01 अप्रैल 2010

श्री सूर्य देव क़ी स्तुति


हाथो में वाजुबंध, कानों में कुंडल, माथे पर मुकुट तथा गले में हार धारण किये सुवर्ण सामान तेजस्वी कान्ति वाले, हाथ में शंख और चक्र धारण करने वाले, सूर्य मंडल के मध्य में पघासन लगाकर बैठे हुए हे सूर्य नारायण भगवान्! मैं आपका लगातार ध्यान रखता हूँ। जिनका एक पहिये वाला रथ सोने से जडित हैं और जिसके हाथ में पुष्प शोभित होते हैं, ऐसे दिन के करने वाले हे सूर्य नाराय भगवन! मेरे पर प्रसन्न होईये।
मित्र को नमस्कार हो। रवि को नमस्कार हो। सूर्य को नमस्कार। भानु को नमस्कार हो। आकाश को नमस्कार हो पूषा को नमस्कार हो। हिरण्यगर्भ को नमस्कार हो। मरीचि को नमस्कार हो। सविता को नमस्कार हो। भास्कर को नमस्कार हो। अर्क को नमस्कार हो। जगत के एक नेत्र रूप, जगत क़ी उत्पत्ति, स्थिति और विनाश का रूप, ऋक, यजुस, साम ये तीन वेदरूप तथा सत्व, जजस और तमस तीनों गुणों को धारण करने वाले ब्रह्मा, विष्णु और महेश रूप हे सूर्य नारायण भगवान्! मैं आपको नमस्कार करता हूँ। हजारों किरणों वाले, हजारों शाखायुक्त स्वरुप हजारों योगों से उत्पन्न हुई वस्तुएं भोगने वाले और हजारों युगों को धारण करने वाले हे सूर्य भगवान्! में आपको बार-बार नमस्कार करता हूँ।