बोधिसत्व काशी के राजा ब्रह्मदत्त के पुत्र बनकर जन्मे। ब्रह्मदत्त ने उसका नाम रखा, शीलवान्।
शीलवान् ने क्रमशः राजोचित विद्याएँ सीखीं, धर्मशास्त्रों का गहरा अध्ययन किया और बड़े हो जाने पर काशी राज्य का राजा बना। वह प्रजा को अपनी संतान मानता था। उनसे वह बेहद प्यार करता था, उनका बड़ा ही आदर करता था। विशेषतया अपराधियों के प्रति वह दया दिखाता था और उनके जीवन को सुधारने की भरसक कोशिश करता था। दरिद्रता व अज्ञान के कारण जो चोरी करते थे, उन्हें वह कठोर दंड देना तो दूर उल्टे वह उन्हें अपने पास बुलाता था, ज़रूरत पड़ने पर धन देकर उनकी सहायता करता था और हितबोध करके उन्हें भेज देता था। इस वजह से उसके राज्य में अपराधों में कमी ही नहीं हुई बल्कि असीम भक्ति व एक-दूसरे के प्रति आदर की भावना भी बढ़ी।
कोसल देश काशी राज्य के निकट का देश था। उस देश के मंत्री को काशी राजा की अच्छाई उसकी कमज़ोरी लगी। उसे लगा कि काशी राज्य को जीतना बायें हाथ का खेल है। उसने अपने राजा से कहा, ‘‘काशी का राजा शीलवान् बड़ा ही दुर्बल है। वह लुटेरों और हत्यारों तक को दंड नहीं देता। ऐसे कायर को हम आसानी से जीत सकते हैं।’’
कोसल राजा को पहले मंत्री की बातों पर विश्वास नहीं हुआ। सच जानने के लिए उसने अपने चंद सैनिकों को बुलाया और उनसे कहा, ‘‘सरहदें पार करके तुम लोग काशी राज्य में प्रवेश करो। गाँवों को लूट लो।’’
जब कोसल के सैनिकों ने काशी राज्य के गाँवों पर हमला किया तब वहाँ की जनता ने उनका सामना किया, उन्हें बंदी बनाया और राजा शीलवान् के पास ले गये।
‘‘तुम विदेशी लगते हो। हमारे गाँवों पर तुम लोगों ने हमला क्यों किया?’’ शीलवान् ने उनसे पूछा। ‘‘महाराज, भूख के मारे हमें ऐसा करना पड़ा,’’ कोसल सैनिकों ने कहा।
‘‘इतने भूखे हो तो मुझसे माँग सकते थे,’’ कहते हुए शीलवान् ने ख़ज़ाने से धन मँगाया और उन्हें देकर भेज दिया।
शीलवान् की इस व्यवहार शैली को देखकर कोसल राजा को आश्र्चर्य हुआ और साथ ही उसमें धैर्य भी जगा। एक और बार परीक्षा करने के उद्देश्य से उसने अधिक संख्या में सैनिकों को लूटने के लिए काशी राज्य भेजा। जब वे सरहदें पार कर रहे थे तब काशी राज्य की जनता ने उन्हें रोका और पकड़ लिया।
इस बार भी वे उन्हें काशी राजा के पास ले गये। परंतु राजा ने उन्हें सज़ा नहीं दी। थोड़ा-सा धन देकर भेज दिया। इससे कोसल राजा को पक्का विश्वास हो गया कि सचमुच ही काशी राजा दुर्बल है और उसपर विजय पाना आसान है। वह अपनी विशाल सेना को लेकर काशी राज्य पर हमला करने निकल पड़ ।
जैसे ही यह समाचार काशी राज्य के मंत्रियों और सेनाधिपतियों को गुप्तचरों के द्वारा मालूम हुआ, वे राजा शीलवान् के पास गये और कहा, ‘‘महाराज, लगता है कि कोसल के राजा हमारे बल से अपरिचित हैं। बड़े गर्व से वे हमपर हमला करने निकल पड़े। उनका सामना करने की आज्ञा दीजिये। हम उनके छक्के छुड़ा देंगे, पैर उखाड़ डालेंगे।’’
शीलवान् युद्ध करने के पक्ष में नहीं था। उसने थोड़ी देर तक सोचने के बाद शांत स्वर में कहा, ‘‘अनावश्यक रक्त बहाना नहीं चाहिये। उन्हें अगर काशी राज्य ही चाहिये, तो इसे अपने अधीन कर लेने दीजिये। किले के द्वारों को खोल दीजिये।’’
काशी राजा ने एक दूत के द्वारा कोसल राजा को संदेश भेजा। ‘‘शत्रु बनकर आने की कोई आवश्यकता नहीं है। मित्र बन कर आइये ।’’
