07 अप्रैल 2010

मौन व्रत

आध्यात्मिक उन्नति के लिए वाणी का शुद्ध होना परमावश्यक है । मौन से वाणी नियंत्रित एवं शुद्ध होती है । इसीलिए हमारे शास्त्रों में मौन का विधान बनाया गया है । श्रावण मास की समाप्ति के बाद भावप्रद प्रतिपदा से १६ दिनों तक इस व्रत के अनुष्ठान का विधान है । ऐसी मान्यता है कि मौन से सब कामनाएं पूर्ण होती हे । ऐसा साधक शिवलोक को प्राप्त होता है । मौन के साथ श्रेष्ठ चिंतन्‌, ईश्वर स्मरण आवश्यक है । शास्त्रकार ने मौन के साथ की गणना पांच तपों मे की है -

मनः प्रसादः सौभ्यत्वं मौनमात्मविनिग्रहः ।
भावसंशद्धिरित्येततपो मानसमुच्यते ॥

अर्थात्‌ मन की प्रसन्नता, सौभ्य-स्वभाव, मौन, मनोनिग्रह और शुद्ध विचार ये मन के तप है।
इनमे मौन का स्थान मध्य में है । मन के परिष्कार तथा संयम के लिए मन की प्रसन्नता धारण की जाए, सौभ्यता धारण की जाए तत्पश्यात्‌ मौन का प्रयोग किया जाए । इसके प्रयोग से शुद्ध विचार उत्पन्न होते हैं । मन का परिष्कार होकर चंचलता और व्यर्थ चिंतन से मुक्ति होती है ।
चाणक्य नीति दर्पण मे कहा गया है : जो मनुष्य प्रतिदिन पूरे संवत मौन रहकर भोजन करता है, वह दस हजार कोटि वर्ष तक स्वर्ग में पूजा जाता है।

मौन की महिमा अपार है। मौन से क्रोध का दमन, वाणी का नियंत्रण,शरीर बल एवं आत्मबल में वृद्धि, मन को शांति तथा मस्तिष्क को विश्राम मिलता है, जिससे आंतरिक शक्तियों का विकास होता है और ऊर्जा का क्षरण रूकता है। इसलिए मौन व्रत को व्रत की संज्ञा दी गई है।

मौन के संबंध में महाभारत में एक कथा है। जब महाभारत का अंतिम श्लोक महर्षि वेदव्यास द्वारा बोला गया और गणेश जी द्वारा भोज पत्र पर लिखा जा चुका, तब महर्षि वेदव्यास ने कहा -÷विनेश्वर धन्य है आपकी लेखनी ! महाभारत का सृजन तो वस्तुतः परमात्मा ने किया है, पर एक वस्तु आपकी लेखनी से अधिक विस्मयकारी है- वह है आपका मौन। इस अवधि में मैंने तो १५-२० लाख शब्द बोल डाले, परंतु आपके मुख मे मैंने एक शब्द नहीं सुना।' इस पर गणेश जी ने मौन की व्याख्या करते हुए कहा-÷बादरनारायण, किसी दीपक में अधिक तेल होता है और किसी में कम, तेल का अक्षय भंडार किसी दीपक में नहीं होता। उसी प्रकार देव, मानव और दानव आदि जितने भी तनधारी जीव हैं, सबकी प्राण शक्ति सीमित है, उसका पूर्णतम लाभ वही पा सकता है, जो संयम से इसका उपयोग करता है। संयम का प्रथम सोपान है- वाक्‌ संयम। जो वाणी का संयम नहीं रखता, उसके अनावश्यक शब्द प्राणशक्ति को सोख डालते हैं। वाक्‌संयम से यह समस्त अनर्थपरंपरा दग्धबीज हो जाते है। इसीलिए मैं मौन का उपासक हूं।

2 टिप्‍पणियां:

  1. बेहतरीन आलेख.... धन्यवाद

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  2. वाणी संयम की महिमा सुनकर बहुत अच्छा लगा,
    आपका बहुत बहुत धन्यवाद

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