आरती
आरती जगदम्बे जी क़ी
ओ आंबे, तू है जगदम्बे काली, जय दुर्गे खप्पर वाली।
तेरे ही गुण गावें भारती ओ मैया हम सब उतारें तेरी आरती॥
तेरे भक्त जनों पर मैया भीड़ पड़ी है भारी,
दानव दल पर टूट पदों माँ, करके सिंह सवारी,
सौ सौ सिंहों से है बलशाली, ओ मैया.... ।
माँ-बेटे का है इस जब में बड़ा ही निर्मल नाता,
पूत-कपूत सुने हैं पर ना माता सुनी कुमाता
सब पे करुना दर्शाने वाली, सबको हरषाने वाली,
नैया भंवर से उबारती, ओ मैया... ।
नहीं मांगते धन और दौलत, ना चांदी न सोना,
हम तो मांगे माँ तेरे चरणों में एक छोटा सा कोना,
सबकी बिगड़ी बनाने वाली, लाज बचाने वाली,
सतियों के सत को संवारती, ओ मैया... ।
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