ा हुआ तो मैंने जाना कि मैं बहुत कम जानता हूं, बहुत कुछ कहां! इतना जानने को पड़ा है ! मेरे हाथ में क्या है- कुछ भी नहीं है, कुछ कंकड़-पत्थर बीन लिए हैं ! और इतना विराट अपरिचित है अभी ! जरा-सी रोशनी है मेरे हाथ में - चार कदम उसकी ज्योति पड़ती है और सब तरफ गहन अंधकार है ! नहीं, मैं कुछ ज्यादा नहीं जानता; थोड़ा जानता हूं।

और सुकरात ने कहा कि जब मैं बिलकुल मरने के करीब आ गया, तब मुझे पता चला कि वह भी मेरा वहम था कि मैं थोड़ा जानता हूं। मैं कुछ भी नहीं जानता हूं। मैं अज्ञानी हूं।

जिस दिन सुकरात ने यह कहा,  मैं अज्ञानी हूं', उसी दिन डेलफी के मंदिर के देवता ने घोषणा की - सुकरात इस देश का सबसे बड़ा ज्ञानी है। जो लोग डेलफी का मंदिर देखने गए थे, उन्होंने आगे आकर सुकरात को खबर दी कि डेलफी के देवता ने घोषणा की है कि सुकरात इस समय पृथ्वी का सबसे बड़ा ज्ञानी है। आप क्या कहते हैं?

सुकरात ने कहा - जरा देर हो गई। जब मैं जवान था तब कहा होता तो मैं बहुत खुश होता। जब मैं बूढ़ा होने के करीब हो रहा था, तब भी कहा होता, तो भी कुछ प्रसन्नता होती। मगर अब देर हो गई, क्योंकि अब तो मैं जान चुका कि मैं कुछ भी नहीं जानता हूं।

जो यात्री डेलफी के मंदिर से आए थे, वे तो बड़ी बेचैनी में पड़े कि अब क्या करें। डेलफी का देवता कहता है कि सुकरात सबसे बड़ा ज्ञानी है और सुकरात खुद कहता है कि मैं सबसे बड़ा अज्ञानी हूं; मुझसे बड़ा अज्ञानी नहीं। अब हम करें क्या? अब हम मानें किसकी? अगर डेलफी के देवता की मानें कि सबसे बड़ा ज्ञानी है तो फिर इस ज्ञानी की भी माननी ही चाहिए, क्योंकि सबसे बड़ा ज्ञानी है। तब तो मुश्किल हो जाती है कि अगर इस सबसे बड़े ज्ञानी की मानें तो देवता गलत हो जाता है।

वे वापिस गए। उन्होंने डेलफी के देवता को निवेदन किया कि आप कहते हैं, सबसे बड़ा ज्ञानी है सुकरात और हमने सुकरात से पूछा। सुकरात उलटी बात कहता है। अब हम किसकी मानें? सुकरात कहता है - मुझसे बड़ा अज्ञानी नहीं।

डेलफी के देवता ने कहा- इसीलिए तो हमने घोषणा की है कि वह सबसे बड़ा ज्ञानी है। ज्ञान की चरम स्थिति है - ज्ञान से मुक्ति। ज्ञान की आखिरी पराकाष्ठा है- ज्ञान के बोझ को विदा कर देना। फिर निर्मल हो गए। फिर स्वच्छ हुए। फिर विमल हुए। फिर कोरे हुए।

आदिवासी भी कोरा है, लेकिन उसने अभी लिखावट नहीं जानी।

एक छोटा बच्चा, ऐसा समझो, छोटा बच्चा, अभी इसने कोई पाप नहीं किए- लेकिन तुम इसे संत नहीं कह सकते, क्योंकि इसने पाप किए ही नहीं, पाप का रस ही नहीं जाना, पाप का त्याग भी नहीं किया, पाप की व्यर्थता नहीं पहचानी। यह तो सिर्फ भोला है; इसको संत नहीं कह सकते। और चूंकि यह भोला है, इसलिए अभी पूरी संभावना है कि यह पाप करेगा, क्योंकि बिना पाप को किए कोई कब पाप से मुक्त हुआ है ! यह जाएगा बाजार में। यह उतरेगा दुनिया में। यह चोरी, बेईमानियां, सब करेगा। यह अभी भोला है, यह बात सच है। मगर यह भोलापन टिकनेवाला नहीं है, क्योंकि यह भोलापन कमाया नहीं गया। यह तो प्राकृतिक भोलापन है, नैसर्गिक भोलापन है। यह तो नष्ट होने वाला है। यह कुंवारापन, यह ताजगी, जो बच्चे में दिखाई पड़ती है, यह टिकने वाली नहीं। तुम भी जानते हो, सारी दुनिया जानती है कि यह आज नहीं कल दुनिया में जाएगा, जाना ही पड़ेगा। हर बच्चे को जाना पड़ेगा।

और अगर तुम बच्चे को घर में ही रोक लो चहारदीवारियां खड़ी करके, तो तुम उसके हत्यारे हो। क्योंकि वह बच्चा भोला ही नहीं रहेगा, पोला भी हो जाएगा। उसके जीवन में कुछ वजन ही नहीं होगा। उसके जीवन में वजन तो चुनौतियों से आनेवाला है। भटकेगा तो वजन आएगा। जो भटक-भटककर घर लौटता है, वही घर लौटता है। घर में ही जो बैठा रहा, भटका ही नहीं - उसका घर में बैठने का कोई अर्थ नहीं है - उसके भीतर का चित तो भटकता ही रहेगा। वह सोचता ही रहेगा कैसे निकल भागूं !
                                                                                                                                                                                 - ओशो वाणी

नर्मदा का हर कंकड़ शंकर ( Every pebble of Narmada Shankar )

भारतीय संस्कृति में नर्मदा का विशेष महत्व है। जिस प्रकार उत्तर भारत में गंगा-यमुना की महिमा है, उसी तरह मध्य भारत में नर्मदा जन-जन की आस्था से जुडी हुई है। स्कंदपुराण के रेवाखंड में नर्मदा के माहात्म्य और इसके तटवर्ती तीर्थो का वर्णन है।
[अवतरण की कथा] स्कंदपुराण के रेवाखण्ड के अनुसार, प्राचीनकाल में चंद्रवंश में हिरण्यतेजा एक प्रसिद्ध राजर्षि [ऋषितुल्य राजा] हुए। उन्होंने पितरों की मुक्ति और भूलोक के कल्याण के लिए नर्मदा को पृथ्वी पर लाने का निश्चय किया। राजर्षि ने कठोर तपस्या कर भगवान शंकर को प्रसन्न कर लिया। उनके तप से प्रसन्न होकर महादेव ने उन्हें नर्मदा के पृथ्वी पर अवतरण का वरदान दे दिया। इसके बाद नर्मदा धरा पर पधारीं।

