दिनबदीन अंजली और विवेकका चॅटींग, मेल करना बढताही जा रहा था। मेलकी लंबाई चौडाई बढ रही थी. एकदुसरेको फोटो भेजना, जोक्स भेजना, पझल्स भेजना ... मेल भेजनेके न जाने कितने बहाने उनके पास थे. धीरे धीरे अंजली को अहसास होने लगा था की वह उससे प्यार करने लगी है. लेकिन प्यार का इजहार उसने विवेक के पास या विवेक ने अंजलीके पास कभी नही किया था. उनके हर मेलके साथ... मेल मे लिखे हर वाक्य के साथ... उनके हर फोटो के साथ... उनके व्यक्तीत्व का एक एक पहेलू उन्हे पता चल रहा था. और उतनी ही वह उसमें डूबती जा रही थी. अंजलीने भी अपने आपको कभी रोका नही. या यू कहीए खुद को रोकने से खुदको उसके प्यारमें पुरी तरह डूबनेमें ही उसे आनंद मिल रहा हो. लेकिन प्यारके इजहार के बारे में वह बहूत फूंक फूंककर अपने कदम आगे बढा रही थी. उसके पास बहाना था की उसने अब तक उसे आमने सामने देखा नही था. वैसे उसके प्रेम का अहसास उसे नही था ऐसे नही. लेकिन विवेक भी प्यारके इजहारके बारेमें शायद उतनाही खबरदारी बरत रहा था. शायद उसने भी उसे अबतक आमने सामने न देखनेके कारण. वह मिलनेके बाद मुकर तो नही जाएगा? इसके बारेमें वह एकदम बेफिक्र थी. क्यो की विश्वामित्रको भी ललचाए ऐसा उसका सौंदर्य था.
अंजली अपने कॉम्प्यूटरपर चाटींग कर रही थी और उसके टेबलके सामने कुर्सीपर शरवरी बैठी हूई थी। कॉम्प्यूटरपर आई एक मेल पढते हूए अंजली बोली,
'' शरवरी देख तो विवेकने मेलपर क्या भेजा है? ''
शरवरी कुर्सीसे उठकर अंजलीके पिछे जाकर खडी होगई और मॉनिटरकी तरफ ध्यान देकर देखने लगी। इन दिनो वैसे विवेक और अंजलीका कुछ ना कुछ आदान प्रदान चलता ही रहता था. और शरवरीको भी उनका प्रेमभरा आदान प्रदान देखने में या पढनेमें बडा मजा आता था. उसने मॉनीटरपर देखा की एक छोटा चायनीज बच्चा बडे मजेदार तरीकेसे डांस कर रहा था. डांस करते हूए वह बच्चा एकदमसे शूशू करने लगा तो दोनोही बडी जोरसे हंसने लगी.
'' पता नही वह कहां कहांसे यह सब ढूंढता है ।'' अंजलीने कहा.
'' सही है... मै तो इंटरनेटपर कितना सर्फ करती हूं लेकिन यह ऍनीनेशन अबतक मेरे देखनेमें कैसे नही आया। '' शरवरीने कहा.
तभी एक बुजुर्ग आदमी दरवाजेपर नॉक कर अंदर आया। वह आदमी आतेही अंजलीने अपनी पहिएवाली कुर्सी घुमाकर अपना ध्यान उस आदमीपर केंद्रीत किया. शरवरी वहांसे बाहर चली गई. वह बुजुर्ग आदमी टेबलके सामने कुर्सीपर बैठतेही अंजलीने कहा,
'' बोलो आंनंदजी॥''
'' मॅडम ... इंटेल कंपनीने अपने सारे कोलॅबरेटर्स के साथ एक मिटींग रखी है। अभी थोडीही देर पहले उनका फॅक्स आया है.... उन्होने मिटींगका दिन और व्हेन्यू हमें भेजा है ... और साथही मिटींगका अजेंडाभी भेजा है. ...'' आनंदजीने जानकारी दी.
'' कहां रखी है मिटींग ?'' अंजलीने पुछा।
'' मुंबई ... 25 तारखको ... यानीकी ॥ इस सोमवारको '' आनंदजीने कॅलेडरकी तरफ देखते हूए कहा।
अंजलीभी कॅलेंडरकी तरफ देखते हूए कुछ सोचते हूए बोली,
'' ठिक है कन्फर्मेशन फॅक्स भेज दो ... और मोनाको मेरे सारे फ्लाईट और होटल बुकींग डिटेल्स दे दो''
'' ठिक है मॅडम'' आनंदजी उठकर खडे होते हूए बोले।
जैसे आनंदजी वहांसे चले गए वैसे अंजलीने अपनी पहिएवाली कुर्सी घुमाकर अपना ध्यान कॉम्प्यूटरपर केंद्रीत कर दिया। उसके चेहरेपर खुशी समाए नही समा रही थी. झटसे उसने मेल प्रोग्रॅम खोला और जल्दी जल्दी वह मेल टाईप करने लगी -
'' विवेक ... ऐसा लगता है की जल्दीही अपने नसिबमें मिलना लिखा है ...पुछो कैसे? लेकिन मै अभी नही बताऊंगी। क्योंकी कुछ तो क्लायमॅक्स रहना चाहिए ना ? अगले मेलमे सारे डिटेल्स भेजूंगी ... बाय फॉर नाऊ... टेक केअर ॥ ---अंजली...''
अंजलीने फटाफट कॉम्प्यूटरके दो चार बटन्स दबाकर आखिर ऐंन्टर दबाया। कॉम्प्यूटरके मॉनीटरपर मेसेज आ गया - 'मेल सेन्ट'
04 फ़रवरी 2010
Hindi Library - Novel - E Love : CH-11 : मिटींग
Posted by Udit bhargava at 2/04/2010 08:23:00 am
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