काशी राज्य पर ब्रह्मदत्त जिन दिनों में शासन करते थे, उसी समय बोधिसत्व ने मगध देश के एक गाँव में माघ नाम से एक क्षत्रिय परिवार में जन्म लिया। गाँव की समस्याओं पर चर्चा करने के लिए पचास परिवारों के पुरुष चौपाल पर जमा हो जाते थे। उस गाँव के ज़्यादातर लोग भले-बुरे का ख़्याल नहीं रखते थे, अ़क्सर चोरियॉं, डकैती और हत्याएँ करते थे और घूस देकर गाँव के अधिकारियों को खुश करके दण्ड पाने से बच जाते थे।
चौपाल की जगह बड़ी गंदी थी, वहाँ पर कूड़ा-करकट भरा होता था। इसे देख माघ ने अपने बैठने के वास्ते थोड़ी जगह साफ़ कर दी, लेकिन उस जगह पर अन्य लोगों में से किसी ने क़ब्जा कर लिया।
इस पर माघ ने एक और जगह साफ़ कर दी, उस पर भी किसी ने अपना अड्डा जमा लिया।
इस प्रकार धीरे-धीरे माघ ने बड़ी सहनशीलता के साथ चौपाल की सारी जगह साफ़ कर दी। इसके बाद उस स्थान पर छाया के लिए उसने एक पंडाल बनाया, जिससे सारे गाँववालों को बड़ा आराम पहुँचा।
थोड़े ही दिनों में माघ के इस व्यवहार ने पचास परिवारों के पुरुषों को अपनी ओर आकृष्ट किया। वे सब माघ के नेतृत्व को स्वीकार करके गाँव की सेवा में लग गये। इसके बाद सबने मिलकर सभा-समारोहों के वास्ते एक विशाल मण्डप बनाया और पीने के वास्ते ठण्ढे पानी का भी इंतजाम किया।
उसके बाद गाँव के लोगों ने माघ के मुँह से पँचशील सिद्धांत सीखे और अच्छा बर्ताव करने लगे। वे प्रतिदिन ऊबड़-खाबड़ सड़कों को समतल बनाते थे। रास्ते पर आने-जाने वाले रथों क़ो रोकने वाली डालों को काट देते थे। गड्ढे भर देते थे, तालाब खोदते थे, गीले प्रदेशों के बीच में से चलने के लिए ऊँची मेंड़ें बनाते थे। इस कार्य के लिए उनका पथप्रदर्शक और नेता माघ बना।
उस गाँव में एक अधिकारी था। गाँव के ज़्यादातर युवक शराबी, जुआख़ोर, हत्यारे और भ्रष्टाचारी थे, इसलिए उस गाँव के अधिकारी को जब भी मौक़ा मिलता, लोगों से रिश्वत ऐंठ लेता। जो रिश्वत न देता, उसे जुर्माना लगाकर ख़ूब पैसे वसूल करता था । लेकिन जब से माघ गाँव के युवकों का नेता बना, और उन्हें अच्छे रास्ते पर लाया, तब से गाँव के अधिकारी की आमदनी घट गई।
इस बात को दृष्टि में रखकर अधिकारी ने राजा के पास जाकर शिकायत की ‘‘महाराज, हमारे गाँव में अराजकता फैल गई है! माघ नामक व्यक्ति के नेतृत्व में गाँव के सारे युवक हमेशा लाठियाँ, कुल्हाड़ियाँ, भाले व बर्छे लेकर सब जगह चक्कर लगाते रहते हैं। हर रास्ते पर उन्हीं लोगों का बोल-बाला है। उन लोगों की वजह से जनता के माल और प्राण ख़तरे में पड़ गये हैं। आपको सूचित करना मेरा कर्तव्य है। इसके बाद जैसी आपकी इच्छा।''
गाँव की हालत का पता लगा कर अगर अधिकारी की बात सही हो तो अत्याचार करने वालों को बन्दी बना कर लाने के लिए राजा ने अधिकारी के साथ कई सैनिकों को भेजा। सैनिक गाँव में पहुँच भी न पाये थे कि उन्हें गाँव के मुँहाने पर ही माघ अपने अनुचरों के साथ दिखाई दिया। उन सबके हाथों में लाठी, भाले, कुल्हाड़ी, इसी तरह का कोई न कोई हथियार था। सैनिकों ने जांच-पड़ताल तक किये बिना उन सबको बन्दी बनाया और राजा के सामने हाज़िर किया। राजा ने उन सब के हाथों में हथियार देखा, मगर वे यह बात समझ न पाये कि वे लोग उन हथियारों का उपयोग गाँव की सेवा में कर रहे हैं । बस, उन्होंने यही सोचा कि गाँव के अधिकारी की शिकायत सही है, इसलिए उनकी कैफ़ियत तलब किये बिना आदेश दे दिया, ‘‘इन लोगों को ले जाकर हाथियों के पैरों के नीचे कुचलवा दो।''
माघ और उसके अनुचरों को हाथी के पैरों के नीचे कुचलवाने के लिए पट्ट हाथी को लाया गया। वह उन लोगों को कुचलने के बदले उनसे थोड़ी दूर पर ही रुक गया। इसके बाद एक और हाथी को लाया गया, वह भी पट्ट हाथी जैसे उन लोगों को देखते ही भाग गया।
यह ख़बर राजा को दी गई। मगर मूर्ख राजा ने सोचा कि उनके बदन पर मंत्र फूँके गये ताबीज होंगे, इसीलिए हाथी उनके पास पहुँचने में भड़क गये हैं। इस पर राजा ने सिपाहियों को फिर आदेश दे दिया, ‘‘तुम लोग उनकी जॉंच करो, उनके बदनों पर ताबीज हो तो खोलकर फेंक दो और फिर हाथियों को उन्हें कुचलने के लिए भेज दो!''