राजा हिरण्यतेजा ने नर्मदा में विधिपूर्वक स्नान कर अपने पितरों का तर्पण, श्राद्ध और पिंडदान किया। यह कथा आदिकल्प के सत्ययुग की है, जबकि कुछ कथाओं में नर्मदा को पृथ्वी पर लाने का श्रेय राजा पुरुकुत्सु को दिया जाता है। [आध्यात्मिक महत्व] पद्मपुराण के अनुसार, हरिद्वार में गंगा, कुरुक्षेत्र में सरस्वती और ब्रजमंडल में यमुना पुण्यमयी होती हैं, लेकिन नर्मदा हर जगह पुण्यदायिनी है। मान्यता है कि सरस्वती का जल तीन दिन में, यमुना का एक सप्ताह में और गंगा का जल स्पर्श करते ही पवित्र कर देता है, लेकिन नर्मदा के जल का दर्शन करने मात्र से व्यक्ति पवित्र हो जाता है।

ऋषि-मुनि कहते हैं कि नर्मदा में स्नान करने, गोता लगाने, जल पीने, नर्मदा का स्मरण और नाम जपने से अनेक जन्मों का पाप तत्काल नष्ट हो जाता है। जहां नर्मदा भगवान शिव के मंदिर के समीप विद्यमान है [ओंकारेश्वर], वहां स्नान का फल एक लाख गंगा स्नान के बराबर होता है। इसके तट पर पूजन, हवन, यज्ञ, दान आदि शुभ कर्म करने पर उनसे कई गुना पुण्य उपलब्ध होता है। इसलिए नर्मदा सदा से तपस्वियों की प्रिय रही है। गंगा-यमुना की तरह नर्मदा को श्रद्धालु केवल नदी नहीं, बल्कि साक्षात देवी मानते हैं।

आस्तिकजन इन्हें नर्मदा माता कहकर संबोधित करते हैं। भक्तगण बडी श्रद्धा के साथ इनकी परिक्रमा करते हैं। आज के प्रदूषण-प्रधान युग में नर्मदा का जल अब भी अन्य नदियों की अपेक्षा ज्यादा स्वच्छ और निर्मल है। [साक्षात् शिव हैं नर्मदेश्वर] कहावत प्रसिद्ध है कि नर्मदा का हर कंकड शंकर। नर्मदा के पत्थर के शिवलिंग नर्मदेश्वर के नाम से लोक विख्यात हैं। शास्त्रों में नर्मदा में पाए जाने वाले नर्मदेश्वर को बाणलिंग भी कहा गया है। इसकी सबसे बडी विशेषता यह है कि नर्मदेश्वर को स्थापित करते समय इसमें प्राण-प्रतिष्ठा करने की आवश्यकता नहीं पडती। नर्मदेश्वर [बाणलिंग] को साक्षात् शिव माना जाता है।

सनातन धर्म का सामान्य सिद्धांत है कि शिवलिंग पर चढाई गई सामग्री निर्माल्य होने के कारण अग्राह्य होती है। शिवलिंग पर चढाए गए फल-फूल, मिठाई आदि को ग्रहण नहीं किया जाता, लेकिन नर्मदेश्वर के संदर्भ में यह अपवाद है। शिवपुराण के अनुसार नर्मदेश्वर शिवलिंग पर चढाया गया भोग प्रसाद के रूप में ग्रहण किया जाना चाहिए। नर्मदेश्वर को बिना किसी अनुष्ठान के सीधे पूजागृह में रखकर पूजन भी प्रारंभ किया जा सकता है।

कल्याण पत्रिका के अनुसार, वर्तमान विश्वेश्वर [काशी-विश्वनाथ] नर्मदेश्व रही हैं। यह गौरव केवल नर्मदा को ही है कि उसका हर कंकड शंकर के रूप में पूजा जाता है।

सेक्स में झिझक कैसी ? ( What kind of hesitation in sex? )


री एक परिचित, जिन्हें मैं 'भाभी' कहती हूँ, से 'सेक्स' को लेकर कुछ चर्चा चल रही थी। कुछ शर्म और झिझक के साथ उन्होंने बताता, "तुम्हे क्या बताऊँ, मैं उन के सामने कभी निर्वस्त नहीं हुई। 'वे' कोशिश तो करते हैं, लेकिन मैं..."

उन की बातों को सुन कर मुझे बड़ी हैरानी हुई, क्योंकि उन के विवाह को 10 वर्ष हो गए हैं और उन के 2 बच्चे भी हैं। जब वे उपरोक्त बातें बता रही थीं, तब उन के चेहरे के भाव और स्वर से ऐसा लग रहा था की झिझक और शर्म से वे खुद भी परेशान हैं।

मुझे लगता है, यह समस्या किसी एक 'भाभी' को न हो कर कई महिलाओं की है।

भारतीय परिवेश में शहरों को छोड़ दें तो कस्बों में जो स्त्री-पुरुष रहते हैं, उन में यौन संबंधों को ले कर झिझक और शर्म बनी हुई है। पढ़े लिखे पति-पत्नी भी इस संबंध में खुले विचार नहीं रखते।

वैसे भी पतियों की मानसिकता ऐसी है की यदि स्त्री पहल करे तो भी पुरुष आश्चर्यचकित रह जाता है और कई बार तो पति पत्नी पर शक भी करने लगा है की कहीं वह किसी से....

हम भी नहीं कहते की बिलकुल बेशर्म हो जाना चाहिए, पर अपनी भूमिका के साथ तो ईमानदारी निभानी ही चाहिए।

आसनों से परहेज क्यों
विवाह के बरसों बाद भी पति-पत्नी एक-दूसरे के सामने नग्न होने में झिझकते हैं। यही कारण है की वे अंधेर में संबंध बनाना पसंद करते हैं। यह शर्म और झिझक इस कदर बाधा उत्पन्न करती है की वे पूरा-पूरा आनंद नहीं उठा पाते। कई बार तो रोशनी में स्त्रियाँ सिमटी हुई रहती हैं, तो पति बेकाबू हो जाते हैं या झगड़े पर उतारू हो जाते हैं, क्योंकि उन का यह मानना होता है की मैं तुम्हारा पति हूँ तो मुझ से शर्म कैसी ?

शर्म और झिझक के अलावा कई अन्य बातें भी संबंध के दौरान आग में घी का काम कर बाधा उत्पन्न करती हैं।

सेक्स के विषय में लोगों में गलत धारणाएं व्याप्त होने के कारण वे उस का आनंद नहीं ले पाते। विशेषरूप से स्त्रियों में यह आम धारणा बनी हुई है की सेक्स घ्रणित कार्य है। कहने का मतलब यह है की पत्नी संबंध तो बनाती है, लेकिन यदि उसे आनंद न मिले तो भी वह आनंद की मांग नहीं करती, जिस से आगे चल कर उसे शारीरिक और मानसिक यंत्रणा भोगनी पड़ती है। कई बार पुरूष भी बेबुनियाद बातों को आदर्श क रूप दे कर सेक्स सुख से वंचित रह जाते हैं। मसलन, वे उन आसनों का प्रयोग नहीं करते, जिन में पत्नी की स्थित ऊपर की ओर हो, क्योंकि उन के अंतर्मन में यह बात बैठी है की अगर वे ऐसे आसनों का पयोग करेंगे तो उन के 'दर्जे' में गिरावट आ जाएगी, जबकि सही पति वही है, जो खुद तो सुख पाए ही, पत्नी को भी सुख मिले, इस का भी ख़याल रखे।

