इंटरनेट कॅफेमें विवेक एक कॉम्प्यूटरके सामने बैठकर कुछ कर रहा था। एक उसकेही उम्रके लडकेने, शायद उसका दोस्तही हो, जॉनीने पिछेसे आकर उसके दोनो कंधोपर अपने हाथ रख दिए और उसके कंधे हल्केसे दबाकर कहा, '' हाय विवेक... क्या कर रहे हो ?''
अपने धूनसे बाहर आते हूए विवेकने पिछे मुडकर देखा और फिरसे अपने काममें व्यस्त होते हूए बोला, '' कुछ नही यार... एक लडकीको मेल भेजनेकी कोशीश कर रहा हूं ''
'' लडकीको? ...ओ हो... तो मामला इश्क का है'' जॉनी उसे चिढाते हूए बोला।
'' अरे नही यार... बस सिर्फ दोस्त है ...'' विवेकने कहा।
'' प्यारे ... मानो या ना मानो...
जब कभी लडकीसे बात करना हो और लब्ज ना सुझे...
और जब कभी लडकीको खत लिखना हो और शब्द ना सुझे...
तो समझो मामला इश्क का है ...
''जॉनी उसे और चिढाते हूए बोला।
विवेक कुछ ना बोलते हूए सिर्फ मुस्कुरा दिया।
'' देखो देखो गाल कैसे लाल लाल हो रहे है ...'' जॉनीने कहा।
विवेक फिरसे कुछ ना बोलते हूए सिर्फ मुस्कुरा दिया।
'' जब कोई ना करे इन्कार ...
या ना करे इकरार ...
तो समझो वह प्यार है ''
जॉनी उसे छोडनेके लिए तैयार नही था।
लेकिन अब विवेक चिढ गया, '' तू यहांसे जाने वाले हो या मुझसे पिटने वाले हो? ...''
'' तुम जैसा समझ रहे हो ऐसा कुछ नही है ... मै सिर्फ अपने पिएचडीके टॉपीक्स सर्च कर रहा हूं और बिच बिचमें बोरीयतसे बचनेके लिए मेल्स भेज रहा हूं बस्स...'' विवेकने अपना चिढना काबूमें रखनेकी कोशीश करते हूए कहा।
'' बस्स?'' जॉनी।
'' तुम अब जानेवाले हो? ... या तुम्हारी इतने सारे लोगोंके सामने अपमानीत होनेकी इच्छा है ?'' विवेक फिरसे चिढकर बोला।
'' ओके ॥ ओके... काम डाऊन... अच्छा तुम्हारे पिएचडीका टॉपीक क्या है ?'' जॉनीने पुछा।
'' इट्स सिक्रीट टॉपीक डीयर... आय कान्ट डिस्क्लोज टू ऐनीवन...'' विवेकने कहा।
'' नॉट टू मी आल्सो ?...'' जॉनीने पुछा।
'' यस नॉट टू यू आल्सो'' विवेकने जोर देकर कहा।
'' तुम्हारा अच्छा है ... सिक्रसीके पिछे ... इश्कका चक्करभी चल रहा है ...'' जॉनीने कहा।
'' तूम वह कुछभी समझो ...'' विवेकने कहा।
'' नही अब मै समझनेकेभी आगे पहूंच चूका हूँ ...'' जॉनीने कहा।
'' मतलब ?''
'' मतलब ... मुझे कुछ समझनेकी जरुरत नही बची है ''
'' मतलब ?''
'' मतलब अब मुझे पक्का यकिन हो गया है '' जॉनीने कहा।
विवेक फिरसे चिढकर पिछे मुडा। तबतक जॉनी मुस्कुराते हूए उसकी तरफ देखते हूए वहांसे दरवाजेकी तरफ निकल चूका था।
04 फ़रवरी 2010
Hindi literature - Novel Elove :CH-4 जब लब्ज नही सुझते
Posted by Udit bhargava at 2/04/2010 01:53:00 am
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