पद्मपुराणके उत्तरखण्डमें भगवान श्रीकृष्ण युधिष्ठिर से बोले-धर्मनन्दन! राजा मान्धाताने महामुनिवशिष्ठ को यह बताया था कि फाल्गुन के शुक्लपक्ष की एकादशी का नाम आमलकी है। इसका पवित्र व्रत विष्णुलोककी प्राप्ति करने वाला है। मान्धाताके पूछने पर वशिष्ठजीने आंवले के वृक्ष की उत्पत्ति की कथा और उसकी महिमा बताते हुए कहा कि आमलकी एकादशी में आंवले के वृक्ष के पास जाकर वहां रात्रि में जागरण करना चाहिए। इससे मनुष्य सब पापों से छूट जाता है और सहस्रगोदानोंका फल प्राप्त करता है।
व्रती शरीर में मृत्तिका लगाकर स्नान करे। इस एकादशी में श्रीभगवान विष्णु के अवतार श्रीपरशुरामजी की पूजा की जाती है। पूजनोपरांतइस मंत्र से उन्हें अर्घ्यदें-
नमस्तेदेवदेवेशजामदग्न्यनमोऽस्तुते।
गृहाणार्घ्यमिमंदत्तमामलक्यायुतंहरे॥
देवदेवेश्वर! जगदग्नि-नन्दन! श्रीहरिके स्वरूप परशुरामजी! आपको नमस्कार है, नमस्कार है। आंवले के फल के साथ दिया हुआ मेरा यह अर्घ्यग्रहण कीजिए।
तदनन्तर भगवन्नामका स्मरण,जप,संकीर्तन करते हुए रात भर जगें। उसके बाद भगवान विष्णु के नाम लेते हुए आंवले के वृक्ष की 108 अथवा 28 परिक्रमा करें। द्वादशी में किसी आचार्य को भोजन कराकर पूजा में चढाई गई सामग्री उन्हें दे दें। फिर स्वयं भी व्रत का पारण करें। ऐसा करने से समस्त तीर्थो की यात्रा का पुण्यफलप्राप्त होता है। सब प्रकार के दान देने से मिलने वाला फल भी इस एकादशी के व्रत का विधिपूर्वक पालन करने से उपलब्ध हो जाता है। आमलकीएकादशी के व्रत से सब यज्ञों की अपेक्षा अधिक फल मिलता है। यह दुर्धर्षव्रत मनुष्य को सब पापों से मुक्त करने वाला है।
पद्मपुराणके उत्तरखण्डमें इस व्रत के विधान का अतिविस्तृतवर्णन प्राप्त होता है।
20 मार्च 2010
अनुष्ठान: आमलकी एकादशी
Labels: व्रत - त्योंहार
Posted by Udit bhargava at 3/20/2010 09:52:00 am
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