30 मार्च 2010

भिखारी बन गया व्यापारी

पहले एक छोटे से गॉंव में दो भाई रहते थे-आदित्य और अनुदीप। वे दोनों एक दूसरे को इतना प्यार करते थे कि दोनों एक दूसरे के लिए अपनी जान तक देने को तैयार रहते थे। वे अनाथ थे, इसलिए जीविका के लिए उन्हें कड़ी मेहनत करनी पड़ती थी। वे मछलियॉं पकड़ कर बाजार में बेचते थे।

बहुत

एक बार उन्हें बहुत दिनों पर बहुत सारी मछलियॉं मिलीं। उनकी खुशी का ठिकाना न रहा। वे मछलियॉं लेकर घर गये। कुछ देर के बाद दरवाजे पर दस्तक हुई। अनुदीप ने दरवाजा खोला। उसने देखा कि एक लंगड़ा भिखारी भीख मॉंगने के लिए खड़ा है। उसे भिखारी पर दया आ गई। वह अन्दर जाकर एक प्लेट भूनी हुई मछली ले आया। रुचि के साथ उसे खा लेने के बाद भिखारी अनुदीप को उसकी मेहरबानी के लिए धन्यवाद देकर चला गया।

दूसरे दिन वह भिखारी फिर उसी घर पर पहुँचा। अनुदीप घर पर नहीं था, इसलिए आदित्य ने दरवाजा खोला। भिखारी को देखकर पहले वह उस पर चिल्लाया। फिर अन्दर जाकर मछली मारने का एक छड़ ले आया।

उसके बाद वह भिखारी को एक बड़े पोखर के पास ले गया। फिर छड़ को उसके हाथ में देकर उसने कहा, ‘‘इस छड़ को पकड़ो और इस केंचुआ को भी। इस केंचुआ को बंसी में लगा दो और मछली के फँसने का इन्तजार करो। बस, तुम्हें इतना ही करना है। अब भीख मॉंगना छोड़ दो और मछली पकड़ कर अपनी जीविका कमाओ। मेरी शुभ कामनाएँ तुम्हारे साथ हैं।’’ इतना कह कर आदित्य घर लौट गया।

कुछ वर्षों के बाद गॉंव में यह अफवाह थी कि एक धनी और दयालु व्यापारी यहॉं आनेवाला है, लेकिन यह कोई नहीं जानता था कि वह क्यों आ रहा है।

जैसी कि खबर थी, व्यापारी सचमुच, बहुमूल्यसोने के साथ, रथ में सवार होकर गॉंव में आया। गॉंव के लगभग सब लोग उसका स्वागत करने आये। आदित्य और अनुदीप भी मौजूद थे। रथ रुका और व्यापारी रथ से उतर कर सीधा आदित्य के पास गया और बोला, ‘‘प्रिय महोदाय, क्या आप मुझे नहीं पहचानते?’’

ने संकोच करते हुए कहा, ‘‘मैं अपने जीवन में, इतने धनी व्यापारी से कभी नहीं मिला।’’

आदित्य

उसके उत्तर पर मुस्कुराते हुए व्यापारी ने कहा, ‘‘आप मिल चुके हैं। मैं वही व्यक्ति हूँ जिसे आपने मछली पकड़ने की कला सिखा कर एक धनी व्यापारी बनाया है। इसलिए कृपया, इतनी बड़ी कला सिखाने के बदले, जिसके कारण मैं आज ऐसा हूँ, यह छोटी-सी भेंट स्वीकार कीजिये।’’ यह कहते हुए उसने आदित्य के हाथों में चमकते सोने और बहुमूल्य रत्नों से भरा एक थैला पकड़ा दिया।

आदित्य इस भेंट को पाकर फूला न समाया। यह सब देख कर अनुदीप ने आगे बढ़ कर कहा, ‘‘क्या आप मुझे भूल गये, व्यापारी जी? जब आप भूखे थे, तब मैंने आप को भोजन दिया था; लेकिन आप केवल उसी को भेंट दे रहे हैं।’’

व्यापारी ने कहा, ‘‘आपने केवल एक दिन खिलाया, लेकिन आप के भाई ने पूरे जीवन भर के लिए सहायता की थी। फिर भी, उस मेहरबानी के लिए सोने का यह चेन रख लीजिये।’’ यह कह कर उसने अनुदीप को सोने का एक चेन दिया। उन दोनों को फिर से धन्यवाद देकर वह चला गया।

अनुदीप ने महसूस किया कि उसके भाई द्वारा दिया गया दान, उसके अपने द्वारा दिये गये दान से कहीं अधिक मूल्यवान था।

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