14 फ़रवरी 2010

थाईलैंड की 'अतिथि देवो भवः' परंपरा

थाईलैंड में धार्मिक आस्था ज्यादा नजर आती है। वहाँ पर घरों और दुकानों के सामने छोटे-छोटे मंदिर दिखते हैं। भारत में जैसे घरों में तुलसी-चौरा होते हैं, वैसे ही वहाँ बुद्ध की प्रतिमा वाले छोटे-छोटे मंदिर होते हैं। वहाँ की पूजा परंपरा भारतीय परंपरा से मिलती-जुलती है। लोग कपड़े, फल, अगरबत्ती आदि चढ़ावे के साथ मंदिर जाते हैं। वहाँ करीब पैंतीस हजार बौद्ध मंदिर हैं।


फूकेट में पर्वत पर भगवान बुद्ध की विशाल प्रतिमा है, जहाँ पहुँचने के लिए ऊँची पहाड़ी चढ़नी पड़ती है। फूकेट में ही बुद्ध की तीन मंजिला मंदिर है। वहाँ पर आस्था व्यक्त करने के लिए श्रद्धालु पटाखा चलाते हैं। पटाखा चलाने के लिए एक गुम्बद बना हुआ है। अतिथि सत्कार भी वहाँ सैलानियों को आकर्षित करता है। 'अतिथि देवो भवः' की परंपरा वहाँ भी है।



भगवान बुद्ध के अनुयायी वाले देश में हिन्दू मंदिर भी काफी हैं। वहीं गणेश जी, शंकर-पार्वती और गरूड़ की प्रतिमाएँ घरों और होटलों में दिखती हैं। बैंकाक में एक विशाल मॉल के सामने गणेश जी की प्रतिमा के सामने हिन्दुओं के साथ-साथ बौद्ध भी शीश नवाते दिखे। वहाँ भगवान की प्रतिमा के सामने दीये की जगह मोमबत्ती जलाने का चलन है।



भारत की तरह वहाँ भी भगवान की प्रतिमा पर फूल-माला चढ़ाने की परंपरा है। गेंदे के फूल की माला, सेवंती और गुलाब फूल चढ़ाए जाते हैं। अतिथि सत्कार की भी वहाँ विशेष परंपरा दिखी। एक रंग-बिरंगे फूल से अतिथियों का स्वागत किया जाता है। इस फूल की बेल नारियल के वृक्ष पर परजीवी होती है।




बैंकाक में बुद्ध की विशाल प्रतिमा भी लोगों को आकर्षित करती है। यह प्रतिमा पूरी तरह सोने की बनी है। थाईलैंड में सोने की पॉलिश वाली कई बौद्ध प्रतिमाएँ भी हैं। थाईलैंड गए साहित्यकारों व पत्रकारों का दल बैंकाक के जिस होटल में ठहरा था, वहाँ शंकर जी और पार्वती की प्रतिमा स्थापित थी। बैंकाक के सिलोम इलाके में कई हिन्दू मंदिर भी हैं, जहाँ शंख और घंटे की आवाज पूजा के दौरान गूंजती है। कुछ जगहों पर चर्च और मस्जिद भी दिखे। वहाँ सबसे उल्लेखनीय बात यह दिखी कि सड़क किनारे कोई भी मंदिर नहीं दिखा। मंदिरों में पार्किंग और शेड की व्यवस्था भी दिखी।


धर्म के प्रति आस्था के चलते यहाँ दोनों हाथ जोड़कर नमस्कार करने की परंपरा है। दुकानों में सामान की खरीदी के बाद दुकानदार ग्राहक को दोनों हाथ जोड़कर प्रणाम करता है। थाई में सुबह-सुबह अभिनंदन के लिए महिलाएँ सबातीखा और पुरुष सबातीक्राप शब्द का इस्तेमाल करते हैं। थाईलैंड में हाथी का विशेष महत्व है। घरों की दीवारों पर हाथी की आकृतियाँ देखने को मिलती हैं। पेंटिंग और वस्त्रों पर भी हाथी का चित्रांकन दिखता है। पटाया से करीब 20 किमी दूर नूनचुंग विलेज में हाथियों की प्रतियोगिता रोजाना आयोजित होती है।

वे पर्यटकों को विशेष मेहमान मानते हैं। यह प्रतियोगिता पर्यटकों को काफी आकर्षित करती है। पर्यटकों के मनोरंजन के लिए पटाया में टिफनी शो का आयोजन होता है। यह शो थाई, भारतीय और यूरोपीय देशों का मिलाजुला सांस्कृतिक समागम होता है। इसमें कलाकार तरह-तरह के रूप धारण कर नृत्य करते हैं। पटाया में पर्यटकों के मनोरंजन के लिए और भी कई तरह के कार्यक्रम आयोजित होते हैं। इन कार्यक्रमों के लिए टिकट के रूप में 500 से 1500 बाथ तक देना होता है।