01 अप्रैल 2010

श्री शिव क़ी स्तुति



एकांतवास जिनको अत्यंत प्रिय है। ऐसे हे भोले शम्भू। शुक्ष्म रूप से हमेशा अपने भक्तो के पास रहे हुए और अभक्तों से दूर रहे हुए ऐसे प्रभु आपको मैं प्रणाम करता हूँ। कामदेव का नाश करने वाले हे भोलेशंकर! अत्यंत शूक्ष्म रूप से तथा अत्यंत वृहत स्वरुप से रहे हुए आपको मैं अनेक बार नमस्कार करता हूँ। हे तीन नेत्रों वाले! आप अत्यंत वृद्ध स्वरुप वाले भी हो। आप अत्यंत युवक रूप वाले भी हो। ऐसे आपको मेरा प्रणाम हो। सृष्टी की उत्पत्ति कर्ता तथा विनाश कर्ता आपको असंख्य प्रणाम हो। अखंड चैतन्य स्वरुप वाले आप हो। उसी प्रकार ब्रह्म स्वरुप भी आपका ही है। अनेक स्वरूपों वाले हे शम्भो ! मेरा आपको प्रणाम हो। अभेद स्वरुप तथा परब्रह्म स्वरुप में पहले आपको मेरा प्रणाम हो। हे! शम्भो! यह सारा संसार आपने उत्पन्न किया है। ऐसे रजोगुण वाले ब्रहम स्वरुप को में वंदन कर्ता हूँ। जगत के प्रलय में भी आप ही कारन भूत हो। आपके तमोगुण वाले शंकर स्वरुप को में वंदन करताहूँ और इस सृष्टी का कल्याण करने वाले सत्त्व गुण रुपी विष्णु स्वरुप को में वंदन करता हूँ। सत्त्वादी गुणों से रहित अर्थात निर्गुण और माया से अलिपते तेज स्वरुप में शिव रूप यानी मोक्ष रूप में रहे आपको में प्रणाम करता हूँ।

में राणद्वेष युक्त अल्प्बुधि वाला हूँ। परन्तु आपकी भक्ति करने से मुझे आपका स्तवन करने क़ी शक्ति मिलती है। उससे ही मैं आपके गुणगान गा सकता हूँ। अतः हे शम्भो! हे शंकर ! आप मेरा कल्याण करो। मेरा उद्धार करो।