होटेल का सुईट जैसे जैसे नजदिक आने लगा, वैसे एक अन्जानी भावनासे अंजली के दिल की धडकन तेज होने लगी थी। एक अनामिक डरने मानो उसे घेर लिया था। विवेक भले ही उसके पिछे पिछे चल रहा था लेकिन उसके सासोंकी गति विचलीत हो चुकी थी। अंजली ने सुईट का दरवाजा खोला और अंदर चली गई।
विवेक दरवाजेमेही इधर उधर करता हुवा खडा हो गया।
'' अरे आवोना अंदर आवो '' अंजली उनके बिच बनी, असहजता, एक तणाव दूर करनेका प्रयास करती हुई बोली।
'' बैठो '' अंजली उसे बैठने का इशारा करती हुई बोली और वही कोने में रखा फोन उठाने के लिए उसके पास ही बैठ गई।
अंजलीने विवेक के पास रखा हुवा फोन उठाने के लिए हाथ बढाया और बोली, '' क्या लोगे ठंडा या गरम''
फोन उठाते हूए अंजली का हाथ का हल्कासा स्पर्ष विवेक को हुआ था। उसका दिल जोर जोर से धडकने लगा। अंजली को भी वह स्पर्श आल्हाददायक और अच्छा लगा था। लेकिन चेहरे पर वैसा कुछ ना बताते हूए उसने ऑर्डर देनेके लिए फोन का क्रेडल उठाया।
फोन का नंबर डायल करने के लिए अब उसने अपना दुसरा हाथ बढाया। इसबार इस हाथ का भी हल्कासा स्पर्ष विवेक को हुआ। इस बार वह अपने आपको रोक नही सका। उसने अंजली ने आगे बढाया हुआ हाथ हल्के ही अपने हाथ में लिया। अंजली उसकी तरफ देखकर शर्माकर मुस्कुराई। उसे वह हाथ उसके हाथ से छुडाकर लेना नही हो रहा था। मानो वह हाथ सुन्न हो गया हो। विवेक ने अब वह हाथ कसकर पकडकर उसे खिंचकर अपनी बाहों में भर लिया। सब कुछ कैसे तेजी से घट रहा था और वह सब अंजली को भी अच्छा लग रहा था। उसका पूरा बदन गर्म हो गया था और होंठ कांपने लगे थे। विवेक ने भी अपने गर्म और बेकाबू हूए होंठ उसके कांपते होंठो पर रख दिए। अंजली का एक मन प्रतिकार करनेके लिए कह रहा था। लेकिन दुसरा मन तो विद्रोही होकर सारी मर्यादाए तोडने निकला था। वह उस पर हावी होता जा रहा था और अंजली की मानो होशोहवास खोए जैसी स्थिती हो गई थी। विवेक ने उसे झट से अपने मजबूत बाहों में उठाकर बगल में रखे बेड पर लिटाया। उसके उस उठाने में उसे एक आधार देने वाली मर्दानी और हक जताने वाली भावना दिखी इसलिए वह इन्कार भी नही कर सकी। या यू कहिए उसके पास प्रतिकार करने के लिए कुछ शक्ती ही नही बची थी।
उसे उसका वह सवाल याद आ गया , '' अंजली मुझसे शादी करोगी ?''
और उसे अपना जवाब भी याद आ गया , '' मैने ना थोडी ही कहा है ''
उसे अब उसके बाहों में एक सुरक्षा का अहसास हो रहा था। वह भी अब उसके हर भावना को उतनी ही उत्कटता से प्रतिसाद दे रही थी।
'' विवेक आय लव्ह यू सो मच'' उसके मुंह से शब्द बाहर आ गये।
'' आय टू'' विवेक मानो उसके गले का चुंबन लेते हूए उसके कान में कह रहा था।
धीरे धीरे उसका मजबूत मर्दानी हाथ उसके नाजूक बदनसे खेलने लगा। और वह भी किसी लतीका की तरह उसको चिपककर अपने भविष्य के आयुष्य का सहारा ढूंढ रही थी।
' हां मैं ही तुम्हारे आगे के आयूष्य का सहारा ... साथीदार हूँ ' इस हक से अब वह उसके बदन से एक एक कपडे हटाने लगा था।
' हां मैने भी अब तुम्हे सब कुछ अर्पन कर दिया है .. ' इस विश्वास के साथ समर्पन करके वह भी उसके शरीर से एक एक कपडे हटाने लगी।
अंजली अचानक हडबडाकर नींद से जाग गई। उसने बेड पर बगल में देखा तो वहा विवेक निर्वस्त्र अवस्था में चादर बदन पर ओढे गहरी निंद सो रहा था। लेकिन निंद में भी उसका एक हाथ अंजली के निर्वस्त्र बदनपर था। इतने दिनों में रात को अचानक बुरे सपने से जगने के बाद उसे पहली बार उसके हाथ का एक बडा सहारा महसूस हुआ था।
04 फ़रवरी 2010
Hindi upanyas - Novel - ELove : CH-16 सहारा
Posted by Udit bhargava at 2/04/2010 04:35:00 pm
सदस्यता लें
टिप्पणियाँ भेजें (Atom)
एक टिप्पणी भेजें