इस के अलावा सेक्स के संबंध में सुनीसुनाई बातें भी डर उत्पन्न कर शारीरिक संबंध में बाधा उत्पन्न करती हैं. जैसे मुख मैथुन को गलत मानना।

गर्भनिरोधक उपाय की उचित जानकारी न होने के कारण गर्भ ठहरने का खतरा भी संबंध में बाधा उत्पन्न कर देता है। नए आसनों को अपनाने में हिचक के कारण भी बाधा उत्पन्न होती है। इन सब से हट कर एक अन्य बात, मानसिक तनाव भी संबंध में उत्पन्न करता है।

झिझक से बचें
चुकीं स्त्रियाँ सेक्स सुख को अनैतिक मानती हैं, इसलिए वे सेक्स सुख की इच्छा को दबाते हुए अनिच्छा जाहिर करती हैं। जब पति संबंध में पहल करता है, तब यदि पत्नी शर्मवश अपनी ओर से कोई क्रिया नहीं करती, तो पति समझ लेता है की उस की पत्नी ठंडी औरत है। इस का नतीजा यह होता है की पति-पत्नी के संबंधों में न चाहते हुए भी तनाव उत्पन्न हो जाता है।

आप निरर्थक आदर्शों और गलत धारणाओं के कारण सेक्स सुख में बाधा न उत्पन्न होने दें। यदि बाधा उत्पन्न हो भी जाए तो अपने जीवनसाथी से खुल कर बातें करें। आप समय पड़ने पर इस विषय में अपने मित्रों और सहेलियों से भी बात कर सकते हैं। क्योंकि उपरोक्त बाधाओं को वार्तालाप के द्वारा ही दूर कर पाना सम्भव है। यदि इन से भी बाधाएं दूर न हों तो यौन विशेषज्ञ और मनोरोग विशेषज्ञ की सलाह अवश्य लें। यदि आप ऐसा करने में झिझक महसूस करेंगे तो आप निश्चित ही रिश्ते के बिखराव को आमंत्रण देंगे। इसलिए समझदारी इसी में है की आप समय से पहले सचेत हो जाएं।
                                                                                                                                                                             - डा. विभा सिंह

27 अगस्त 2010

किरण बेदी ( Kiran Bedi )


स्टम सुधरने के लिये पूरी ईमानदारी से काम किया लेकिन अब सिस्टम से बाहर रह कर काम करना चाहती हूँ," पुलिस को अलविदा कह चुकी देश की पहली महिला आईपीस अधिकारी किरण बेदी के ये शब्द बयान कर देते हैं की किस तरह भ्रष्ट व्यवस्था से नाखुश एक ईमानदार और काबिल अधिकारी को अपना अलग रास्ता चुनना पड़ता है।

कुछ वर्ष पहले पुलिस रिसर्च और डेवलपमेंट विभाग के प्रमुख पद पर कार्यरत किरण बेदी का दिल्ली पुलिस कमिशनर बनना तय था।

दृढ संकल्प
सन 2007 में उन्होंने पुलिस रिसर्च एंड डेवलपमेंट विभाग के प्रमुख पद से इस्तीफा दे कर जाहिर किया की व्यवस्था के नाम पर जो दोगलापन देखने में आ रहा है उससे नुकसान तो देश का ही हो रहा हो।

शायद किरण बेदी का अपराध यह रहा की वे ईमानदारी से काम करने में यकीन रखती हैं। वे कैदियों को सुधारने, उन्हें किसी लायक बनाने और अनुशासन कायम रखने के प्रयासों में लगी रहीं किन्तु भूल गईं की स्वार्थ सिद्धि को ही अपना परम कर्त्तव्य मानने वाले नेताओं के लिये यह बात मायने नहीं रखती।

9 जून, 1949 में अमृतसर में जन्मी इस निडर और सशक्त नारी के कैरियर की शुरूआत हुई 1970 में, अमृतसर के खालसा कालेज फार वूमेंस में पढ़ाने से।

इस के बाद 1972 में बृज बेदी से इन का विवाह हुआ और इसी वर्ष ये भारतीय पुलिस सेवा में सामिल हुईं।

नई दिशा
मैग्सेसे पुरस्कार से सम्मानित बेदी को तिहाड़ जेल में उन के अहम प्रयासों के लिये भी जाना जाता है।

आईपीएस अधिकारी के यादगार कैरियर के बाद स्टार प्लस पर दरसल, 'आप की कचहरी' में किरण बेदी एक बार फिर जनता से रूबरू हुईं। समाजसेवा का दामन इन्होने कभी नहीं छोड़ा इस शो के माध्यम से भी वे लोगों की निजी समस्याओं को सुलझाने का ही कार्य करती रहीं। 'आप की कचहरी का कांसेप्ट ही कुछ ऐसा था, जो इन के कैरियर के सफ़र से मेल खाता है।

इन्होने भारत में 2 गैरसरकारी संगठनों - 'नवज्योति' और 'द विजन फाउंडेशन' की स्थापना की जिन के माध्यम से ये गरीब बच्चों को शिक्षा, महिलाओं को वोकेशनल ट्रेनिंग, गरीबों के स्वास्थ्य की देखभाल, कैदियों के जीवन को नई दिशा देना और उन्हें जीविका कमाने के लिए समर्थ बनाने का प्रयास करना आदि कार्य करती हैं।

26 अगस्त 2010

सुनीता नारायण ( Suneeta Narayan )


कृति  से प्यार करने वाली सुनीता नारायण को इंग्लैण्ड की पत्रिका ने दुनिया भर में मौजूद सर्वश्रेष्ठ 100 बुद्धिजीवियों की श्रेणी में शामिल किया है। पर्यावरणविद  और राजनीतिक कार्यकर्ता सुनीता नारायण समाज की हरित विकास की समर्थक हैं। वे मानती हैं की वातावरण में फैलती अशुद्धता प्रकृति और वातावरण की होती दुर्दशा से सब से ज्यादा नुक्सान महिलाओं, बच्चों और गरीबों को होता है। उन का यह भी मानना है की वातावरण की सुरक्षा के लिये जागरूकता फैलाने की जिम्मेदारी महिलाएं ज्यादा सफलतापूर्वक उठा सकती हैं। उन की इस कथनी का उदहारण वे खुद हैं। दशकों से वे पर्यावरण और समाज की मूलभूत समस्याओं के लिये जागरूकता फैलाने का काम कर रही हैं। वर्ष 2001 में उन्हें इसी संस्थान का निदेशन बना दिया गया था। उन्होंने समाज के उत्थान के लिये पानी से जुडी समस्याओं, प्रकृति और वातावरण से जुड़े मुद्दों आदि पर काम किया है।

हरित विकास की समर्थक
1990 के शुरूआती दिनों में उन्होंने कई वैश्विक पर्यावरण मुद्दों पर गहन शोध और वकालत करना शुरू कर दिया। वर्ष 1985 से ही वे कई पत्रपत्रिकाओं में लिख कर जागरूकता फैलाने के काम में लगी रहीं।

