जैसे अग्नि से तपाये हुए स्वर्ण, रजत आदि धातुओ के मल दूर हरे जाते है, वैसे ही प्राणायाम के अनुष्ठान से इंद्रियो मे आ गए दोष, विकार आदि नष्ट हो जाते है और केवल इन्द्रियों के ही नही, बल्कि देह, प्राण, मन के विकार भी नष्ट हो जाते हैं तथा ये सब साधक के वश में हो जाते है ।
योग दर्शन के अनुसार- ततः क्षीयते प्रकाशावरणम्-
प्राणायाम के अभ्यास से विवेक (ज्ञान) रूपी प्रकाश पर पड़ा अज्ञान रूपी आवरण (पर्दा) हट जाता है । योगचूडामणि मे कहा गया है कि प्राणायाम मे पाप जल जाते हैं । यह संसार समुद्र को पार करने के लिए महासेतुरूप है ।
यो तो प्राणायाम का मुरव्य उदेश्य अध्यात्मिक साधना का मार्ग प्रशस्त करना है, फिर भी शारीरिक और मानसिक दृष्टिकोण से भी इसका काफी महत्व माना गया है। इससे शरीर को अतिरिक्त आंतरिक सामर्थ्य, बल एवं उर्जा प्राप्त होती है तथा मानसिक शांति मिलती है । मानसिक रोगो से मुक्ति प्राप्त होकर स्मरण शक्ति बढ़ती है । श्वास-प्रश्वास के नियमन से फेफडे मजबूत होते है, जिससे रक्त शुद्ध होता है और शरीर निरोगी बनकर दीर्घायु प्राप्त होती है । प्राणायाम से जठराग्नि प्रदीप्त होती है, मन की चंचलता पर नियंत्रण होता है, इंद्रियो के विकारो से निवृति होती है, चेहरे की क्रांति बढती है, मोटापा दूर होता है, और भूख-प्यास पर निंयत्रण होता है । इसके उंचे अभ्यास से आयु को बढ़ाना संभव है और इच्छामृत्यु को प्राप्त किया जा सकता है ।
वैज्ञानिक दृष्टि से प्राणायाम से शरीर के विभिन्न हिस्सों और अंगो पर दबाब पड़ता है, जिसके कारण उस क्षेत्र का रक्त संचार बढ जाता है । परिणामस्वरूप उन अंगो की स्वस्थता बढती है । प्राणायाम मे ली गई गहरी सांस से मस्तिष्क से सारा दूषित खून बह जाता है और हदय का शुद्ध रक्त उसे अधिक मात्रा मे मिलता है । योग मे उड्ड़ियान बंध के प्रयोग से इतना अधिक शुद्ध रक्त
उसे अधिक मात्रा में मिलता है । जितना किसी श्वास संबंधी व्यायाम से नही । अतः प्राणायाम स्वास्थय के लिए अत्यंत आवश्यक है । इससे शरीर शुद्धि के अलावा मनोबल बढता है । इसीलिए हमारे महर्षियों ने संध्यावंदन के साथ नित्य प्राणायाम का नियम बनाया है ।
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