सतपुड़ा की पहाड़ियों के बीच घने जंगल में हर साल वसंत पंचमी से पूर्णिमा तक लगने वाला शिवाबाबा का मेला वैसे तो दिखने में एक आम ग्रामीण मेले की तरह ही है। कैसेट-सीडी, खेल-खिलौने, मिठाइयाँ, कपड़े, बर्तनों से सजी दुकानें, खरीदारी करते लोग, परंतु इन सबके अलावा भी ऐसा कुछ है यहाँ, जो खास बनाता है इस मेले को इस पूरे क्षेत्र में। जी हाँ, शिवाबाबा के मेले में लोग आते हैं मन्नतें लेकर और जब मन्नत पूरी होती है तो भेंट में चढ़ाते हैं बकरे। कोई एक तो कोई दो तो कोई पाँच-पाँच बकरे अपनी मुराद पूरी होने के बाद शिवाबाबा को चढ़ाते हैं।
शिवाबाबा के बारे में मान्यता है कि वे एक संत थे, जिनके चमत्कारों की प्रसिद्धि इस इलाके के हर एक शख्स की जबान पर है। यहाँ शिवाबाबा को भगवान शिव का अवतार मानकर पूजा की जाती है। मंदिर के पास एक बाबा जोगीनाथ का कहना है कि यह बहुत ही अद्भुत दरबार है। देर की तो बात ही नहीं, बस इधर माँगो और उधर इच्छा पूरी हो जाती है।
मन्नत पूरी होने पर लोग अपने परिजनों और दोस्तों के साथ मेले में पहुँचते हैं और फिर सजे-धजे बकरे की पूजा कर पूरे जोर-शोर से शिवाबाबा के मंदिर की ओर ले जाया जाता है। शिवाबाबा के मंदिर में स्थित देवी की प्रतिमा के सामने पुजारी बकरे पर जल छिड़ककर उसे देवता को अर्पित कर देता है।
यहाँ लाए जाने वाले ज्यादातर बकरों की बलि दी जाती है, जबकि कुछ अन्य को जंगल में छोड़ दिया जाता है। पहले बलि मंदिर के सामने स्थित चहारदीवारी में दी जाती थी, लेकिन अब यहाँ बलि देने की मनाही है अत: अब बकरे की बलि लोग अपने ठहरने के स्थान पर जाकर देते हैं। बलि के बाद बकरे के माँस को शिवाबाबा का प्रसाद मानकर मिल-बाँटकर खाया जाता है। प्रसाद को लोग मेला क्षेत्र से बाहर या अपने घर नहीं ले जा सकते। बचने पर प्रसाद को वहीं गरीबों में बाँट दिया जाता है।
मेले में आए एक कसाई से जब हमने बात की तो उसने बताया कि हर साल सम्पूर्ण मेला अवधि में करीब दो लाख बकरों की बलि चढ़ाई जाती है। उसने यह भी बताया कि उस दिन सुबह से लेकर दोपहर तीन बजे तक करीब पाँच हजार बकरों की बलि दी जा चुकी है।
कहते हैं कि शिवाबाबा की कृपा से मेले के दौरान इस इलाके में मक्खियाँ और चीटियाँ नहीं होती हैं। हमने इस तथ्य की जाँच-परख की। हमने पूरा मेला क्षेत्र देखा, बकरों के कटने के स्थान देखे, मिठाइयों की दुकानें देखीं परंतु वाकई हमें एक भी मक्खी दिखाई नहीं दी। यह एक बहस के विषय हो सकता है कि क्या बकरे की बलि देने से कोई देवता प्रसन्न हो सकता है?
06 अप्रैल 2010
शिवाबाबा का प्रसिद्ध मेला
Labels: आस्था या अन्धविश्वास
Posted by Udit bhargava at 4/06/2010 07:34:00 pm
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