उन के बेहतरीन कार्यों के प्रतिफल में वर्ष 2005 में उन्हें भारत सरकार द्वारा पदमश्री से सम्मानित किया गया। इसी वर्ष उन्हें स्टाकहोम वाटर प्राइज और वर्ष 2004 में मीडिया फाउंडेशन चमेली देवी अवार्ड प्रदान किया गया। अपने कार्यों से मिले इन अवार्डों से संतुष्ट होकर उन्होंने इस ओर काम करना छोड़ा नहीं, न ही उन्होंने इस ओर कोई सुस्ती बरी। उन की जागरूकता अभियान का दायरा प्रतिवर्ष बढ़ता ही रहा है। वे पर्यावरण से जुड़े मुद्दों के अलावा नक्सलवाद, राजनीतिक भ्रष्टाचार, बाघ व पेड़ संरक्षण और अन्य सामाजिक विषयों पर अपने विचार व्यक्त करने लगी हैं। इस के लिये उन्होंने प्रिंट मीडिया का सहारा लिया है। देश के ज्यादातर पढ़े जाने वाले अखबारों में उन के कालम थोड़े-थोड़े अंतराल पर आते रहते हैं। उन का मानना है की जागरूकता फैलाने के लिये किसी सशक्त माध्यम का इस्तेमाल होना चाहिए। जो आम लोगों तक आप की बात पहुंचा सके।

इतनी ख़ास होने पर भी जब आप सुनीता को सामने से देखेंगे तो उन्हें सादे विचार और व्यवहार के साथ शालीन कपड़ों और चेहरे पर तेज आभा के साथ पाएंगे। उन का व्यक्तित्व न केवन उन के लगभग 100  कर्मचारियों वाले संस्थान सेंटर फॉर साइंस एंड एन्वायरमेंट के लोगों के लिये प्रेरणास्त्रोत है बल्कि युवा पीढी और महिलाओं के लिए उन का सम्पूर्ण अस्तित्व प्रेरणादायक है।

25 अगस्त 2010

रितु कुमार ( Ritu Kumar )


तु कुमार ने बुटीक कल्चर को आगे बढ़ाया। वे ऐसी पहली महिला डिजाइनर हैं, जिन्होंने भारतीय संस्कृति  को नए रूप में स्थापित कर अन्तराष्ट्रीय प्रसिद्धि पाई। उन के कपडे उच्चवर्ग के साथ-साथ मध्य वर्ग के लिये भी बने होते हैं। इन कपड़ों में वे रेशम, चमडा और कपास का उपयोग अधिक करती हैं। उन की इंब्राइडरी पारंपरिक होती है।

पंजाब के अमृतसर में जन्मी रितु कुमार आज फैशन डिजाइनिंग की दुनिया में एक आइकोन हैं। स्वभाव से नर्म, हंसमुख और असीम धैर्य की धनी रितु कुमार ने दिल्ली के लेडी इर्विन कालेज से स्नातक की उपाधि प्राप्त कर अमेरिका में उच्च शिक्षा पूरी की।

1960 में उन्होंने कोलकाता के एक छोटे शहर में 4 हैण्ड प्रिंटर्स और 2 ब्लाक्स की सहायता से यह उधोग मात्रा 50 हजारे रूपये में शुरू किया। तब उन्हें पता नहीं था की यह उघोग इतना आगे बढेगा और उन्हें इतनी कामयाबी मिलेगी। आज पूरे भारत में उन की 34 और अमेरिका में 1 शौप है।

रितु भारी परम्परा और संस्कृति को ध्यान में रख कर कपडे बनाती हैं। इसलिए उन के बनाए हुए 'ईवनिंग गाउन' अन्तराष्ट्रीय प्रतियोगताओं में हमेशा इनाम के हकदार होते हैं। 2000 में उन्हें किंगफिशर ग्रुप ऑफ इंडस्ट्रीज ने लाइफ टाइम अवार्ड से नवाजा।

धीरज और मेहनत
2002 में उन का बेटा अमरीश भी उन के साथ जुडा और एक नए ब्रांड की स्थापना हुई, जो 'लेबल' नाम से प्रसिद्द हुआ. यह ब्रांड उन नौजवानों के लिये है, जिन के पास पैसे कम हैं, पर वे फैशन के शौक़ीन हैं। इस के अंतर्गत कपडे, रंग, डिजाइन और आधुनिकता को ध्यान में रख कर बनाए जाते हैं। इतना ही नहीं, उन्होंने कुछ नामचीन अभिनेतियों के परिधान भी तैयार किए हैं, जिन में एश्वर्या राय बच्चन, सुष्मिता सेन, लारा दत्ता, प्रियंका चोपड़ा, दीया मिर्जा, डाइना हेडेन, सेलीना जेटली, तनुश्री दत्ता और नेहा धूपिया आदि हैं।

रितु कुमार की किताब 'कास्ट्यूम्स एंड टैक्सटाइल्स आँफ रायल इंडिया' 1999 में प्रकाशित हुई, जिस में उन की बेहतरीन डिजाइनों और आर्ट के नमूने उपलब्ध हैं। इस के अलावा 'इंदिरा गांधी प्रियदर्शिनी अवार्ड' भी उन्हें मिल चुका है।

उन का कहना है की आज की महिलाएं मानसिक रूप से काफी परिपक्व हैं। यदि उन्हें अच्छा मौक़ा मिले और प्रशिक्षित किया जाए तो वे बहुत जल्दी आगे बढ़ती हैं।

आज की बढ़ती तकनीक भी फैशन को आगे लाई है, पर इस में जरूरत है धीरज और मेहनत की, जो हर महिला को कामयाब बना सकती है। 

24 अगस्त 2010

महाभारत - अर्जुन को दिव्यास्त्रों की प्राप्ति ( The Mahabharata - Arjuna achieve Diwyastroan )

पाण्डवों के वन जाने का समाचार जब द्रुपद, वृष्णि, अन्धक आदि सगे सम्बंधियों को मिला तो उनके क्रोध का पारावार न रहा। वे सभी राजागण काम्यक वन में पाण्डवों से भेंट करने आये, उनके साथ वहाँ श्री कृष्ण भी पधारे। उन्होंने एक साथ मिल कर कौरवों पर आक्रमण कर देने की योजना बनाई किन्तु युधिष्ठिर ने उन्हें समझाया, "हे नरेशों! कौरवों ने तेरह वर्ष पश्चात् हमें अपना राज्य लौटा देने का वचन दिया है, अतएव आप लोगों का कौरवों पर इस प्रकार आक्रमण करना कदापि उचित नहीं है।" युधिष्ठिर के वचनों को सुन कर उन्होंने कौरवों पर आक्रमण का विचार त्याग दिया, किन्तु श्री कृष्ण ने प्रतिज्ञा की कि वे भीमसेन और अर्जुन के द्वारा कौरवों का नाश करवा के ही रहेंगे। उन सबके प्रस्थान के के बाद उनसे मिलने के लिये वेदव्यास आये। पाण्डवों ने उन्हें यथोचित सम्मान तथा उच्चासन प्रदान किया वेदव्यास जी ने पाण्डवों के कष्ट निवारणार्थ उन्हें प्रति-स्मृति नामक विद्या सिखाई। एक दिन मार्कणडेय ऋषि भी पाण्डवों के यहाँ पधारे और उनके द्वारा किये गये आदर-सत्कार से प्रसन्न होकर उन्हें अपना राज्य वापस पाने का आशीर्वाद दिया।

