अंजली वर्सोवा बीचपर आकर विवेककी राह देखने लगी। उसने फिरसे एकबार अपनी घडीकी तरफ देखा. विवेकके आनेको अभी वक्त था. इसलिए उसने समुंदरके किनारे खडे होकर दुरतक अपनी नजरे दौडाई. नजर दौडाते हूए उसके विचार जा चक्र भूतकालमें चला गया. उसके दिलमें अब उसकी बचपनकी यादे आने लगी...
वर्सोवा बीच यह अंजलीका मुंबईमें स्थित पसंदीदा स्थान था। बचपनमें वह उसके मां बापके साथ यहां अक्सर आया करती थी. उसे उसके मां बाप की आज बहुत याद आ रही थी. भलेही आज वह समुंदर का किनारा इतना साफ सुधरा नही था लेकिन उसके बचपनमें वह बहुत साफ सुधरा रहा करता था. सामने समुंदरके लहरोंका आवाज उसके दिलमें एक अजीबसी कसक पैदा कर रहा था.
उसने अपने कलाईपर बंधे घडीकी तरफ फिरसे देखा। विवेकको उसने शामके पांचका वक्त दिया था.
पांच तो कबके बज चूके थे ... फिर वह अबतक कैसे नही पहूंचा ?...
उसके जहनमें एक सवाल उठा ...
कही ट्रॅफिकमें तो नही फंस गया? ...
मुंबईकी ट्रॅफिक में कब कोई और कहां फंस जाएं कुछ कहा नही जा सकता....
उसने लंबी आह भरते हुए फिरसे चारों ओर अपनी नजरे दौडाई।
सामने किनारेपर एक लडका समुंदरके किनारे रेतके साथ खेल रहा था। वह देखकर उसके विचार फिरसे भूतकालमें चले गए और फिर एक बार उसकी बचपनकी यादोंमे डूब गए.
वह तब लगभग 12-13 सालकी होगी जब वह अपने मां और पिताके साथ इसी बीचपर आई थी। वह लडका जहां खेल रहा था, लगभग वही कही रेतका किला बना रहे थे. तभी उसके पिताने कहा था,
'' देखो अंजली उधर तो देखो...''
समुंदर के किनारे एक लडका कुछ चिज समुंदरके अंदर दुरतक फेंकनेका जीतोड प्रयास कर रहा था। वह लेकिन समुंदरकी लहरे उस चिजको फिरसे किनारेपर वापस लाती थी. वह लडका बार बार उस चिजको समुंदरमें बहुत दुरतक फेकनेकेका प्रयास करता था और बार बार वह लहरें उस चिजको किनारेपर लाकर छोडती थी.
फिर उसके पिताजीने अंजलीसे कहा -
'' देखो अंजली वह लडका देखो ... वह चिज वह समुंदरमें फेकनेकी कोशीश कर रहा है और वह वस्तू बार बार किनारेपर वापस आ रही है... अपने जिवनमेंभी दु:ख और सुखका ऐसेही होता है... आदमी जैसे जैसे अपने जिवनमें आए दुखको दुर करनेका प्रयास करता है... उस वक्त के लिए लगता है की दुख चला गया है और वह फिरसे वापस कभी नही आएगा... लेकिन दुखका उस चिज जैसाही रहता है ... जितना तुम उसे दुर धकेलनेकी कोशीश करो वह फिरसे उतनेही जोरसे वापस आता है... अब देखो वह लडका थोडी देर बाद अपने खेलनेमें व्यस्त हो जाएगा... और वह उस चिजको पुरी तरहसे भूल जाएगा... फिर जब उसे उस चिजकी याद आएगी... वह चिज किनारेपर ढूंढकरभी नही मिलेगी... वैसेही आदमीने अगर दुखको जादा महत्व ना देते हूए ... सुख और दूखका एकही अंदाजसे सामना किया तो उसे दुखसे तकलिफ नही होगी... ...देअर विल बी पेन बट टू सफर ऑर नॉट टू सफर वील बी अप टू यू!''
उसे याद आ रहा था की उसके पिता कैसे उसे छोटी छोटी बातोंसे बहुत कुछ सिखकी बाते कह जाते थे।
जब अंजली अपनी पुरानी यादोंसे बाहर आ गई, उसके सामने विवेक खडा था। उंचा, गठीला शरीर, चेहरेपर हमेशा मुस्कान और उसकी हर एक हरकतसे दिखता उसका उत्साह. उसने देखे उसके फोटोसे वह बहुत अलग और मोहक लग रहा था. वे एकदुसरेसे पहली बारही मिल रहे थे इसलिए दोनोंके चेहरे खुशीसे दमक उठे थे. दोनों एकदुसरे की तरफ सिर्फ एकटक देखने लगे.
04 फ़रवरी 2010
Hindi literature - Novel - ELove : CH-13 वर्सोवा बीच
Posted by Udit bhargava at 2/04/2010 08:28:00 am
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