कोसल राजा ने समझा कि यह शीलवान् की दुर्बलता है। विकट अट्टहास करते हुए अति उत्साह के साथ वह काशी राज्य में पहुँचा।
राज मर्यादा का उल्लंघन करते हुए वह सेना सहित काशी राजा की सभा में आया। प्रवेश करते ही उसने अपने सैनिकों को आज्ञा दी कि वे राजा व मंत्रियों को रस्सियों से बांध दें। ‘‘अतिथियों का ऐसा व्यवहार उचित नहीं लगता,’’ शीलवान् ने कहा।
इन बातों पर कोसल राजा ठठाकर हँस पड़ा। देखते-देखते सैनिकों ने शीलवान् और उनके मंत्रियों को बाँध कर उनके राज-चिह्न खींच डाले।
आधी रात को शोरगुल के कारण उनकी निद्रा भंग हो गई। उठकर देखा कि कई लुटेरे मशाल लिये वहाँ खड़े हैं। लुटेरों ने शीलवान् से कहा, ‘‘महाराज, हम चोर हैं, लुटेरे हैं। आपकी दया के कारण हम अब तक चोरी किये बिना शांत जीवन बिताते आ रहे हैं। पर, अब से हमारी तकलीफ़ें शुरू हो गयीं। इसलिए हम इस रात को राजसौध में घुस गये और यह संपत्ति लूट ली। लीजिये, आपकी ये पोशाकें, राज-चिह्न और तलवारें। आपके लिए हम स्वादिष्ट खाना भी ले आये। पहले आप ये राजोचित वस्त्र पहन लीजिये, भोजन कीजिये और हमें आज्ञा दीजिये कि हम इस संपत्ति का क्या करें।’’
शीलवान और मंत्रियों ने खाना खा लिया और अपनी पोशाकें पहन लीं। बाद में शीलवान् ने लुटेरों से कहा, ‘‘तुम लोगों की समस्याओं का परिष्कार कैसे हो, नये राजा को यह जानना होगा। मुझे पूरी उम्मीद है कि नये राजा तुम्हारे विषय में कोई अच्छा ही निर्णय लेंगे। इसके पहले ही तुमने यह संपत्ति लूटकर अच्छा नहीं किया। यह पूरा धन ले जाओ, राजा को दो और उनसे पूछो कि तुम लोगों के विषय में वे क्या करनेवाले हैं।’’
‘‘वह राजा नहीं, लुटेरा है। आपको लूटा है। हम क़तई उसका विश्वास नहीं करते। महाराज, हम किसी भी हालत में उस नीच के पास नहीं जायेंगे। आप ही हमारे महाराज हैं, हमेशा रहेंगे ।’’ लुटेरों ने कहा।
प्रातःकाल ही अपने मंत्रियों सहित काशी राजा राज सभा में पहुँचा। शीलवान् को देखते ही कोसल राजा निश्चेष्ट रह गया।
शीलवान् ने जो हुआ विस्तारपूर्वक बताया और कहा, ‘‘महाराज, आप चाहते हैं कि मुझ से भी अधिक, सक्षमतापूर्वक शासन चलायें, प्रजा के साथ इतोधिक न्याय करें, इसीलिए आपने मुझे राज्य से निकाल दिया, मेरे सिंहासन पर आसीन हो गये। बेचारे ये मासूम लुटेरे इस सत्य को जान नहीं पाये और रात को आपका ख़जाना लूट लिया। उन्हें यह भय भी हो गया कि आपके शासन में उनका कुशल संभव नहीं। मैंने उन्हें आश्वासन दिया है कि आप अवश्य ही उनकी समस्याओं का न्याय सम्मत परिष्कार करेंगे। उन्हें साथ लेकर आपकी संपत्ति आपके सुपुर्द करने यहाँ आया हूँ। भला, इस राज्य में इससे बढ़कर मेरा और क्या काम हो सकता है!’’
शीलवान् की बातें सुनकर कोसल राजा के हृदय में परिवर्तन हुआ। वह सिंहासन से तुरंत नीचे उतर आया और शीलवान् के पैरों पर गिरकर कहा, ‘‘महात्मा, आप महान हैं। लुटेरे भी आपको चाहते हैं। इससे बढ़कर क्या और सबूत चाहिये कि आप साधारण मानव नहीं, असाधारण व्यक्ति-विशेष हैं। मुझसे पाप हो गया। क्षमा कीजिये। इस नीच मंत्री की सलाह ने मुझे गुमराह कर दिया। आप अपना राज्य ले लीजिये। आप जैसे महान के शासन में ही प्रजा सुखी रहेगी, न्याय होगा। मुझे बस, आपकी मैत्री चाहिये, राज्य नहीं।’’
शीलवान् पुनः काशी का शासक बना। उसने कोसल राजा का सम्मान किया और आदरपूर्वक उसे उसके राज्य में भेज दिया।
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