इस प्रकार ऋषि-मुनियों के आशीर्वाद एवं वरदान से पाण्डवों का आत्मबल बढ़ता गया। बड़े भाई युधिष्ठिर के कारण भीम और अर्जुन शान्त थे किन्तु कौरवों का वध करने के अपने संकल्प को वे एक पल के लिये भी नहीं भुलाते थे और अनेक प्रकार से अपनी शक्ति और संगठन को बढ़ाने के प्रयास में जुटे रहते थे। पांचाली भी भरी सभा में किये गये अपने अपमान को एक क्षण के लिये भी विस्मृत नहीं कर पा रही थीं और भीम और अर्जुन के क्रोधाग्नि में घृत डालने का कार्य करती रहती थीं।

एक बार वीरवर अर्जुन उत्तराखंड के पर्वतों को पार करते हुये एक अपूर्व सुन्दर वन में जा पहुँचे। वहाँ के शान्त वातावरण में वे भगवान की शंकर की तपस्या करने लगे। उनकी तपस्या की परीक्षा लेने के लिये भगवान शंकर एक भील का वेष धारण कर उस वन में आये। वहाँ पर आने पर भील रूपी शिव जी ने देखा कि एक दैत्य शूकर का रूप धारण कर तपस्यारत अर्जुन की घात में है। शिव जी ने उस दैत्य पर अपना बाण छोड़ दिया। जिस समय शंकर भगवान ने दैत्य को देखकर बाण छोड़ा उसी समय अर्जुन की तपस्या टूटी और दैत्य पर उनकी दृष्टि पड़ी। उन्होंने भी अपना गाण्डीव धनुष उठा कर उस पर बाण छोड़ दिया। शूकर को दोनों बाण एक साथ लगे और उसके प्राण निकल गये।

शूकर के मर जाने पर भीलरूपी शिव जी और अर्जुन दोनों ही शूकर को अपने बाण से मरा होने का दावा करने लगे। दोनों के मध्य विवाद बढ़ता गया और विवाद ने युद्ध का रूप धारण कर लिया। अर्जुन निरन्तर भील पर गाण्डीव से बाणों की वर्षा करते रहे किन्तु उनके बाण भील के शरीर से टकरा-टकरा कर टूटते रहे और भील शान्त खड़े हुये मुस्कुराता रहा। अन्त में उनकी तरकश के सारे बाण समाप्त हो गये। इस पर अर्जुन ने भील पर अपनी तलवार से आक्रमण कर दिया। अर्जुन की तलवार भी भील के शरीर से टकरा कर दो टुकड़े हो गई। अब अर्जुन क्रोधित होकर भील से मल्ल युद्ध करने लगे। मल्ल युद्ध में भी अर्जुन भील के प्रहार से मूर्छित हो गये।

थोड़ी देर पश्चात् जब अर्जुन की मूर्छा टूटी तो उन्होंने देखा कि भील अब भी वहीं खड़े मुस्कुरा रहा है। भील की शक्ति देख कर अर्जुन को अत्यन्त आश्चर्य हुआ और उन्होंने भील को मारने की शक्ति प्राप्त करने के लिये शिव मूर्ति पर पुष्पमाला डाली, किन्तु अर्जुन ने देखा कि वह माला शिव मूर्ति पर पड़ने के स्थान पर भील के कण्ठ में चली गई। इससे अर्जुन समझ गये कि भगवान शंकर ही भील का रूप धारण करके वहाँ उपस्थित हुये हैं। अर्जुन शंकर जी के चरणों में गिर पड़े। भगवान शंकर ने अपना असली रूप धारण कर लिया और अर्जुन से कहा, "हे अर्जुन! मैं तुम्हारी तपस्या और पराक्रम से अति प्रसन्न हूँ और तुम्हें पशुपत्यास्त्र प्रदान करता हूँ।" भगवान शंकर अर्जुन को पशुपत्यास्त्र प्रदान कर अन्तर्ध्यान हो गये। उसके पश्चात् वहाँ पर वरुण, यम, कुबेर, गन्धर्व और इन्द्र अपने-अपने वाहनों पर सवार हो कर आ गये। अर्जुन ने सभी देवताओं की विधिवत पूजा की। यह देख कर यमराज ने कहा, "अर्जुन! तुम नर के अवतार हो तथा श्री कृष्ण नारायण के अवतार हैं। तुम दोनों मिल कर अब पृथ्वी का भार हल्का करो।" इस प्रकार सभी देवताओं ने अर्जुन को आशीर्वाद और विभिन्न प्रकार के दिव्य एवं अलौकिक अस्त्र-शस्त्र प्रदान कर अपने-अपने लोकों को चले गये।

22 अगस्त 2010

प्यार का इंटरव्यू ( Interview of Love )


पनी बचपन की सहेली सावित्री से फोन पर बातें करने के बाद कौशल्या ने अपने बेटे विवेक से बड़े उत्साहित अंदाज में उस की शादी का जिक्र छेड़ा.
" तेरी शादी मैं ने पक्की कर दी है, "
कौशल्या ने चौकाने वाले अंदाज में वार्तालाप आरम्भ किया.
" कब ? कहाँ ? किस से ? " सोफे पर बैठा विवेक उछल  कर खडा हो गया.
" यों मेमने की तरह मत  कूद. तुम्हें अच्छी तरह से पता है की मैं ने तुम्हारा रिश्ता किस से पक्का किया होगा."
" सावित्री आंटी की बेटी पूनम से? "
" क्या उस पूनम से, जिसे मैं ने कभी देखा नहीं है?. "
" देखा कैसे नहीं है. अरे, बचपन में तुम दोनों खूब साथ खेले और झगड़े हो. "
" माँ, इस सारी बात को हंसीमजाक में मत लो. बड़े होने के बाद हम कभी मिले नहीं हैं. फिर हमारी शादी कैसे तय हो सकती है? "

" तुझे याद नहीं, पर करीब 5 साल पहले तुम पूनम से एक शादी में मिले थे. खैर, वह लडकी लाखों में एक है. फिर उस की माँ से मैं ने बरसों पहले वादा किया था की पूनम को अपने बेटे की बहू बना कर लाऊंगी. मैं अपने वचन से मुकरना नहीं चाहती हूँ, मेरे लाल, " कौशल्या ने अपनी बात मनवाने के लिये भावुकता का सहारा लिया.
" माँ, शादी जिन्दगी भर का रिश्ता है और बिना जानेपहचाने मैं कैसे किसी लड़की से शादी करने को 'हाँ' कह सकता हूँ? "
विवेक ने चिढ़े अंदाज में विरोध प्रकट किया.
" अरे, तो उस से जानपहचान कर ले न. "
" कैसे? "
" वह मेरठ में होस्टल में रह कर पढ़ रही है. दिल्ली से 2 घंटे का रास्ता है. जा कर इस रविवार को पूनम से मिला आ. "
" ठीक है. मैं उस का इंटरव्यू ले कर आता हूँ. अगर वह मुझे पसंद नहीं आई तो तुम अपनी जिद छोड़ देना. "
" वह तुझे जरूर पसंद आएगी. "
'देखता हूँ, ' मन ही मन पूनम को रिजेक्ट करने की ठान कर विवेक वहां से उठ कर अपने कमरे में आ गया.

