इस्लामी धर्म के प्रमुख मत यह हैं
ईश्वर की एकता
मुसलमान एक ही ईश्वर को मानते हैं, जिसे वो अल्लाह (फ़ारसी: ख़ुदा) कहते हैं। एकेश्वरवाद को अरबी में तौहीद कहते हैं, जो शब्द वाहिद से आता है जिसका अर्थ है एक। इस्लाम में इश्वर को मानव की समझ से ऊपर समझा जाता है। मुसलमानों से इश्वर की कल्पना करने के बजाय उसकी प्रार्थना और जय जयकार करने को कहा गया है। मुसलमानों के अनुसार इश्वर अद्वितीय हैः उसके जैसा और कोई नहीं। इस्लाम में ईश्वर की एक विलक्षण अवधारणा पर ज़ोर दिया गया है। साथ में यह भी माना जाता कि उसकी पूरी कल्पना मनुष्य के बस में नहीं है।
कहो: है ईश्वर एक और अनुपम।
है ईश्वर सनातन, हमेशा से हमेशा तक जीने वाला।
उसकी न कोई औलाद है न वह खुद किसी की औलाद है।
और उस जैसा कोई और नहीं॥”
(कुरान, सूरत ११२, आयते १ - ४)
नबी और रसूल
इस्लाम के अनुसार ईश्वर ने धरती पर मनुष्य के मार्गदर्शन के लिये समय समय पर किसी व्यक्ति को अपना दूत बनाया। यह दूत भी मनुष्य जाति में से होते थे और ईश्वर की ओर लोगों को बुलाते थे। ईश्वर इन दूतों से विभिन्न रूपों से समपर्क रखते थे। इन को इस्लाम में नबी कहते हैं। जिन नबियों को इश्वर ने स्वयं शास्त्र या धर्म पुस्तकें प्रदान कीं उन्हें रसूल कहते हैं। मुहम्मद साहिब भी इसी कड़ी का हिस्सा थे। उनको जो धार्मिक पुस्तक प्रदान की गयी उसका नाम कुरान है। कुरान में ईश्वर के २५ अन्य नबियों का वर्णन है। स्वयं कुरान के अनुसार ईश्वर ने इन नबियों के अलावा धरती पर और भी कई नबी भेजे हैं जिनका वर्णन कुरान में नहीं है।
सभी मुसलमान ईश्वर द्वारा भेजे गये सभी नबियों की वैधता स्वींकार करते हैं और मुसलमान मुहम्मद साहब को ईशवर का अन्तिम नबी मानते हैं। अहमदिय्या समुदाय के लोग मुहम्मद साहब को अन्तिम नबी नहीं मानते हैं और स्वयं को इस्लाम का अनुयायी भी कहते हैं। भारत के उच्चतम न्यायालय के अनुसार उनको भारत में मुसलमान माना जाता है।[३] कई अन्य प्रतिष्ठित मुसलमान विद्वान समय समय पर पहले भी मुहम्मद साहब के अन्तिम नबी होने पर सवाल उठा चुके हैं।[४][५][६]
धर्म पुस्तकें
मुसलमानों के लिये ईश्वर द्वारा रसूलों को प्रदान की गयी सभी धार्मिक पुस्तकें वैध हैं। मुसलमनों के अनुसार कुरान ईश्वर द्वारा मनुष्य को प्रदान की गयी अन्तिम धार्मिक पुस्तक है। कुरान में चार और पुस्तकों की चर्चा है:
सहूफ़ ए इब्राहीमी जो कि इब्राहीम को प्रदान की गयीं। यह अब लुप्त हो चुकी है।
तौरात जो कि मूसा को प्रदान की गयी।
ज़बूर जो कि दाउद को प्रदान की गयी।
इंजील जो कि ईसा को प्रदान की गयी। मुसलमान यह समझते हैं कि ईसाइयों और यहूदियों ने अपनी पुस्तकों के संदशों में बदलाव कर दिये हैं। वह इन चारों के अलावा अन्य धार्मिक पुसतकों की होने की सम्भावना से इन्कार नहीं करते हैं।
फरिश्ते
मुसलमान फरिश्तों (अरबी में मलाइका) के अस्तित्व को मानते हैं। उनके अनुसार फरिश्ते स्वयं कोई इच्छाश्क्ति नहीं रखते और केवल ईश्वर की आज्ञा का पालन ही करते हैं। वह खालिस रोशनी से बनीं हूई अमूर्त और निर्दोष हस्तियों हैं जो कि न मर्द हैं न औरत बल्कि इंसान से हर लिहाज़ से अलग हैं। हालांकि अगणनीय फरिश्ते है पर चार फरिश्ते कुरान में प्रभाव रखते हैं:
जिब्राईल (Gabriel) जो नबीयों और रसूलों को इश्वर का संदेशा ला कर देता है।
इज़्राईल (Azrael) जो इश्वर के समादेश से मौत का फ़रिश्ता जो इन्सान की आत्मा ले जाता है।
मीकाईल (Michael) जो इश्वर के समादेश पर मौसम बदलनेवाला फ़रिश्ता।
इस्राफ़ील (Raphael) जो इश्वर के समादेश पर कयामत के दिन की शुरूवात पर एक आवाज़ देगा।
कयामत
मध्य एशिया के अन्य धर्मों की तरह इस्लाम में भी कयामत का दिन माना जाता है। इसके अनुसार ईशवर एक दिन संसार को समाप्त करेगा। यह दिन कब आयेगा इसकी सही जानकारी केवल ईश्वर को ही है। इसे मुसलमान कयामत का दिन कहते हैं। इस्लाम में शारीरिक रूप से सभी मरे हुए लोगों का उस दिन जी उठने पर बहुत ज़ोर दिया गया है। उस दिन हर इनसान को उसके अच्छे और बुरे कर्मों का फल दिया जाएगा। इस्लाम में हिन्दू मत की तरह समय के परिपत्र होने की अवधारणा नहीं है। कयामत के दिन के बाद दोबारा संसार की रचना नहीं होगी।
तक़दीर
मुसलमान तक़दीर को मानते हैं। तक़दीर का मतलब इनके लिये यह है कि ईश्वर बीते हुए समय, वर्तमान और भविष्य के बारे में सब जानता है। कोई भी चीज़ उसकी अनुमति के बिना नहीं हो सकती है। मनुष्य को अपनी मन मरज़ी से जीने की आज़ादी तो है पर इसकी अनुमति भी ईश्वर ही के द्वारा उसे दी गयी है। ईस्लाम के अनुसार मनुष्य अपने कुकर्मों के लिये स्वयं जिम्मेदार इस लिये है क्योंकि उन्हें करने या न करने का निर्णय ईश्वर मनुष्य को स्वयं ही लेने देता है। उसके कुकर्मों का भी पूर्व ज्ञान ईश्वर को होता है।
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