असाध्य बीमारियों के इलाज के लिए लोगों का झाड़-फूँक, टोने-टोटके तथा देवी-देवताओं का सहारा लेना एक आम बात है। आज हम आपको आस्था और अंधविश्वास की कड़ी में एक ऐसी जगह ले चलते हैं, जहाँ पीलिया का इलाज करने का एक अनूठा तरीका अपनाया जाता है।
पीलिया से ग्रस्त मरीजों की भीड़ का यह नजारा किसी डॉक्टर के क्लिनिक का नहीं बल्कि एक मंजीत पाल सलूजा की दुकान का है जो अपनी अनूठी विद्या से पीलिया दूर करने का दावा करते हैं। वे मरीजों के कान पर कागज का कोन बनाकर लगाते हैं और मोमबत्ती के सहारे कागज को जलाते हैं और साथ-साथ गुरुवाणी का उच्चारण करते जाते हैं। मंजीत जी इलाज के पहले गणेशजी की पूजा करना नहीं भूलते। जला हुआ कोन जब कान से हटाया जाता है तो कान के आसपास पीले रंग का पदार्थ इकट्ठा हो जाता है। मंजीत पाल के अनुसार यह पीलिया है, जो मरीज के शरीर से बाहर निकलता है।
उपचार हेतु पहले दिन आने वाले मरीज को साथ में हार-फूल, अगरबत्ती और नारियल लाना आवश्यक होता है। साथ ही यहाँ आने वाले लोग अपनी श्रद्धा के अनुसार यहाँ चढ़ावा रखकर जाते हैं। मंजीत का कहना है कि वे मरीजों को नि:शुल्क सेवा प्रदान करते हैं। चढ़ावा तो मरीजों की श्रद्धा का प्रतीक मात्र है।
यहाँ आने वाले मरीजों को भी डॉक्टरी इलाज से ज्यादा इस विद्या पर अधिक विश्वास है। उनका मानना है कि दवा के साथ दुआ के असर से ही इस बीमारी से छुटकारा पाया जा सकता है।
गुरुवाणी का उच्चारण करते हुए मरीजों का इलाज करने वाले मंजीत का कहना है कि हमारे परिवार को इस विद्या का ज्ञान भगवान की देन है। उनके पिता व दादाजी भी इस अनूठी विद्या से लोगों के दर्द को दूर किया करते थे। वे यहाँ आने वाले मरीजों को एक विशेष दवा, जो कि आयुर्वेदिक और होम्योपैथी दवा का मिश्रण होती है, के ड्राप्स भी पिलाते हैं। वे रोजाना करीब 80 से 90 लोगों का इलाज करने का दावा करते हैं। उनका यह भी कहना है कि वे मरीज को केवल देखकर ही यह अनुमान लगा लेते हैं कि पीलिया उतरने में कितना समय लगेगा।
मंजीत पाल सलूजा के अनुसार यहाँ डॉक्टरों द्वारा भेजे गए मरीजों के अलावा कई डॉक्टर्स स्वयं यहाँ आकर खुद को व परिजनों का भी इलाज कराते हैं। पीलिया जैसी असाध्य बीमारी के इलाज हेतु इस तरह की विद्या पर विश्वास करना लोगों के अंधविश्वास को प्रकट करता है या इस विद्या के पीछे किसी वैज्ञानिक तरीका होने का अंदाज लगाया जा सकता है।
06 अप्रैल 2010
पीलिया का अनोखा इलाज
Labels: आस्था या अन्धविश्वास
Posted by Udit bhargava at 4/06/2010 08:59:00 pm
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