03 अप्रैल 2010

सामाजिक समरसता का प्रतीक दशहरा

विजया दशमी, दशहरा, दुर्गा पूजा, नवरात्र - विभिन्नम नामों से जाना जाने वाला यह पर्व हिंदुओं का एक विशिष्टश त्योषहार है जो केवल भारत ही नहीं, बल्कि क़रीब-क़रीब सभी पूर्व एशियाई देशों जैसे इंडोनेशिया, जापान आदि में उत्सालहपूर्वक मनाया जाता है। दस दिनों तक चलने वाले इस पर्व में शक्ति की देवी माँ दुर्गा की अराधना की जाती है।

दशहरा या विजया दशमी आश्विन मास के शुक्ल पक्ष की दशमी तिथि को मनाया जाता है। पौराणिक कथा के अनुसार भगवान श्रीराम ने लंका पर चढ़ाई के बाद इसी दिन रावण को मारकर विजय हासिल की थी। इस लिहाज़ से यह दिन असत्यद पर सत्यम और अच्छासई पर बुराई की जीत के रूप में मनाया जाता है।

दशहरा संस्कृत भाषा का शब्द है जो दो शब्दों से मिलकर बना है - दश और हारा अर्थात दस का नाश। हिंदू धर्म की मान्यभताओं के अनुसार लंका का राजा रावण दस सिरों वाला था। राम को उसका वध करने के लिए उसके दसों सिरों को काटना पड़ा था और दशहरा इसी को निरूपित करता है। दक्षिण भारत में दशहरा विजया दशमी के रूप में प्रचलित है। संस्कृतत में विजय का मतलब है जीत और दशमी का अर्थ है दसवें दिन अर्थात दसवें दिन मिली जीत।

त्योशहार के पहले नौ दिनों में माँ दुर्गा के अलग-अलग रूपों की पूजा-अर्चना की जाती है। इसके लिए देवी की मूर्तियों को घरों और मंदिरों में प्रतिस्थापित किया जाता है। दसवें दिन प्रतिमाओं की भव्य झांकियाँ निकलती हैं और फिर उसे पानी में विसर्जित कर दिया जाता है। इस त्योंहार के दौरान देवी के शक्ति रूप की उपासना कर तैत्रीय उपनिषद में वर्णित इस जगत के नारीत्वे सिद्धांत को मानते हुए माता की पूजा की जाती है। इसके अलावा कई हिस्सों में रावण की प्रतिमा को जलाया जाता है। इससे तात्पजर्य मानव जीवन को सभी इहलौकिक दोषों जैसे झूठ, अहंकार, लोभ, क्रोध, हिंसा, मोह, माया आदि से दूर करने से है।

दशहरा का पर्व हमारे सामाजिक जीवन के लिए भी संदेश लेकर आता है। सामाजिक रूप से शक्ति की अराधना का उद्देश्ये हर नारी का सम्मान करने की जरूरत पर बल देना है। नारी हमारे पारिवारिक जीवन, संस्कृमति और राष्ट्री य अखंडता की संरक्षिका होने के साथ-साथ संकट के क्षणों में हमारा मार्गदर्शन भी करती हैं और हमें सत्य , समानता, प्रेम, न्यासय और मोक्ष के रास्तेा पर आगे चलने के लिए प्रेरित करने वाली होती हैं।