30 मार्च 2010

विचित्र जन्म कुंडली



कलिंग राज्य में कई महानगर थे। उन में एक दांतिपुर था। दांतिपुर नगर के राजा कलिंगु थे। उनके बड़ा कलिंगु और छोटा कलिंगु नामक दो पुत्र थे। उनकी जन्म कुंडलियों की जाँच करके ज्योतिषियों ने यों बताया, ‘‘पिता के अनंतर ज्येष्ठ पुत्र ही राजा बनेगा, पर छोटे की जन्म कुंडली विचित्र और अपूर्व है। वह ज़िंदगी भर संन्यासी जैसा समय काटेगा, मगर वह महाराजा योगवाले एक पुत्र को जन्म देगा।''

कुछ साल बाद राजा कलिंगु का स्वर्गवास हो गया। इस पर ज्येष्ठ पुत्र का राज्याभिषेक हुआ। छोटे को राज प्रतिनिधि का पद मिला। लेकिन उसके मन में ज्योतिषियों की यह बात अच्छी तरह से घर कर गई कि उसका होनेवाला पुत्र महाराजा बनेगा। इसके बल पर वह अपने बड़े भाई के आदेशों का पालन किये बिना स्वेच्छा पूर्वक व्यवहार करने लगा। इस कारण दोनों भाइयों के बीच मनमुटाव पैदा हो गया। बड़े भाई ने छोटे को बन्दी बनाने का आदेश दिया।

उन्हीं दिनों में बोधिसत्व कलिंग राज्य के मंत्रियों में से एक थे। बड़े कलिंगु के शासन काल तक वे काफी बूढ़े हो चले थे। राज परिवार का हित चाहनेवाले उस वृद्ध मंत्री ने गुप्त रूप से छोटे कलिंगु को राजा का आदेश सुनाया। छोटे को यह बात अपमानजनक मालूम हुई। उसने कहा, ‘‘महानुभाव, आप सब प्रकार से मेरे हितैषी हैं। आपने ज्योतिषियों की बातें सुनी हैं। अगर वे बातें सच साबित हो सकती हैं तो मेरी कामना की पूर्ति करने की जिम्मेदारी आप पर है। लीजिये- मेरी नामांकित अंगूठी, मेरी शाल और मेरी तलवार। ये तीनों जो व्यक्ति लाकर मेरी निशानी के रूप में आप को दिखायेगा, समझ लीजिये, वही मेरा पुत्र है। आप जो भी उसकी मदद कर सकते हैं, जरूर कीजियेगा।'' यों निवेदन कर किसी को बताये बिना वह जंगलों में भाग गया।

उन्हीं दिनों कई साल बाद मगध राजा के एक पुत्री हुई। उसकी जन्म कुंडली देख ज्योतिषियों ने बताया, ‘‘इसकी जन्म कुंडली विचित्र है। यह संन्यासिनी जैसी ज़िंदगी बितायेगी, मगर इसके महाराजा योगवाला पुत्र पैदा होगा।''

यह ख़बर मिलते ही सभी सामंत राजा राज कुमारी के साथ विवाह करने के लिए होड़ लगाने लगे। यह राजा के लिए समस्या बन गई। उनमें से किसी एक के साथ राजकुमारी का विवाह करें तो बाक़ी लोग शत्रु बन जायेंगे। इसलिए लाचार होकर एक दिन राजा अपनी पत्नी और पुत्री को लेकर गुप्त रूप से जंगलों में भाग गयेऔर गंगा नदी के किनारे कुटी बना कर उस में तीनों सादा जीवन बिताने लगे। उस कुटी से थोड़ी दूर कलिंग राजकुमार की कुटी थी।

एक दिन अपनी पुत्री को कुटी में छोड़ मगध राज दंपति कंद-मूल और फल लाने चले गये। उस समय राजकुमारी ने तरह-तरह के फूल तोड़ कर एक सुंदर माला बनाई।

कुटी के पास नदी के किनारे आम का एक बहुत बड़ा पेड़ था। मगध राजकुमारी उस पेड़ की डालों में बैठ गई। वहॉं से फूलों की माला पानी में फेंक दी और तमाशा देखने लगी।

