03 अप्रैल 2010

साधना रहस्य

साधना शक्ति को प्रकट करना अपने संचित धन को प्रदर्शित करने जैसा है, इसे गुप्त रखें।


आध्यात्म की दृष्टि से साधना ही एक मात्र ऎसा साधन है, जिसके माध्यम से साधक उस परम शक्ति से सम्पर्क स्थापित कर सकता है, जो सम्पूर्ण सृष्टि की सत्ता का संचालन कर रही है। साधना के माध्यम से प्रत्येक ऎसे कार्य संभव हो सकते हैं, जो जन सामान्य के लिए असम्भव होते हैं। जन सामान्य के लिए तो असम्भव को सम्भव करके दिखाने वाला चमत्कारी बाबा होता है, और दुनिया चमत्कार को नमस्कार करने के लिए दौड़ती है। ऎसी अवस्था में यदि साधना का रहस्य खुल जाता है, तो साधक का यश चारों ओर फैलने लगता है, परंतु जैसे-जैसे साधक का यश फैलता है, वैसे-वैसे उसकी साधनात्मक शक्ति क्षीण होने लगती है। साधक जो त्याग की मूर्ति होता है। उसकी सेवा करने वालों का तांता लग जाता है, सेवा करने वालों को आर्शीवाद बांटते-बांटते साधना की शक्ति भी आशीर्वाद के साथ जाती रहती है और धीरे-धीरे करके आशीर्वाद सफल होना कम हो जाते हैं। तब साधक को लोग झूठा मानने लगते हैं। इस तरह वह अपमान और अपयश का पात्र बन जाता है। इसलिए साधना कोई ऎसी वस्तु नहीं है जिसका प्रदर्शन किया जाए और साधना शक्ति को प्रकट करना अपने संचित धन को प्रदर्शित करने जैसा है। अत: शास्त्रों में साधना और साधना की शक्ति को गुप्त रखने के लिए कहा गया है।