07 अप्रैल 2010

प्राणायाम का लें सहारा

ऋतु बदलने का असर शरीर के प्रत्येक हिस्से पर समान रूप से पड़ता है। बीमारियां और छोटी-छोटी स्वास्थ्य समस्याएं तकरीबन हर अंग को प्रभावित करती हैं। ऐसे में नाक, कान और गले से जुड़ी अनगिनत समस्याओं के प्रति भी सावधान रहने की ज़रूरत है।

गर्मी के मौसम में नाक सर्दी, ज़ुकाम और एलर्जी से परेशान होती है, तो गला भी टॉन्सिल और खराश से प्रभावित होता है। जबकि कान कम सुनाई देने और हमिंग की शिकायत करते हैं। इन सबकी शिकायतों को दूर करने और स्वयं को स्वस्थ रखने के लिए योग का सहारा लीजिए, रोग तुरंत भाग जाएंगे। नाक, कान और गले के विभिन्न समस्याओं, जो इस मौसम में सिर उठाती है, से निपटने के लिए योग मार्गदर्शन प्रस्तुत है।

अनुलोम-विलोम प्राणायाम

पदमासन या सुखासन में बैठकर आंखें बंद करते हुए सीधा तनकर बैठ जाएं। अब दायां हाथ घुटने पर रखें और बाएं हाथ के अंगूठे को दाईं नासिका पर रखें। तर्जनी उंगली दोनों आंखों के बीच, जहां टीका लगाते है, वहां रखें तथा मध्यमा उंगली को बाईं नासिका पर रखें।

अब बाईं नासिका से श्वास लीजिए (इस दौरान दायां स्वर बंद रहेगा) तत्पश्चात बाईं नासिका बंद कर दाईं नासिका खोलें और श्वास बाहर करें। अब दाईं नासिका से श्वास लें और बाईं नासिका से सांस छोड़े। यह क्रमबद्ध अभ्यास लगभग 30 चक्र तक करें। किसी भी प्रकार की थकान और तनाव महसूस होने पर अभ्यास रोक दें और कुछ देर रुककर फिर शुरू करें। साथ ही श्वास-प्रश्वास में किसी भी तरह के बल का प्रयोग न करें।

लाभ

अनुलोम विलोम प्राणायाम मन को एकाग्र करने में लाभदायक है। इसके अभ्यास से शरीर में अतिरित ऑसीजन की आपूर्ति बढ़ जाती है। आंखों के लिए भी यह लाभदायक है। गले में जलन तथा पुराने जमे हुए कफ को दूर करता है। दमे के मरीजों के लिए यह प्राणायाम अत्यंत प्रभावशाली है।

भ्रामरी प्राणायाम

इस प्राणायाम की क्रिया में भ्रमर के गुंजन जैसी आवाज निकलती है इसलिए इसका नाम भ्रामरी प्राणायाम है। ध्यान के किसी भी आसन में बैठें। सिद्धासन और सिद्धयोगि आसन श्रेयस्कर है। हर स्थिति में मेरूदंड सीधा, आंखें बंद और शरीर सीधा पर शिथिल रखें। दोनों नाक से एक साथ लम्बी सांस भीतर लें।

सांस को भीतर रोककर कुछ क्षण के लिए जालंधर बंध और मूल बंध लगाएं। अब पुन: दोनों बंधों को शिथिल कर सिर सीधा कर लें। दोनों हाथों की तर्जनी उंगली से दोनों कान को अच्छी तरह से बंद कर दें, जिससे बाहर की कोई ध्वनि सुनाई न पड़े।

उंगलियों के नाखून अच्छी तरह कटे हुए हों, यह पूर्व में ही सुनिश्चित कर लें। मुंह बंद रखते हुए ही, लेकिन ऊपर और नीचे के दांतों को अलग रखते हुए मधुमखी की गुंजार जैसी ध्वनि करते हुए श्वास को धीरे-धीरे नाक से तब तक बाहर निकालते जाएं, जब तक सांस पूरी तरह से बाहर न निकल जाए।

लाभ

नाक, कान और गले से जुड़े प्रत्येक रोग में भ्रामरी अत्यंत उपयोगी प्राणायाम है। ग्लैंड्स की शक्ति  बढ़ती है और मस्तिष्क को भी काफी शांति मिलती है।

कैसी है आपकी श्वसन प्रक्रिया

आपकी श्वसन प्रक्रिया सही है या गलत, यह आप खुद जांच सकती हैं। वो भी सिर्फ 1 मिनट में। अपनी श्वसन प्रक्रिया पर 1 मिनट के लिए ध्यान दीजिए। आप कितनी बार सांस लेती और छोड़ती हैं, इसी आधार पर तय हो सकेगा कि आपकी श्वसन प्रक्रिया सही है अथवा गलत देखिए कैसे-

यदि आप 1 मिनट में 8 से 10 बार सांस लेती हैं, तो चिंतामुत हो जाइए योंकि आपकी श्वसन प्रक्रिया बिल्कुल दुरुस्त है। यदि इसी 1 मिनट में आप 12 से 15 बार सांस लेती हैं, तो आपको तत्काल योग या दूसरे व्यायामों का सहारा लेना चाहिए।

लेकिन यदि आप 1 मिनट में 15 से ज्यादा बार सांस लेती हैं, तो आपकी श्वसन प्रक्रिया में अत्यंत सुधार लाने की ज़रूरत है और आपको इस विषय पर तुरंत डॉटरी परामर्श लेने की आवश्यकता है।