वह फूल माला बहती हुई स्नान करने वाले छोटे कलिंगु के सर से जा लगी। माला हाथ में लेकर छोटे कलिंगु अपने मन में सोचने लगा, ‘ओह, यह कैसी सुंदर फूल माला है। इसमें कितने प्रकार के फूल हैं। इसे कितनी सुंदर बनाई है किसी युवती ने। वह जरूर कोई अपूर्व सुंदरी होगी। इस भयंकर जंगल में वह सुंदरी क्यों आई होगी?' यों अनेक प्रकार से सोच विचार कर आख़िर वह छोटा कलिंगु उस सुंदरी की खोज करने के लिए उसी व़क्त चल पड़ा।

वह जंगल में चला जा रहा था। उसे एक दिशा में मधुर कंठ स्वर सुनाई दिया। उसने रुक कर इधर-उधर अपनी नज़र दौड़ाई। आम की डालों पर बैठे गीत गाने वाली वह सुंदरी राजकुमार छोटे कलिंगु को दिखाई दी।

कलिंगु ने कुशल प्रश्नों के साथ उससे वार्तालाप करना शुरू किया। अंत में उसे अपनी पत्नी बनाने की इच्छा प्रकट की। इस पर युवती ने कहा, ‘‘आप तो किसी मुनि परिवार के लगते हैं, पर हम लोग क्षत्रिय हैं। ऐसी हालत में हमारा विवाह कैसे संभव हो सकता है?''



इसके जवाब में कलिंगु ने अपनी सारी कहानी आदि से लेकर अंत तक सुनाई। इस पर राजकुमारी ने अपने परिवार का सारा रहस्य खोल दिया। इसके बाद वे दोनों राजकुमारी के पिता के पास पहुँचे। राजा ने सारा वृत्तांत जान कर अपने मन में सोचा ‘राजकुमारी के योग्य वर यही है।' इसके बाद छोटे कलिंगु तथा मगध राजकुमारी का विवाह हुआ।

एक साल बाद उनके एक पुत्र पैदा हुआ। राज लक्षणों से सुशोभित उस शिशु का नामकरण विजय कलिंगु किया गया। बड़े ही लाड़-प्यार से उसका पालन-पोषण होने लगा।

थोड़े समय बाद एक दिन कलिंगु ने जन्म कुंडलियाँ निकाल कर हिसाब किया। पता चला कि बड़े कलिंगु की आयु अब तक समाप्त हो गई होगी।

इस पर छोटे कलिंगु ने अपने पुत्र विजय कलिंगु को बुलाकर समझाया, ‘‘बेटा, तुम्हें तो अपना जीवन इन जंगलों में बिताना नहीं है। मेरे बड़े भाई बड़े कलिंगु दांतिपुर के राजा हैं। तुम उस राज्य के वारिस हो। इसलिए तुम शीघ्र जाकर उनके उत्तराधिकारी के रूप में सिंहासन पर विराजमान हो जाओ।'' यों समझाकर उसने वृद्ध मंत्री का वृत्तांत सुनाया और निशान के रूप में वे तीन चीजें सौंपकर आशीर्वाद देकर भेज दिया।

अपने माता-पिता तथा नाना-नानी से अनुमति लेकर विजय कलिंगु दांतिपुर पहुँचा। वृद्ध मंत्री के दर्शन करके अपना परिचय दिया।

तब तक छोटे कलिंगु के अंदाज के अनुसार बड़े कलिंगु का देहांत हो चुका था। दांतिपुर में अराजकता फैल गई थी।

वृद्ध मंत्री ने एक महा सभा की और छोटे विजय कलिंगु का जन्म वृत्तांत सब को सुनाया। सभा सदों ने आश्चर्य में आकर जयकार किये और नये राजा का स्वागत किया।

इसके बाद राजसिंहासन पर बैठकर विजय कलिंगु ने वृद्ध मंत्री की सलाह से राज्य किया और अपने पूर्वजों की प्रतिष्ठा क़ायम रखी।