वेक पूनम का इंटरव्यू लेना चाहता है, यह बात कौशल्या से सावित्री तक और फिर सावित्री ने उस की बेटी पूनम तक फोन के माध्यम से पहुँची.
" वह कोई मुझे नौकरी  दे  रहा है, जो मेरा इंटरव्यू लेगा, " पूनम कौशिक ने अपनी हमनाम सहेली पूनम गुप्ता के सामने अपना गुस्सा प्रकट किया, "इस घमंडी विवेक से मेरा मिलने का बिलकुल मन नहीं है. "
" लेकिन अपनी माँ की जिद के कारण उस से मिलना तो पडेगा ही तुझे, " पूनम गुप्ता ने नकली सहानुभूति प्रकट की.
" यही तो मेरी मजबूरी है. "
" यह तो तेरी सिर्फ पहली मजबूरी है, "
पूनम गुप्ता ने इस बार उसे शरारती अंदाज में छेड़ा.
" क्या मतलब है तेरी इस बात का ? "
पूनम कौशिक चौंकी.
" माई डियर पूनम, यह मत भूल की दिल ही दिल में तू पिछले 5 सालों से उसे चाहती है. उस शादी में हुई मुलाक़ात से पैदा हुई प्रेम की भावनाएं 5 साल के समय में कमजोर नहीं पडी हैं. "
" ऐसी कोई बात मेरे दिल में नहीं है," पूनम कौशिक के इस इनकार का झूठ  उस के गुलाबी हो चले गालों से साफ़ जाहिर हुआ.
" फिक्र करने की कोई बात नहीं है, मेरी जान. तू इंटरव्यू में जरूर पास हो जाएगी. तेरे सपनों का शहजादा तुझे मिल जाएगा, " पूनम गुप्ता ने उसे फिर छेड़ा, तो उस की सहेली का गुस्सा फिर से भड़क उठा
" यह 'इंटरव्यू' शब्द मेरे दिल में कांटे सा चुभ रहा है. वह घमंडी जीवनसाथी ढूँढने आ रहा है या फायदेनुकसान का सौदा करने ?
मैं जरूर बताऊंगी उसे की इंटरव्यू कैसे लिया जाता है, " पूनम कौशिक अपनी सहेली के सामने काफी देर तक उबलने के बाद भी शांत नहीं हुई थी.
रविवार की सुबह 10 बजे के करीब विवेक पूनम कौशिक के होस्टल के गेस्टरूम में बैठा था, जब 2  खूबसूरत युवतियां उस से मिलने आईं. एक ने जींस और लाल टॉप पहन रखा था और दूसरी ने हरे रंग का सूट.

ड़े हो कर उन का स्वागत करते हुए विवेक ने उन की मुस्कराती नमस्ते का जवाब बड़े गंभीर अंदाज में दिया. इन दोनों के बैठने के बाद वह उन के सामने बैठ गया.
कुछ देर की बेचैनी भरी खामोशी के बाद विवेक ने ही वार्तालाप आरम्भ किया, " आप दोनों में से पूनम कौन है ? "
" यह है, " सूट वाली ने अपनी सहेली की तरफ हँसते हुए इशारा किया.
" यह भी है, " जींस वाली लड़की शरारती अंदाज में मुस्कराई.
" क्या आप दोनों पूनम हैं ? " विवेक उलझन का शिकार बन गया.
" हम जूठ क्यों बोलेंगी ? " जींस वाले के इस जवाब पर दोनों सहेलियां अचानक हंसने लगीं, तो विवेक की आँखों में बेचैनी के भाव उभरे.
" जी, मैं सावित्री आंटी की बेटी से मिलने आया हूँ. "
" हम दोनों ही उन की बेटियाँ हैं,
इंजीनियर साहब. आप हम दोनों का इंटरव्यू लीजिये. हम में से जो पसंद आए, उसे चुन लेना. अगर 'वैराइटी' उपलब्ध हो तो चुनने का मजा बढ़ नहीं जाएगा ? " हरे सूट वाली  ने दोस्ताना लहजे में सवाल पूछा.
" हम दोनों का एकसाथ इंटरव्यू लेने में आप को कोई एतराज या परेशानी है ? " जींस वाली लडकी ने बड़े भोलेपन से पूछा.
" नहीं, पर सावित्री आंटी की असली बेटी की अगर पहचान... "
" जनाब, इस असलीनाकली के चक्कर को गोली मारिये और इंटरव्यू शुरू कीजिये, "
जींस वाली बड़ी अदा से तन कर सीधी बैठ गई.
" आप हम दोनों के बारे में जो भी जानना चाहें, वह बेधडक पूछें. शादी के मार्केट में हमें बिकने और आप को खरीदने का अनुभव करने का यह अच्छा अवसर है, " सूट वाली की आवाज में व्यंग का कोई भाव मौजूद नहीं था.
" मैं यहाँ कुछ खरीदने नहीं आया हूँ, "
विवेक कुछ नाराज और परेशान सा नजर आया.

क यूं, सर. झूठा ही सही, पर हमें मानसम्मान का एहसास कराने के लिये हमारे दिलों से निकला 'धन्यवाद' स्वीकार करें. "
" मुझे ऐसा क्यों लग रहा है की आप दोनों मेरा मजाक उड़ा रही हैं, " माथे पर बल डाल कर विवेक ने उन दोनों को घूरा.
" तौबा, तौबा, " जींस वाले ने अपने कान पकडे.
" हमारी ऐसी मजाल कैसे हो सकती है, इंजीनियर साहब ? हम इस इंटरव्यू के प्रति पूरी तरह से गंभीर हैं और दिल से चाहती हैं की आप यहाँ से खाली हाथ न लौटें, " सूट वाली ने गंभीर नजर आने की मजाकिया कोशिश शुरू की तो विवेक मुस्कराए बिना नहीं रह सका.
" अरे, इंजीनियर साहब, खुश नजर आ रहे हैं. मौके का फायदा उठा और ज़रा मेरे गुणों का बखान कर मेरी मार्केट वैल्यू बढ़ाना, " जींस वाले ने अपनी सहेली के पेट में उंगली घुसा कर प्रोत्साहित किया.
" मेरी सहेली की खूबसूरती पर कविता लिखने वाले मजनुओं की हमारे कालेज में कोई कमी नहीं है, सर, " सूट वाले ने अपनी सहेली की तारीफ़ नाटकीय स्वर में शुरू की, " उन्हें अपनी उँगलियों पर नाचने के साथसाथ खुद भी बढ़िया नाचती है. आप ने कोयल की कूक सुनी है ? "
" हाँ. "
" बस, वैसी ही मीठी आवाज है इस की. इसे चुनिए और जिन्दगी भर संगीत और नृत्य का आनंद घर बैठे उठाइए. "
" यह कोयल की तरह से कूकती है ? "
विवेक मुस्कराया.
" बिलकुल. "
" मैं इन से शादी के लिये 'हाँ' तो कर दूं, पर इन्हें बेकार के कष्ट में नहीं डालना चाहता हूँ. "
" किस कष्ट की बात कर रहे हैं आप ? "
" कोयल की कूक पास के बाग़ में लगे ऊंचे पेड़ों की तरफ से आती है तो मन खुश हो जाता है. अब रोज सुबह आप की सहेली को कभी इस पेड़ तो कभी उस पेड़ पर चढ़ कर कूकना पडेगा, तो.... बात कष्ट देने वाली है न ? " उस की मजाक उड़ाने वाली बात सुन कर दूं सहेलियों ने तरह तरह के सादे से मुंह बनाए तो विवेक खिलखिला कर हंसा.
" मैं 'इंटरव्यू' की गंभीरता को बनाए रखने के लिये मुद्दे की बात फिर से आगे बढ़ाती हूँ, " जींस वाली लड़की ने नकली गुस्सा प्रदर्शित करते हुए विवेक को घूरा और कहा, " मेरी सहेली कालेज की पी.टी. उषा है. यह इतना तेज दौड़ती है की आज तक कोई भी युवक इसे अपने प्रेमजाल में फांस नहीं सका है. उम्दा खाना बनाने का शौक है. खाती भी शौक से है, पर दुबलीपताली बने रहने की खातिर अक्सर जानबूझ कर खाना जला देती है. इसे चुनिए और जिन्दगी भर चुस्तदुरूस्त बने रहने की आजीवन चलने वाली गारंटी पायें. "
" शादी हो जाने के बाद अगर यह अन्य लड़कियों की तरह मोटी होती चली गई, तो मैं क्या करूंगा ? " पूरे मूड में आ कर अब विवेक भी हलकेफुलके अंदाज में बातें करने लगा.
" जनाब, शादी के मार्केट में आजकल कितना कम्पीटीशन है, यह तो आप जानते ही हैं. यह मोटी हो जाए तो इसे वापस करने का आप को पूरा अधिकार होगा. आप को सौदे में नुकसान नहीं होगा, " जींस वाली लड़की व्यंग भरे अंदाज में मुस्कराइए.
" एक बात बताएंगी ? "
" पूछिए. "

