सुबह सुबह रास्तेपर बॅग हाथमें लेकर विवेककी कही जानेकी गडबड चल रही थी।
पिछेसे दौडते हूए आकर उसके दोस्त जॉनीने उसे जोरसे आवाज दिया, '' ए सुन गुरु... इतनी सुबह सुबह कहां जा रहा है''
विवेकने मुडकर देखा और उसे अनदेखा करते हूए फिरसे पहले जैसे जल्दी जल्दी सामने चलने लगा।
'' किसी लडकी के साथ भाग तो नही जा रहे हो ?...'' जॉनीने वह रुक नही रहा है और उसकी गडबड देखते हूए पुछा।
जॉनी अबभी उसके पिछेसे दौडते हूए उसके पास पहूंचनेकी कोशीश कर रहा था।
'' क्या सरदर्द है ... जरा दो दिन बाहर जा रहा हूं ... उसका भी इतना ढींढोरा... '' विवेक बडबड करते हूए सामने चल रहा था।
'' दो दिन बाहर जा रहा हूं ... उतनाही तूमसे छूटकारा मिलेगा'' विवेकने चलते हूए जोरसे जॉनीको ताना मारते हूए कहा।
'' थोडी देर रुको तो सही ... तुमसे एक अर्जंट बात पुछनी थी। ...'' जॉनीने कहा.
विवेक रुक गया और जॉनी दौडते हूए आकर उसके पास पहूंच गया।
'' बोलो ... क्या पुछना है ? ... जल्दी पुछो ... नही तो उधर मेरी बस छूट जाएगी '' विवेक बुरासा मुंह बनाकर बोला।
'' क्या हूवा फिर कल ?'' जॉनीने पुछा।
'' किस बातका ?'' विवेकने प्रतिप्रश्न किया।
'' वही उस मेलका? ... कल मेल भेजी की नही ? '' जॉनीने उसे छेडते हूए उसके गलेमें हाथ डालकर पुछा।
'' अजीब बेवकुफ हो तूम ... किस वक्त किस बातका महत्व है इसका कोई तुम्हे सरोकार नही होता... उधर मेरी बस लेट हो रही है और तुम्हे उस मेलकी पडी है ...'' विवेक झल्लाते हूए उसका हाथ अपने कंधेसे झटकते हूए बोला।
विवेक अब फिरसे तेजीसे आगे बढने लगा।
'' क्या बात करते हो यार तूम ?... बससे कभीभी मेल महत्वपुर्ण होगी ... अब मुझे बता॥ हावडा मेल, राजधानी मेल.... ये सारी मेल बडी की वह तुम्हारी टपरी बस?'' जॉनी अबभी उसके पिछे पिछे जाते हूए उसे छेडते हूए बोला।
विवेक समझ चूका था की अब जॉनीसे बात करनेमें कोई मतलब नही था। वह अपने बडे बडे कदम बढाते हूए आगे चलने लगा. और जॉनीभी बकबक करते हूए और उसे छेडते हूए उसके साथ साथ चलने लगा.
04 फ़रवरी 2010
Hindi books - Novel Elove : CH-6 : उस मेलका क्या हूवा ?
Posted by Udit bhargava at 2/04/2010 07:46:00 am
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