04 जनवरी 2010

भागवत (सुखसागर) की कथाएँ – पूतना वध



शिशु के रोने की आवाज सुन कर पहरेदारों ने राजा कंस को देवकी के गर्भ से कन्या होने का समाचार दिया। कंस उसी क्षण अति व्याकुल होकर हाथ में नंगी तलवार लेकर बन्दीगृह की ओर दौड़ा। बन्दीगृह पहुँचते ही उसने तत्काल उस कन्या को देवकी के हाथ से छीन लिया। देवकी अति कातर होकर कंस के सामने गिड़गिड़ाने लगी, “हे भाई! तुमने मेरे छः बालकों का वध कर दिया है। इस बार तो कन्या का जन्म हुआ है। तुम्हारे काल की आकाशवाणी तो पुत्र के द्वारा होने की हुई थी। इस कन्या को मत मारो।”
देवकी के रोने गिड़गिड़ाने पर भी दुष्ट कंस का हृदय नहीं पिघला और उसने कन्या को भूमि पर पटक डालने के लिये ज्योंही ऊपर उछाला कि कन्या उसके हाथ से छूट कर आकाश में उड़ गई। वह आकाश में स्थित होकर अष्ट भुजा धारण कर के आयुधों से युक्त हो गई और बोली, “रे दुष्ट कंस! तुझे मारने वाला तेरा काल कहीं और उत्पन्न हो चुका है। तू व्यर्थ निर्दोष बालकों की हत्या न कर।” इतना कह कर योगमाया अन्तर्ध्यान हो गई। योगमाया की बातों को सुन कर कंस को अति आश्चर्य हुआ और उसने देवकी तथा वसुदेव को कारागार से मुक्त कर दिया।
तत्पश्चात् कंस ने अपने मन्त्रियों को बुला कर योगमाया द्वारा कही गयी बातों पर मन्त्रणा करने लगा। कंस के मूर्ख मन्त्रियों ने कहा, “हे राजन्! देवताओं ने यह धोखा दिया है इसलिये देवताओं का ही नाश करना चाहिये। ब्राह्मणों के यज्ञादि को बन्द करवा देना चाहिये। इन्द्र को तो आप कई बार परास्त कर ही चुके हैं इस बार आपके डर से छिपे हुये विष्णु को भी ढूंढ कर उससे युद्ध करना चाहिये और पिछले दस दिनों के भीतर उत्पन्न हुये सभी बालकों को भी मार डालना चाहिये।”
इधर गोकुल में नन्द बाबा ने पुत्र का जन्मोत्सव बड़े धूम-धाम से मनाया। ब्राह्मणों और याचकों को यथोचित गौओं तथा स्वर्ण, रत्न, धनादि का दान किया। कर्मकाण्डी ब्राह्मणों को बुला कर बालक का जाति कर्म संस्कार करवाया। पितरों और देवताओं की अनेक भाँति से पूजा-अर्चना की। पूरे गोकुल में उत्सव मनाया गया।
इधर कंस ढूंढ-ढूंढ कर नवजात शिशुओं का वध करवाने लगा। उसने पूतना नाम की एक क्रूर राक्षसी को ब्रज में भेजा। पूतना ने राक्षसी वेष तज कर अति मनोहर नारी का रूप धारण किया और आकाश मार्ग से गोकुल पहुँच गई। गोकुल में पहुँच कर वह सीधे नन्द बाबा के महल में गई और शिशु के रूप में सोते हुये श्री कृष्ण को गोद में उठा कर अपना दूध पिलाने लगी। उसकी मनोहरता और सुन्दरता ने यशोदा और रोहिणी को भी मोहित कर लिया इसलिये उन्होंने बालक को उठाने और दूध पिलाने से नहीं रोका। पूतना के स्तनों में हलाहल विष लगा हुआ था। अन्तर्यामी श्री कृष्ण सब जान गये और वे क्रोध करके अपने दोनों हाथों से उसका कुच थाम कर उसके प्राण सहित दुग्धपान करने लगे। उनके दुग्धपान से पूतना के मर्म स्थलों में अति पीड़ा होने लगी और उसके प्राण निकलने लगे। वह चीख-चीख कर कहने लगी, “अरे छोड़ दे! छोड़ दे! बस कर! बस कर!” वह बार-बार अपने हाथ पैर पटकने लगी और उसकी आँखें फट गईं। उसका सारा शरीर पसीने में लथपथ होकर व्याकुल हो गया। वह बड़े भयंकर स्वर में चिल्लाने लगी। उसकी भयंकर गर्जना से पृथ्वी, आकाश तथा अन्तरिक्ष गूँज उठे। बहुत से लोग बज्रपात समझ कर पृथ्वी पर गिर पड़े। पूतना अपने राक्षसी स्वरूप को प्रकट कर धड़ाम से भूमि पर बज्र के समान गिरी, उसका सिर फट गया और उसके प्राण निकल गये।
जब यशोदा, रोहिणी और गोपियों ने उसके गिरने की भयंकर आवाज को सुना तब वे दौड़ी-दौड़ी उसके पास गईं। उन्होंने देखा कि बालक कृष्ण पूतना की छाती पर लेटा हुआ स्तनपान कर रहा है तथा एक भयंकर राक्षसी मरी हुई पड़ी है। उन्होंने बालक को तत्काल उठा लिया और पुचकार कर छाती से लगा लिया। वे कहने लगीं, “भगवान चक्रधर ने तेरी रक्षा की। भगवान गदाधर तेरी आगे भी रक्षा करें।”
इसके पश्चात् गोप ग्वालों ने पूतना के अंगों को काट-काट कर गोकुल से बाहर ला कर लकड़ियों में रख कर जला दिया।