सब की जाँच की गई, पर किसी के बदन पर कोई ताबीज न था। यह ख़बर मिलते ही राजा ने उन्हें अपने पास भेजने की आज्ञा सुनाई। उसी समय वे पचासों आदमी राजा के सामने हाज़िर किये गये।
राजा ने उन लोगों से पूछा, ‘‘बताओ, हाथी तुम लोगों को कुचलने में डर क्यों गये? तुम लोग शायद उस व़क्त मंत्र जापते होगे? क्या तुम लोग मंत्र-तंत्र जानते हो?''
माघ ने आगे बढ़कर कहा, ‘‘महाराज, आप का कहना सच है। हम लोग एक बहुत बड़ा मंत्र जानते हैं, उससे महान मंत्र दुनिया में कहीं दिखाई नहीं देता।''
‘‘वह मंत्र क्या है?'' राजा ने पूछा।
‘‘हम लोगों में से एक भी आदमी प्राणियों की हिंसा नहीं करता। दूसरों से ज़बर्दस्ती कोई चीज़ नहीं लेता। बुरा व्यवहार नहीं करता। झूठ नहीं बोलता। हम प्राणियों से प्यार करते हैं। सब के प्रति दया भाव रखते हैं। दान देते हैं, सड़कें बनाते हैं, तालाब खोदते हैं, सरायें बनाते हैं। यही हम लोगों का मंत्र है। यही हमारी शक्ति है!'' माघ ने जवाब दिया।
यह जवाब पाकर राजा अचरज में आ गया। उसने पूछा, ‘‘हमने सुना है कि तुम लोग राहगीरों को लूटते हो! अपने हथियार दिखा कर जनता को डरा करके उनसे धन छीन लेतेहो । क्या यह बात सच नहीं है?''
‘‘महाराज, आपने किसी की शिकायत पर यक़ीन कर लिया है, मगर इसकी सचाई की जांच नहीं कराई है।'' माघ ने कहा।
‘‘तुम लोग हथियारों के साथ पकड़े गये। इसलिए हमने जांच कराने की ज़रूरत नहीं समझी।'' राजा ने कहा।
‘‘महाराज, उन हथियारों का उपयोग हम जनता के फ़ायदे के लिए करते हैं। कुल्हाड़ियों से रास्ते में फैली डालों को काट देते हैं। तालाब खोदने, सड़कें बनाने और सरायों का निर्माण करने के लिए आवश्यक साधन हमेशा अपने साथ रखते हैं!'' माघ ने अपनी कैफ़ियत दी।
राजा ने उन लोगों के बारे में जाँच-पड़ताल करवाई और असली बात जान ली कि अधिकारी का दोषारोप झूठा है। उस अधिकारी के रिश्वत का धन उन युवकों के हाथों में सौंप कर राजा ने उन्हें समझाया, ‘‘आज से तुम्हीं लोग अपने गॉंव का शासन करो। मैं किसी अधिकारी को नियुक्त नहीं करूँगा।'' साथ ही राजा ने पट्ट हाथी को भी उन्हें उपहार में दे दिया।
30 मार्च 2010
चुगलखोर
Posted by Udit bhargava at 3/30/2010 08:28:00 am
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