अंजली और विवेक दोनो न जाने कितनी देर सिर्फ एक दुसरे की तरफ ताक रहे थे। भलेही वे एकदुसरे को एक महिने से जानते थे लेकिन वे एक दुसरे के सामने पहली बार आ रहे थे. वैसे वे एकदुसरे को सिर्फ जानते ही नही थे तो उन्होने एक दुसरेको अच्छी तरह से समझ लिया था. एकदुसरे के स्वभाव की खुबीया या खामीयां वे भली भांती जानते थे. फिरभी एक दुसरे के सामने आते ही उन्हे क्या बोले कुछ समझ नही आ रहा था. वे इतने चूप थे की मानो दो-दो तिन-तिन पेजेस की मेल करनेवाले वे हमही है क्या? ऐसी उन्हे आशंका आए. आखिर विवेकने ही पहल करते हूए शुरवात की,
'' ट्रॅफिकमें अटक गया था... इसलिए देर हो गई ...''
'' मै तो साडेचार बजेसेही तुम्हारी राह देख रही हूं ॥'' अंजलीने कहा।
'' लेकिन तूमने तो पांच का वक्त दिया था। '' विवेकने कहा.
सिर्फ शुरु करनेकी ही देरी थी, अब वे आपस में अच्छे खासे घुल मिलकर बाते करने लगे, मानो इंटरनेट पर चॅटींग कर रहे हो। बाते करते करते वे धीरे धीरे बीचके रेतपर समुंदरके किनारे किनारे चलने लगे. चलते चलते कब उनके हाथ एकदुसरे में गुथ गए, उन्हे पताही नही चला. न जाने कितनी देर तक वे एक दुसरेके हाथ पकडकर बीचपर घुम रहे थे.
सुर्यास्त हो चुका था और अब अंधेराभी छाने लगा था। बिचमेंही अचानक रुककर, गंभीर होकर विवेकने कहा,
'' अंजली... एक बात पुछू ?''
उसने आखोंसेही मानो हा कह दिया।
'' मुझसे शादी करोगी ?'' उसने सिधे सिधे पुछा।
उसके इस अनपेक्षित सवालसे वह एक पल के लिए गडबडासी गई। अपने गडबडाए हालातसे संभलकर उसने कुछ ना बोलते हूए अपनी गर्दन निचे झूकाई.
विवेकका दिल अब जोरजोरसे धडकने लगा था।
मैने बडा ढांढस कर यह सवाल तो पुछा....
लेकिन वह 'हां' कहेगी या 'नही' ?...
वह उसके जवाबकी प्रतिक्षा करने लगा।
मैने यह सवाल पुछनेमें कुछ जल्दी तो नही कर दी ?...
उसने अगर 'नही' कहा तो ?...
उसके जहनमें अलग अलग आशंकाएं आने लगी।
थोडी देरसे वह बोली,
'' चलो हमें निकलना चाहिए ॥''
उसने बोलने के लिए मुंह खोला तब उसका दिल जोर जोरसे धडकने लगा था।
लेकिन यह क्या ... वह उसके सवालके जवाबसे बच रही थी....
लेकिन वह एक पीएचडी का छात्र था। किसी भी सवाल के जवाब का पिछा करना उसके खुनमें ही भिना हूवा था.
'' ॥ तूमने मेरे सवाल का जवाब नही दिया ..'' उसने उसे टोका।
'' चलो मै तुम्हे छोड आती हूं '' वह फिर से उसके सवाल के जवाब से बचते हूए बोली।
लेकिन वहभी कुछ कम नही था।
'' अभी तक तूमने मेरे सवालका जवाब नही दिया ''
वह शर्मके मारे चूर चूर हो रही थी। उसकी गर्दन झूकी हूई थी और उसका गोरा चेहरा शर्मके मारे लाल लाल हुवा था. वह अपनी भावनाए छुपानेके लिए पैर के अंगुठेसे जमीन कुरेदने लगी.
'' मैने थोडी ना कहा है '' वह किसी तरह, अभीभी अपनी गर्दन निची रखते हूए बोली।
अपने मुंहसे वह शब्द बाहर पडे इसका उसे खुदको ही आश्चर्य लग रहा था। विवेक का अब तक मायूस हुवा चेहरा एकदम से खुशीके मारे खिल उठा. उसे इतनी खुशी हुई थी की वह उसे कैसे व्यक्त करे कुछ समझ नही पा रहा था. उसने अपने आपको ना रोक पाकर उसे अपने बाहोंमें कसकर भरकर उपर उठा लिया.
04 फ़रवरी 2010
Hindi Novels - Novel- ELove : CH-14 प्रपोज
Posted by Udit bhargava at 2/04/2010 08:30:00 am
सदस्यता लें
टिप्पणियाँ भेजें (Atom)
एक टिप्पणी भेजें