यमराज सूर्य के पुत्र है और उनकी माता का नाम संज्ञा है। उनका वाहन भैंसा और संदेशवाहक पक्षी कबूतर, उल्लू और कौवा माना जाता है।
उनका अचूक हथियार गदा है। यमराज अपने हाथ के कालसुत्र या कालपाश की बदौलत जीव के शरीर से प्राण निकाल लेते हैं। यमपुरी यमराज की नगरी है, जिसके दो महाभयंकर चार आंखो वाले कुते पहरेदार है। यमराज अपने सिंहासन पर न्यायमूर्ति की तरह बैठकर विचार भवन कालीची मे मृतात्माओं को एक-एक कर बुलवाते है, जहां चित्रगुप्त सब प्राणियों की बही खोलकर लेखा-जोखा प्रस्तुत करते है। कर्मो को ध्यान मे रखकर यमराज अपना फैसला देते हैं, क्योंकि वे जीवों के शुभाशुभ कर्मो के निर्णायक है।
यमराज की यूं तो कई पत्नियां थी, लेकिन उनमें सुशीला, विजया और हेमनाल अधिक जानी जाती हैं। उनके पुत्रों मे धर्मराज युधिष्ठिर को भी जानते हैं। न्याय के पक्ष मे फैसला देने के गुणो के यमराज और युधिष्ठिर जगत मे धर्मराज के नाम से जाने जाते है। यम दितीया के अकसर पर जिस दिन भाई-बहन का त्योहार भैया-दूज मनाया जाता है। यम और यमुना कर पूजा का विधान बनाया गया है । उल्लेखनीय है कि यमुना नदी को यमराज की बहन माना जाता है।
भौमवारी चतुर्दशी को यमतीर्थ के दर्शन कर सब पापों से छुटकारा मिल जाए, उसके लिए प्राचीन काल मे यमराज ने यमतीर्थ मे कठोर तपस्या करके भक्तों को सिद्धि प्रदान करने वाले यमेश्वर और यमादित्य मंदिरा की स्थापना की थी। यम द्वितीया को सहां मेला लगता है। इन मंदिरा को प्रणाम करने वाले एवं यमतीर्थ मे स्नान करने वाले मनुष्यो को नारकीय यातनाओं को न तो भोगना पड़ता है। इसके अलावा मान्यता तो यहां तक है कि यमतीर्थ मे श्राद्ध करके, यमेश्वर का पूजन करने और यमादित्य को प्रणाम करके व्यक्ति अपने पितृ-ऋण से भी उऋण हो सकता है।
श्राद्ध कृत्या यमे तीर्थे पूजयित्वा यमेश्वरम् ॥
यमादित्यं नमस्कृत्य पितृणामनृणो भवेत् ॥
दीपावली से पूर्व दिन यमदीप देकर तथा दूसरे पर्वो पर यमराज की अराधना करके मनुष्य उनकी कृपा प्राप्त करने के उपाय करता है। पुराणों मे ऐसा उल्लेख मिलता है किसी समय माण्डव ऋषि ने कुपित होकर यमराज को मनुष्य के रूप मे जन्म लेने का शाप दिया। इसके कारण यमराज ने ही दासी पुत्र के रूप में धृतराष्ट तथा पाण्डु के भाई होकर जन्म लिया। यूं तो यमराज परम धार्मिक और भगवद् भक्त है। मनुष्य जन्म लेकर भी वे भगवान् के परम भक्त तथा धर्म-परायण ही बने रहे।
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