दी के मार्केट में एक के साथ एक फ्री वाला आफर आप दें, तो मेरी सारी उलझन समाप्त हो जाए और मैं आप दोनों.... नहीं, नाराज मत होइए. मैं ने तो यों ही पूछ लिया था, " बड़ी मुश्किल से विवेक अपनी हंसी रोक पा रहा था.
दोनों लड़कियां अपनी कैसी भी प्रतिक्रया व्यक्त कर पातीं, उस से पहले ही 2 लड़कियों ने कमरे के अन्दर झांका. दोनों की आँखों में उत्सुकता और शरारत भरी चमक मौजूद थी.
" अरे, कोई पसंद आई ? कैसा चल रहा है इंटरव्यू ? " उन में से एक ने सवाल पूछा.
" अभी तो इंजीनियर साहब हम दोनों को ही चुनने का लालच दिखा रहे हैं, जींस वाले लड़की ने मुंह बनाते हुए जवाब दिया. "
" जल्दी से 'हाँ' या 'न' कराओ.
इंटरव्यू देने को तैयार बाकी लड़कियां बेचैन हो रही हैं, " उन दोनों ने विवेक की तरफ एक बार भी नहीं देखा और वाहाँ से चली गईं.
" कौन सी लडकियां बेचैन हो रही हैं ? "
विवेक ने चौंकते हुए सवाल किया.
" आप जैसे सुन्दर, स्मार्ट और काबिल लडके आसानी से कहाँ मिलते हैं, जनाब आप की सेवा में हाजिर हो कर इंटरव्यू देने के लिये हमारा आधा होस्टल तैयार खडा है, " जींस वाली लड़की की आवाज फिर व्यंग से भर उठी.
" आप अपने बारे में कुछ बता देते तो बड़ी कृपा होती, " सूट वाली ने विनती सी की.
" मैं उतना बुरा और नासमझ इंसान नहीं हूँ जितना आप दोनों मान बैठी हैं, " विवेक गंभीर हो गया, " मेरा मत तो यही है की शादी तभी हो जब लड़कालड़की एकदूसरे को अच्छी तरह से जानसमझ चुकें हों. मेरी माँ की जिद न होती तो मैं यों लड़की देखने आने को कभी राजी न होता. "

ह तो बड़ी अच्छी बात है, " जींस वाली ने कहा.
" अब तो कृपा कर के यह बता दें की सावित्रीजी की असली बेटी कौन है ? " विवेक ने अपने मन की दुविधा दूर करने को एक बार फिर अपना सवाल दोहराया.
" आप अभी तक नहीं पहचान सके हैं उसे ? " जींस वाले ने हंस कर पूछा.
विवेक ने इनकार में सिर हिलाया.
" हम ने तो सुना था की इंजीनियर बहुत इंटेलिजेंट होते हैं. "
" वह तो ठीक ही सुना है आप ने, पर ज्यादा शरारती लोगों से पाला पड जाए तो हार भी हो जाती है. "
" इतनी जल्दी मत हार मानिये, जनाब आप इस से गप्पे लड़ाइए और मैं आप की आवभगत का इंतजाम कर लौटती हूँ, " जींस वाली लडकी मुस्कराती हुई कमरे से बाहर चली गई.
विवेक ने आगे झुक कर सूट वाली से पूछा, " आप ही हैं न पूनम कौशिक ?"
" क्या मैं आप को उस से ज्यादा अच्छी लगी हूँ ? " उस ने शरारती अंदाज में भौंहें मटकाईं .
" बतलाइये न, प्लीज. "
" यह सवाल मेरी सहेली के लौट आने के बाद ही पूछना, इंजीनियर साहब. मैं ने सच बता दिया तो वह मेरी जान खा जाएगी. "
" मैं किसी से कभी नहीं कहूंगा की... "
" सौरी, कुछ और बात करिए, प्लीज. "
विवेक ने असहाय भाव से कंधे उचकाए और फिर उस की पढ़ाई से सम्बंधित बातें करने लगा.
करीब 10 मिनट बाद जींस वाली लड़की एक ट्रे में 3 प्लेटें सांभरवडा ले आई.
विवेक ने पहले चम्मच क स्वाद लिया और तेज मिर्चों के कारण उस की सिसकारी निकल गई. उस ने आँखें उठा कर देखा तो पाया की वे दोनों बड़े स्वाद से संभारवडा खा रही थीं.
विवेक ने अपने हावभावों को नियंत्रित किया और मुस्कराने का अभिनय करते हुए सांभरवडा खाने लगा. वह उन्हें अपना मजाक उड़ाने का कोई मौक़ा नहीं देना चाहता था.
एकाएक 2 लड़कियों ने संभारवडा खाते हुए कमरे में प्रवेश किया और सीधे विवेक के सामने आ खडी हुईं.
" किसे चुना है आप ने, सर ? " उन में से लम्बे कद वाली ने सीधेसीधे पूछ लिया.

