उनसे सारा वृतान्त सुन सुग्रीव समस्त आगत वानरों सहित श्री रामचन्द्र जी के पास गये। वहाँ पहुँच कर हनुमान ने हाथ जोड़ कर विनयपूर्वक रामचन्द्र जी को सीता जी का समाचार देते हुये कहा, "हे नाथ! रावण ने जानकी जी को क्रूर राक्षसनियों के पहरे में रख छोड़ा है जो उन्हें नित्य नई-नई विधियों से त्रास देती हैं और उनका अपमान करती हैं। यह सब कुछ मैंने अपने नेत्रों से देखा है। वे केवल आपके दर्शनों की आशा पर ही जीवित रह कर यह दुःख और अपमान सहन कर रही हैं। उधर रावण निरन्तर उनके पीछे पड़ा हुआ है। वे अपने सतीत्व की रक्षा के लिये सदा भयभीत रहती हैं।" इतना कह कर हनुमान ने सीता के द्वारा निशानी के रूप में दी गई दिव्य चूड़ामणि श्री रामचन्द्र जी को देते हुये कहा, "नाथ! मैंने उन्हें आपका संदेश सुना कर आपकी मुद्रिका दे दी थी। उन्होंने यह अपनी निशानी आपको देने के लिये दी है।"
हनुमान से सीता का संदेश पाकर श्री राम अत्यन्त प्रसन्न हुये और उन्होंने उठ कर पवनसुत को अपने हृदय से लगा लिया। वे बोले, "हे अंजनीकुमार! सीता का संदेश मुझे विस्तारपूर्वक सुनाओ। उसे सुनने के लिये मेरा हृदय व्याकुल हो रहा है।" राम का आदेश पाकर हनुमान कहने लगे, "हे राघव! वे दिन-रात आपका ही स्मरण करती रहती हैं। उनके नेत्रों के समक्ष केवल आपकी छवि रहती है। उन्होंने कहलवाया है कि रावण ने मुझे दो मास की अवधि दी है। इस अवधि में आप मुझे उसके हाथों से अवश्य मुक्त करा लें। यदि इन दो मासों में आप मुझे मुक्त न करा सके तो मैं अपने प्राण त्याग दूँगी। आपकी अपूर्व क्षमता में मुझे अटल विश्वास है। आप तीनों लोकों को जीतने की सामर्थ्य रखते हैं, इसलिये रावण को परास्त करना आपके लिये कोई कठिन काम नहीं है। अतएव शीघ्र आकर इस दासी को बन्धन से मुक्त कराइये।"
पवनसुत की बात सुनकर तथा उस दिव्य चूड़ामणि को देख कर श्री रामचन्द्र शोकसागर में डूब गये और उनके नेत्रों से अश्रुधारा प्रवाहित हो चली। फिर अपने ऊपर कुछ संयम रख कर वे सुग्रीव से बोले, "हे वानराधिपति! जिस प्रकार दिन भर की बिछुड़ी हुई कपिला गौ अपने बछड़े की आहट पाकर उससे मिलने के लिया आकुल हो जाती है, उसी प्रकार इस दिव्य मणि को पाकर मेरा मन सीता से मिलने के लिये अधीर हो उठा है। उसकी कष्ट गाथाओं ने मेरे हृदय को और भी विचलित कर दिया है। मेरा विश्वास है कि यदि सीता एक मास भी रावण से अपनी रक्षा करती हुई जीवित रह सकी तो मैं उसे अवश्य बचा लूँगा। वह तो संकट में है ही, मैं भी उसके बिना अधिक दिन तक जीवित नहीं रह सकता। तुम मुझे शीघ्र लंका ले चलने की व्यवस्था करो। अपनी सेना को तत्काल तैयार होने की आज्ञा दो। अब मेरे बाण रावण के प्राण लेने के लिये तरकस में अकुला रहे हैं। अब वह दिन दूर नहीं हैं जब जानकी और सारा संसार रावण को सपरिवार मेरे बाणों के रथ पर बैठ कर यमलोक को जाता देखेंगे।
29 मार्च 2010
रामायण – सुन्दरकाण्ड - हनुमान का रामचन्द्र को सीता का संदेश देना
Posted by Udit bhargava at 3/29/2010 06:25:00 pm
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