01 अप्रैल 2010

श्री राम क़ी स्तुति



जिनके हाथ घुटने तक लम्बे हैं जिसने धनुष बाण हाथ में धारण किया हुआ है। जो पद्मासन बनाकर बैठे हैं, जिसने पीताम्बर धारण किया है। कमल के समूह से भी अधिक जिसके नेत्र हैं जो प्रसन्न हैं। बायीं तरफ विराजमान सीता के कमल मुख पर जिसके नेत्र हैं, जिसकी कान्ति मेध सामान है। अनेक प्रकार के अलंकारों से सुशोभित अधिक जटारूपी आभूषण को जिसने धारण किया हुआ है उस राम का में ध्यान करता हूँ।

हे कौशल्या पुत्र ! मेरी आँखों की रक्षा करो, हे विश्वमित्र के प्रिय, मेरे दोनों कानों क़ी रक्षा करो। यज्ञ क़ी रक्षा करने वाले मेरी नासिका क़ी रक्षण करो और लक्ष्मण जी जिसे प्रिय हैं ऐसे हे रामचंद्र जी मेरे मुख क़ी रक्षा करो।
हे विद्या के भंडारी! मेरी जीभ क़ी रक्षा करो। हे! भारत जी द्वारा नमस्कार किये गए रामचंद्र जी मेरे कंठ क़ी रक्षा करो और शिव के धनुष को तोड़ने वाले रामचंद्र जी मेरी भुजाओं क़ी रक्षा करो।

हे सीता पति मेरे हाटों ही रक्षा करो। हे परशुराम को जीतने वाले रामचंद्र मेरे हृदय क़ी रक्षा करो। खर दैत्य को मारने वाले रामचन्द्र मेरे मध्य भाग की रक्षा करो। जाम्बुवान के आशय रूप मेरी नाभि क़ी रक्षा करो।

हे सुग्रीव के ईश्वर रामचंद्र! मेरी कमर क़ी रक्षा करो। हे बज्रंबली हहुमन के प्रभु रामचंद्र जे मेरी जांघो क़ी रक्षा करो राक्षस कुल का नाश करने वाले रघुकुल में उत्तम रामचंद्र जी! दोनों जांघो क़ी रक्षा करो।

हे समुद्र पर सेतु बांधे वाले रामचंद्र मेरे घुटनों क़ी रक्षा करो। हे रावन का नाश करने वाले रामचंद्र मेरी जांघ क़ी रक्षा करो। विभीषण को संपत्ति देने वाले रामचंद्र मेरे शरीर क़ी रक्षा करो।