वास्तुशास्त्र के अनुसार पीपल, बड़, नीम, नारियल, चंदन, सुपारी, बेल, आम, अशोक, हल्दी, तुलसी, चंपा, बेला, जूही, आंवला, अंगूर, अनार, नागकेसर, मौलसिरी, हरसिंगार, गेंदा, गुलाब आदि पेड़ पौधे अत्यंत शुभ माने जाते हैं। शास्त्रों में पूर्व दिशा में बरगद, पश्चिम में पीपल, उत्तर में कैथ अथवा बेर और दक्षिण दिशा में गूलर लगाना शुभ माना गया है। घर की वाटिका में ईशान में कटहल, आम, तथा आंवला नैर्ऋत्य में जामुन तथा इमली, अग्नि दिशा में अनार तथा वायव्य में बेल का वृक्ष शुभ शुभ होते हैं। घर में कांटेदार पौधे नहीं लगाने चाहिए, क्योंकि कांटेदार फल-फूल तथा वृक्ष शत्रुता के कारक होते हैं। नारद पुराण, नारद संहिता, राज निघंटु, नारयणी संहिता, वृहद ध्रुश्रुत, शारदा तिलक, मंत्र महार्णव, श्रीविद्या पर्व आदि विभिन्न ग्रंथों में व्यक्ति विशेष की राशि तथा नक्षत्र के अनुसार वृक्षारोपण के एक निश्चित क्रम का उल्लेख है।
यदि कोई अपनी सामर्थ्य, स्थान की सुविधा आदि के अनुरूप पूर्वाभिमुख होकर तथा पंचोपचार पूजन विधि द्वारा वृक्षारोपण करे, तो उसे दैहिक, दैविक तथा भौतिक सभी व्याधियों से मुक्ति मिलेगी। यदि किन्हीं अभावों में व्यक्ति वृक्षारोपण का संपूर्ण क्रम संपन्न नहीं कर पाता, तो उसे अपनी राशि अथवा नक्षत्र के अनुसार कम से कम एक वृक्ष अवश्य लगाना चाहिए। इससे न केवल पर्यावरण में सुधार आएगा, अपितु वास्तु दोषों का भी निवारण होगा।
जन्म लग्न के अनुसार वृक्षारोपण
जहां वृक्षारोपण लग्न क्रम में करना हो, वहां पूर्व दिशा में अपने लग्न का वृक्ष लगा ना चाहिए। यहां से घड़ी की विपरीत दिशा में क्रम से अन्य वृक्ष लगाएं। ये आयताकार, वर्गाकार अथवा वृत्ताकार किसी भी क्रम में लगाए जा सकते हैं। जैसे यदि लग्न मेष राशि में उदित हो, तो सबसे पहले खादिर अर्थात कत्थे का वृक्ष लगाएं। फिर क्रमशः २ के स्थान पर गूलर ३ के स्थान पर अपामार्ग आदि। ये किसी भी आकृति में लगाएं।
नव ग्रह वृक्षारोपण विधि
वर्गाकार आकार में ही आकृति के अनुरूप वृक्षारोपण करें। ध्यान रहे, पीपल का वृक्ष उत्तर दिशा में हो।
जन्म नक्षत्र के अनुरूप वृक्षारोपण
जिन्हें अपना जन्म नक्षत्र ज्ञात हो, वे वास्तु के नियमों के अनुरूप उस नक्षत्र से संबंधित वृक्ष कहीं भी लगा सकते हैं।
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