भी तो कोई फैसला नहीं करा है मैं ने, "
विवेक ने मुस्कराते हुए जवाब दिया.
" सर, जल्दी फैसला कर लीजिये.
आजकल कैम्पस प्लेसमेंट का सीजन चल रहा है. होस्टल में यही एक गेस्टरूम है.
इंटरव्यू लेने के लिये अगली पार्टी आने ही वाली है, " दूसरी लड़की ने माथे पर बल डाल कर हल्की नाराजगी दर्शाई और फिर दोनों कमरे से बाहर चली गईं.
" मैं अपने को इस कारण शर्मिन्दा महसूस कर रहा हूँ  की मेरे यों मिलने आने को आप इंटरव्यू लेना समझ रही हैं, "विवेक ने दबे स्वर में सफाई सी दी.
" अरे, बड़े लोगों को बिलकुल शर्मिन्दा होने का अवगुण नहीं पालना चाहिए, " जींस वाली ने उसे सलाह दी.
" अभी एक कैबिनेट मिनिस्टर ने करोड़ों का घोटाला किया. हमारे इलाके का डी.एस.पी. सेक्स स्कैंडल का मुखिया निकला. दिल्ली के बड़े उघोगपति का बेटा सरेआम उस मॉडल का मर्डर कर के मुस्कराता घूम रहा है. इंजीनियर साहब, बड़े लोग कहाँ शर्मिन्दगी महसूस करते हैं ? अरे, आप तो इंटरव्यू ही ले रहे हैं शादी के लिये. उन लोगों की तुलना में तो यह काम कुछ भी नहीं. आप बेखटके इंटरव्यू लेना चालू रखिये, प्लीज. " खड़े हो कर यह स्पीच जोशीले अंदाज में देने के बाद सूट वाली लड़की दोबारा बैठ कर सांभरवडा खाने लगी.
कुछ पलों की खामोशी के बाद विवेक ने गंभीर लहजे में जवाब दिया, " इंटरव्यू तो अब ख़त्म हो चुका है, देखिये.
" क्या आप ने फैसला कर लिया है ? " सूट वाली जोर से चौंकी.
" हाँ. "
" क्या मुझे चुना है आप ने अपनी दासी बनने के लिये ? "
" तुझे नहीं, मुझे चुना होगा इन्होने, " जींस वाली ने बड़े नाटकीय ढंग से अपने माथे पर हाथ मारा.
अचानक मुस्करा रहे विवेक के चेहरे पर परेशानी के भाव उभरे. इस ने हाथों से अपना पेट पकड़ लिया और उबकाइयां सी लेने लगा.
" मुझे तेज घबराहट हो रही है. सांस भी नहीं आ रहा है. तबीयत बिलकुल ठीक नहीं. आप ने मेरे सांभर में मिर्च के साथ...कुछ और गलत... चीज तो नहीं मिला.... दी... " अपने चेहरे पर भयंकर पीड़ा के भाव लिए विवेक सोफे से लुढ़क कर कालीन पर ढेर हो गया.
विवेक ने सांभर में कुछ गलत मिला देने की बात जींस वाली लड़की को संबोधित कर के कही थी. वह बेचारी उस की बिगड़ी हालत देख कर थरथर कांपने लगी.
" इस का शरीर तो ऐंठा जा रहा है, " हरे सूट वाली लड़की बुरी तरह से घबरा उठी.
" प... प... पानी के छीटें मारूं ? " जींस वाली रोंआसी हो उठी.
" बेवक़ूफ़, तू ने मिर्च के अलावा और क्या मिलाया सांभर में ? "
" मैं पागल हूँ क्या जो और कुछ मिलाऊँगी. "

से सबक सिखाने के जोश में तू ने जरूर कोई गलत काम किया है. "
" मैं ने कुछ गड़बड़ नहीं की है. अब क्या करें ? सामने वाले डाक्टर को बुला कर लाऊँ ?
मेरी माँ इस सारी घटना का ब्यौरा सुनेगी तो मुझे कच्चा ही चबा जाएगी. मुझे ऐसे मत घूर. मैं कह रही हूँ न की मैं ने कुछ गड़बड़ नहीं की है " जींस वाले लड़की के आंसू बह निकले.
" इसे सोफे पर लिटाने के लिए कुछ लड़कियों को अन्दर भेज और तू भाग कर डाक्टर को बुला ला. इसे तंग करने की तेरी स्कीम में फंस कर मैं पता नहीं किस मुसीबत में फंसने जा रही हूँ. अब जल्दी जा यहाँ से, " सूट वाली ने अपनी सहेली को जोर से डांट दिया.
जींस वाली लड़की मुडी तो अचानक विवेक ने आँखे खोलते हुए उस का हाथ मजबूती से पकड़ लिया.
उसकी डर के मारे चीख निकल गई. हरे सूट वाली पहले जोर से चौंकी और फिर राहत भरे अंदाज में मुस्करा उठी.
" तुम तो बिलकुल ठीक हो. क्यों किया तुम ने तबीयत खराब होने का ऐसा घटिया नाटक ? " हरे सूट वाली ने शिकायत लहजे में सवाल पूछा.
" इन का सही परिचय जानने के लिये. कही, मेरा अभिनय कैसा लगा, मिस पूनम कौशिक ? क्या मेरे हुनर की दाद नहीं देंगी ? " विवेक पूनम कौशिक की आँखों में प्यार से झांकता हुआ मुस्कराया.
" आप को हमें इतना ज्यादा डराना नहीं चाहिए था, " घबराई पूनम कौशिक अभी भी सहज नजर नहीं आ रही थी.
" और आप दोनों को अपनी पहचान छिपा कर मुझे इतना ज्यादा सताना नहीं चाहिए था. "
" मेरा हाथ चोदिये, प्लीज. "
" यह हाथ छोड़ने के लिये नहीं पकड़ा है मैं ने. "
" तो क्या यह इंटरव्यू में सफल हो गई है ? "
हरे सूट वाली पूनम गुप्ता ने आँखें चौड़ी कर के पूछा.

लकुल सौ में से सौर नंबर मिले हैं इन्हें. अपनी सहेली से कहो की वह भी मेरा रिजल्ट बता दे. "
" फेल हुए हैं आप, कैसा डरा दिया हमें, " पूनम कौशिक नाराजगी दिखाते दिखाते शरमा गई.
" मैं ने आप को पास किया. इस का हाथ छोड़िये और मेरा पकडिये, इंजीनियर साहब, " पूनम गुप्ता ने हँसते हुए अपना हाथ विवेक की तरफ बढ़ाया.
" चल पीछे हट, " उस की सहेली ने हाथ पकड़ कर पीछे किया और फिर लजा गई.
" आज मैं ने जाना की पहली मुलाक़ात में भी प्यार हो सकता है. अपने साथ सारी जिन्दगी गुजारने की इजाजत दोगी तुम मुझे ? " विवेक ने भावुक और रोमांटिक लहजे में अपने दिल की इच्छा प्रकट की.
सिर हिला कर 'हाँ'  कहते हुए पूनम कौशिक के गाल गुलाबी हो उठे. उस की सहेली ने तालियाँ बजा कर इस फैसले का स्वागत किया.
" ए गिफ्ट फॉर समवन यू लव, " विवेक ने जेब से चौकलेट निकाल कर अपनी प्रियतमा को पकड़ा दी और फिर 'सी सी' की आवाज निकाल  कर यह दर्शा दिया की उसे मिर्चों की जलन सता रही है.
उस चौकलेट का टुकडा पूनम कौशिक के हाथ से खाने के बाद विवेक ने उस का हाथ चूम कर इस नए रिश्ते पर प्यार की मुहर लगा दी.

                                                                                                                                                         - उषा चाचरा