वज्रदंष्ट्र की मृत्यु का समाचार सुनकर रावण के सेनापति अकम्पन को उसके शौर्य एवं पराक्रम की प्रशंसा करते हुये राम-लक्ष्मण के विरुद्ध युद्ध करने के लिये भेजा। रावण की आज्ञा पाकर महापराक्रमी अकम्पन सोने के रथ में बैठकर असंख्य चुने हुये भीमकर्मा सैनिकों के साथ नगर से बाहर निकला। उसे अपने ऊपर अगाध विश्वास था। वह समझता था कि उसके सामने मनुष्य और वानर तो क्या, देवता भी नहीं ठहर सकते। रणभूमि में पहुँचते ही उसने दसों दिशाओं को कँपाने वाला सिंहनाद दिया। उसके सिंहनाद से अविचल वीर वानर सेना राक्षस दल पर टूट पड़ी। एक बार फिर अभूतपरूर्व मारकाट मच गई। उन सबके ललकारने और गरजने के स्वर के सामने सागर का गर्जन भी फीका प्रतीत होता था।
अकम्पन ने एक बाण छोड़कर सम्पूर्ण वातावरण को अन्धकारमय कर दिया। हाथ को हाथ सूझना बंद हो गया। योद्धा अपने तथा विपक्षी दल के सैनिकों में भेद न कर सके। वानर वानरों को और राक्षस राक्षसों को मारने लगे। घायल होने पर उनके मुख से निकलने वाली ध्वनि से ही आक्रमणकारी को ज्ञान होता था कि उसने अपने ही दल के सैनिक पर वार किया है। तब सुग्रीव ने एक बाण छोड़कर इस अन्धकार को दूर किया। अपने साथियों को अपने ही हाथों से मरा देख वानरों ने क्रुद्ध होकर वृक्षों, शिलाओं, दाँतों तथा नाखूनों से रिपुदल में भयंकर मारकाट मचा दी जिससे उसके पाँव उखड़ने लगे।
अपनी सेना को भागने के लिये उद्यत देख अकम्पन मेघों के सदृश गर्जना करके अग्नि बाणों से वानर दल को जलाने लगा। वानर सेना को इस प्रकार अग्नि में भस्म होते देख परम तेजस्वी पवनपुत्र हनुमान ने आगे बढ़कर अकम्पन को ललकारा। जब अन्य वानरों ने हनुमान का रौद्ररूप देखा तो वे भी उनके साथ फिर फुर्ती से युद्ध करने लगे। उधर हनुमान को देखकर अकम्पन भी गरजा। उसने अपने तरकस से तीक्ष्ण बाण निकालकर हनुमान को अपने लक्ष्य बनाया। उन्होंने वार बचाकर एक विशाल शिला अकम्पन की ओर फेंकी। जब तक वह शिला अकम्पन तक पहुँचती तब कर उसने अर्द्धचन्द्राकार बाण छोड़कर उस शिला को चूर-चूर कर दिया। इस प्रकार शिला के नषृट होने पर हनुमान ने कर्णिकार का वृक्ष उखाड़कर अकम्पन की ओर फेंका। अकम्पन ने अपने एक बाण से उस वृक्ष को भी नष्ट किया और एक साथ चौदह बाण छोड़कर हनुमान के शरीर को रक्तरंजित कर दिया। इससे हनुमान के क्रोध की सीमा न रही। उन्होंने एक विशाल वृक्ष उखाड़कर अकम्पन के सिर पर दे मारा। इससे वह प्राणहीन होकर भूमि पर गिर पड़ा। अकम्पन के मरते ही सारे राक्षस सिर पर पैर रख कर भागे। वानरों ने उन भागते हुये शत्रुओं को पेड़ों तथा पत्थरों से वहीं कुचल दिया। जो शेष बचे, उन्होंने रावण को अकम्पन के मरने की सूचना सुनाई।
19 मार्च 2010
रामायण – लंकाकाण्ड - अकम्पन का वध
Posted by Udit bhargava at 3/19/2010 05:43:00 am
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