अंजली गाडी ड्राईव्ह कर रही थी और गाडीमें आगे उसके बगलकीही सिटपर विवेक बैठा हुवा था। गाडीमें काफी समयतक दोनो अपने आपमें खोए हूए गुमसुमसे बैठे हूए थे.
सच कहा जाए तो विवेक उसने सोचे उससेभी जादा चुस्त , तेज तर्रार और देखनेमें उमदा है ... और उसका स्वभाव कितना सिधा और सरल है ...
पहलेही मुलाकातमें शादीके बारेमें सवाल कर उसने अपनी भावनाएं जाहिर की यह एक तरहसे अच्छा ही हुवा॥ सच कहा जाए तो उसने वह सवाल पुछकर मुझेभी उसके बारेमें अपनी भावनाएं व्यक्त करनेका मौका दिया है...
उसे अब उसके बारेंमे एक अपनापन महसूस हो रहा था। उसने अब उसमें अपना भावी सहचारी ... एक दोस्त... जो हमेशा दुख और सुखमें उसका साथ देगा ... देखना शुरु किया था.
उसने सोचते हूए उसकी तरफ एक कटाक्ष डाला। उसनेभी उसकी तरफ देखकर एक मधूर मुस्कुराहट बिखेरी.
लेकिन अब वहभी अपनेही बारेमें सोच रहा होगा क्या?...
'' तूम पढाई वैगेरा कब करते हो... नही ॥ मतलब .. हमेशा तो चॅटींग और इंटरनेटपरही बिझी रहते हो '' अंजली कुछ तो बोलना है और विवेकको थोडा छेडनेके उद्देश्यसे बोली।
विवेक उसके छेडनेका मुड पहचानकर सिर्फ मुस्कुरा दिया।
हालहीमें तुम्हारे कंपनीका प्रोग्रेस क्या कहता है ? '' विवेकने पुछा।
'' अच्छा है ... क्यों?... हमारी कंपनी तो दिनबदीन प्रोग्रेस करती जा रही है '' अंजलीने कहा।
'' नही मैने सोचा ... हमेशा चॅटींग और इंटरनेटपर बिझी होनेसे उसका असर कंपनीके कामपर हुवा होगा। ... नही?'' विवेकभी उसे वैसाही नटखट जवाब देते हूए बोला.
वहभी उसके तरफ देखकर सिर्फ हंस दी। वह उसके इस बातोंमें उलझानेके खुबीसे वाकीफ थी और उसे उसका इस बारेमें हमेशा अभिमान रहा करता था.
अंजलीकी गाडी एक आलीशान हॉटेलके सामने - हॉटेल ओबेरायके सामने आकर रुकी। गाडी पार्कींगमें ले जाकर अंजलीने कहा, '' एक मिनीट मै मेरा मोबाईल हॉटेलमें भूल गई हूं ... वह झटसे लेकर आती हूं और फिर हम निकलेंगे... नही तो एक काम कर सकते है ... कुछ ठंडा या गरम हो जाए तो मजा आ जाएगा ... नही?... और फिर निकलेंगे '' अंजली गाडीके निचे उतरते हूए बोली.
अंजली उतरकर हॉटेलमें जाने लगी और विवेकभी उतरकर उसके साथ हो लिया।
04 फ़रवरी 2010
Hindi books - Novels - ELove CH:15 सहचारी
Posted by Udit bhargava at 2/04/2010 08:35:00 am
सदस्यता लें
टिप्पणियाँ भेजें (Atom)
एक टिप्पणी भेजें