01 अप्रैल 2010

भारत में ईसाई विवाह

भारतीय ईसाइयों में विवाह की बहुत सी रीतियाँ हिन्दुओं के वैवाहिक रीतियों के समान है। हिन्दुओं के समान ही ईसाईयों में भी यह मान्यता है कि विवाह दैवीय इच्छा द्वारा र्निधारित होता है। परन्तु हिन्दुओं की तरह ईसाइयों में विवाह एक धार्मिक कत्तव्य नहीं माना जाता। इसका एक धार्मिक आयाम अवश्य है परन्तु प्राथमिक रूप से भारतीय ईसाइयों मे विवाह एक सामाजिक संस्था है।

जीवन साथी का चुनाव या तो माता-पिता करते है या बच्चे स्वयं करते हैं। जीवन साथी का चुनाव करते समय निकट संबंधियों का निषेध करते हुए युवक एवं युवती की पारिवारिक स्थिति, उनके चरित्र, शिक्षा, स्वास्थ्य इत्यादि पर धयान दिया जाता है। हिन्दुओं और ईसाईयों में विवाह के अधिकांश नियम मिलते जुलते हैं। सगाई की रस्म के बाद वैवाहिक रस्मों में निम्नलिखित चरण हैं:

(क) चरित्र प्रमाण-पत्र पेश किया जाता है।
(ख) विवाह की नियत-तिथि से तीन सप्ताह पहले चर्च में आवेदन पत्र प्रस्तावित किया जाता है।
(ग) चर्च के पादरी प्रस्तावित विवाह के बारे में लोगों की राय आमंत्रित करते हैं, अगर किसी को आपत्ति नहीं होती तो विवाह की एक तिथि नियत की जाती है, और
(घ) विवाह की अंगूठी का (दूसरी अंगूठी, सगाई की अंगूठी से भिन्न) चर्च में अदला-बदली होती है तथा दंपती दो गवाहों की उपस्थिति में ईसा मसीह को साक्षी मानते हुए एक-दूसरे को पति-पत्नी के रूप में स्वीकार करने की घोषणा करते हैं।

विवाह की रस्म चर्च (गिरिजाघर) में पूरी की जाती है। विवाह के बाद अन्य समुदायों की तरह ईसाईयों में भी सामुदायिक भोज देने का रिवाज है। ईसाई लोग बहुविवाह की इजाजत नहीं देते। चर्च भी हिन्दू परंपरा की तरह तलाक की स्वीकृति नहीं देता परन्तु ईसाईयों में तलाक होते हैं। भारत के ईसाई चर्च की प्रथाओं के साथ-साथ भारतीय संविधान के नियमों को भी मानते हैं।

चर्च की परंपराओं के अनुसार ईसाई विवाह में न 'महर' की स्वीकृति है न 'दहेज' की परन्तु वर-मूल्य (डाउरी) प्रथा हिन्दू प्रभाव से बढ़ रहा है। विञ्वा तथा तलाकशुदा स्त्री का पुनर्विवाह न सिर्फ स्वीकृत है बल्कि इसको प्रोत्साहन दिया जाता है।