सायबर कॅफेमें लोग अपने अपने क्यूबीकल्समें अपने अपने इंटरनेट सर्फींगमें बिझी थे। कुछ कॉम्प्यूटर्स वही खुले हॉलमें रखे थे, वहांभी कोई कॉम्प्यूटर खाली नही था। की बोर्डके बटन्स दबानेका एक अजिब आवाज एक लय और तालमें सारे कॅफेमें घुम रहा था। सब लोग, कोई चॅटींग, कोई सर्फींग, कोई गेम्स खेलनेमें तो कोई मेल्स भेजनेमें मग्न था। तभी एक आदमी दरवाजेसे अंदर आ गया। वह अंदर आकर जिस तरहसे इधर उधर देख रहा था, कमसे कम उससे वह यहां पर पहली बार आया हो ऐसा लग रहा था। रिसेप्शन काऊंटरपर बैठा स्टाफ मेंबर उसके सामने रखे कॉम्प्यूटरपर ताशका गेम 'सॉलीटेअर' खेल रहा था। उस आदमीकी आहट होतेही उसने झटसे, बडी स्फुर्तीके साथ अपने मॉनिटरपर चल रहा वह गेम मिनीमाईझ किया और आया हुवा आदमी अपना बॉस या उसके घरका कोई आदमी नही है यह ध्यानमें आतेही वह फिरसे वह गेम मॅक्सीमाईज करके खेलने लगा। वह अंदर आया हुवा आदमी कुछ पलके लिए रिसेप्शन काऊंटरके पास मंडराया और रुककर स्टाफको पुछने लगा -
'' विवेक आया क्या ?''
उस स्टाफने भावना विरहित चेहरेसे उसकी तरफ देखकर पुछा -
'' कौन विवेक?''
'' विवेक सरकार ... वह मेरा दोस्त है ..... और उसनेही मुझे यहां बुलाया है ॥'' उस आदमीने कहा।
'' अच्छा वह विवेक... नही आज तो वह दिखा नही ॥ वैसे तो वह रोज आता है ... लेकिन कलसे मैने उसे देखा नही है ... '' काऊंटरपर बैठे स्टाफने जवाब दिया और वह सामने रखे हूए कॉम्प्यूटरपर फिरसे 'सॉलीटेअर' खेलनेमें व्यस्त हो गया।
अंजली कॉन्फरंन्स रुममें दिवारपर लगे छोटे पडदेपर प्रोजेक्टरकी सहाय्यतासे शरवरीको कुछ समझा रही थी। और शरवरी वह जो बोल रही है वह ध्यान देकर सुन रही थी।
'' शरवरी जैसा तुमने कहा था वैसेही मैने विवेकको समझाकर देखनेके लिए एक मेल भेजी है ... लेकिन उसे सिर्फ मेलही ना भेजते हूए मैने एक बडा दांव भी फेंका है ... '' अंजली बोल रही थी।
'' दांव? ... कैसा ?...'' शरवरीने कुछ ना समझते हूए आश्चर्यसे पुछा।
'' उसे भेजे हूए मेलके साथ मैने एक सॉफ्टवेअर प्रोग्रॅम अटॅच कर भेजा है'' अंजलीने कहा।
'' कैसा प्रोग्रॅम?'' शरवरीको अभीभी कुछ समझ नही रहा था।
'' उस प्रोग्रॅमको 'स्निफर' कहते है ... जैसेही विवेक उसे भेजी हूई मेल खोलेगा ॥ वह स्निफर प्रोग्रॅम रन होगा ...'' अंजली बोल रही थी।
'' लेकिन वह प्रोग्रॅम रन होनेसे क्या होगा ?'' शरवरीने पुछा।
'' उस प्रोग्रॅमका काम है ... विवेकके मेलका पासवर्ड मालूम करना ... और वह पासवर्ड मालूम होतेही वह प्रोग्रॅम हमे वह पासवर्ड मेलद्वारा भेजेगा ... '' अंजली बोल रही थी।
'' अरे वा... '' शरवरी उत्साहभरे स्वरमें बोली लेकिन अगलेही पल कुछ सोचते हूए उसने पुछा, '' लेकिन उसका पासवर्ड मालूम कर हमें क्या मिलेगा ?''
'' जिस तरहसे विवेक मुझे ब्लॅकमेल कर रहा है ... उसी तरह हो सकता है की वह और बहुत लोगोंको ब्लॅकमेल कर रहा होगा ...या फिर उसके मेलबॉक्समें हमे उसकी कुछ कमजोरी... या जो हमारे कामका साबीत हो ऐसा कुछतो हमें पता चलेगा ... वैसे फिलहाल हम अंधेरेमें निशाना साध रहे है.... लेकिन मुझे यकिन है ... हमें कुछ ना कुछतो जरुर मिलेगा '' अंजली बता रही थी।
'' हां ... हो सकता है '' शरवरीने कहा।
और फिर कुछ सोचकर उसने कहा, '' मुझे क्या लगता है ... हमें अपना दुश्मन कौन है यह पता है ... वह कहां रहता है यहभी पता है ... फिर वह अपनेपर वार करनेके पहलेही अगर हम उसपर वार करते है तो ?''
'' वह संभावनाभी मैने जांचकर देखी है ... लेकिन अब वह उसके होस्टेलसे गायब है ... वुई डोन्ट नो हिज व्हेअर अबाऊट्स''
तभी कॉम्प्यूटरका बझर बजा। अंजलीने और शरवरीने झटसे पलटकर मॉनिटरकी तरफ देखा। मॉनिटरकी तरफ देखतेही दोनोके चेहरे खिल गए। क्योंकी उनकी अपेक्षानुसार अंजलीने विवेकके मेलको अटॅच कर भेजे 'स्निफर' सॉफ्टवेअरकीही वह मेल थी। अब दोनोंको वह मेल खोलनेकी जल्दी हो गई थी। कब एक बार वह मेल खोलती हूं और कब एक बार उस मेल द्वारा आए विवेकके पासवर्डसे उसका मेल अकाऊंट खोलती हूं ऐसा अंजलीको हुवा था। उसने तुरंत डबलक्लीक कर वह मेल खोली।
'' यस्स!'' उसके मुंहसे विजयी उद्गार निकले।
उसने भेजे स्निफरने अपना काम बराबर किया था।
उसने बिजलीके गतीसे मेल सॉफ्टवेअर ओपन किया और ...
'' यह उसका मेल आयडी और यह उसका पासवर्ड'' बोलते हूए विवेकका मेल ऍड्रेस टाईप कर उस प्रोग्रॅमको विवेकके मेलका पासवर्ड दिया।
अंजलीने उसका मेल अकाऊंट खोलतेही और कुछ की बोर्डकी बटन्स और दो चार माऊस क्लीक्स किए। और दोनो अब कॉम्प्यूटरके मॉनिटरकी तरफ देखने लगी।
'' ओ माय गॉड ... आय जस्ट कान्ट बिलीव्ह'' अंजलीके खुले मुंहसे निकल गया।
शरवरी कभी मॉनिटरकी तरफ तो कभी अंजलीके खुले मुंहकी तरफ असमंजससे देख रही थी।
04 फ़रवरी 2010
Hindi Books - Novel - ELove CH - 19 सॉलीटेअर
Posted by Udit bhargava at 2/04/2010 05:26:00 pm
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