01 अप्रैल 2010

नमस्कार : भारतीय संस्कृति और सभ्यता का परिचायक

स्वामी विदेहयोगी हैं कि नमस्कार का धार्मिक व आध्यात्मिक महत्व भी है। नमस्कार कहीं क्रिया में होता है तो कहीं किसी को सम्मान देने में प्रयोग होता है। नमन अर्थात अहम को त्याग कर दूसरों को सम्मान देना। जब अहम की भावना नहीं होगी, तो वहां परोपकार की भावना विकसित होगी। दूसरों का भला सोचना और करना ही धर्म है। जब अहम का त्याग करेंगे तो मानसिक रूप से संतुष्टि भी मिलेगी..

नमस्कार मात्र एक शब्द नहीं, बल्कि हमारी संस्कृति व सभ्यता का परिचायक भी है। नमस्कार रूपी शब्द बचपन से लेकर जीवनर्पयत हमारी रोजमर्रा की जिंदगी का हिस्सा है। नमस्कार दो शब्दों नमन व कार से मिलकर बना है। नमन अर्थात सत्कार या आदर और कार का मतलब करने वाला। बड़ों का आदर सत्कार करना, घर आए मेहमान का आदर व अभिवादन करना शिष्टाचार दर्शाता है। भारत में प्राचीन काल से ही दूसरों के अभिवादन के लिए नमस्कार या नमस्ते अथवा प्रणाम करने की परंपरा चली आ रही है। आज इस परंपरा अथवा अभिवादन के तरीके से विश्व के दूसरे देश भी अवगत हैं।

अर्थ एक-भाव अनेक
भारतीय संस्कृति में सामान्यत: नमस्कार, नमस्ते और प्रणाम तीनों दूसरों के अभिवादन से जुड़े हैं, लेकिन इनमें अंतर भी है। स्वामी विदेह योगी के मुताबिक नमस्कार का अर्थ हुआ नमन करने वाला। वहीं नमस्ते नमन व ते शब्द से मिलकर बना है अर्थात मैं तुम्हारा सत्कार करता हूं। प्रणाम प्र व नम शब्द से मिलकर बना है, प्र यानी अच्छी प्रकार या अच्छे भाव से आपको नमन करता हूं। प्राचीन काल में नमस्ते कह कर ही अभिवादन किया जाता था। कालांतर में नमस्कार भी कहा जाने लगा।

सेहत के लिए हितकर
नमस्कार या नमस्ते अथवा प्रणाम केवल अभिवादन करने के तरीके मात्र नहीं हैं, बल्कि स्वस्थ रहने का कारण भी निहित है। आयुर्वेदाचार्य डा. मोहित गुप्ता के मुताबिक नमस्कार का अर्थ है अहम का परित्याग कर हस्तबध नमन करना। तमाम भावों को दूर कर दूसरों को नमन करने से तरलता और सहजता महसूस होती है, जिससे मानसिक तनाव दूर होगा और रक्त प्रवाह सामान्य रहेगा। रक्त प्रवाह ठीक रहने से दिल भी स्वस्थ रहेगा। कई मर्तबा बुरे व्यक्ति को सामने देख हृदय गति बढ़ जाती है, लेकिन जब उस व्यक्ति का भी सहज भाव से अभिवादन किया जाएगा तो हृदय गति फिर सामान्य हो जाती है।

पूरे शरीर पर पड़ता है असर
स्वामी विदेह योगी के मुताबिक नमस्ते या नमस्कार अथवा प्रणाम हाथ जोड़ कर किया जाता है। जिससे दोनों हाथों का आपस में स्पर्श व दबाव बनेगा, एक्युप्रेशर चिकित्सा में दबाव ही महत्वपूर्ण माना गया है। हथेलियों का दबाव बनने से पूरे शरीर पर प्रैशर पड़ता है, जिससे रक्त की गति सही होती है। लिहाजा यह पूरे शरीर के लिए हितकर है।

समाज में है विशेष स्थान
केयू में समाजशास्त्र विभाग के लेक्चरर डा. प्रेम कुमार के मुताबिक नमस्कार या नमस्ते से दूसरों के प्रति सम्मान की भावना दिखती है। समाज में एक दूसरे के प्रति आदर भाव की भावना जरूरी है। यदि एक दूसरे का सम्मान नहीं होगा तो वैमनस्य बढ़ेगा, जिसका समाज पर विपरीत प्रभाव पड़ता है। डा. कुमार के मुताबिक सोसाइटी बदलती रहती है, इसके तौर तरीकों में भी बदलाव होता है, लेकिन कुछ बातें ऐसी होती हैं, जो बदलती नहीं। नमस्कार अथवा नमस्ते हिंदू समुदाय की पहचान हैं।

भावनाओं को व्यक्त करता है
एलएनजेपी अस्पताल के मनोरोग विभाग के प्रभारी डा. नरेंद्र परुथी के मुताबिक बचपन से ही माता पिता बच्चों को दूसरों का आदर करना सिखाते हैं। हर समाज में अलग-अलग तरीकों से अभिवादन किया जाता है। हमारे समाज में नमस्कार या नमस्ते अथवा चरण स्पर्श करने के लिए बच्चों को प्रेरित किया जाता है। यह आदत बाद में हमारे इमोशन से जुड़ जाती हैं। जिसे हम सम्मान देना चाहते हैं, उसे नमस्कार या फिर अन्य तरीके से उसका अभिवादन करते हैं। इससे पता चलता है कि सामने वाला आपसे कितना जुड़ाव रखता है। मसलन कई देशों में हाथ मिलाने के ढंग से दिखता है कि वह किस कदर आपका सम्मान करता है।