यह बारह ज्योतिर्लिंग हैं। सोमनाथ, नागेश्वर, महाकाल, मल्लिकार्जुन, भीमशंकर, ओंकारेश्वर, केदारनाथ, विश्वनाथ, त्र्यंबकेश्वर, घृष्णेश्वर, रामेश्वर, बैद्यनाथ।
सोमनाथ
सौराष्ट्र (गुजरात) स्थित यह सबसे प्राचीन व महत्वपूर्ण ज्योतिर्लिंग हैं। इस ज्योतिर्लिंग का वर्णन ऋग्वेद् में भी है। सोमनाथ मंदिर के बारे में कहा जाता है कि सबसे पहले इस मंदिर का निर्माण चंद्रदेव ने स्वर्ण से करवाया था, उसके पश्चात् रावण ने चाँदी से इस मंदिर का निर्माण करवाया। रावण के बाद भगवान श्रीकृष्ण ने चंदन की लकडि़यों से इस मंदिर को बनवाया और उनके बाद सोलंकी वंश के राजा भीमदेव ने पत्थर से इस मंदिर का निर्माण करवाया था।
सोमनाथ के मंदिर पर छह बार आक्रमणकारियों ने हमला किया है। हर बार इस मंदिर का पुनर्निर्माण करवाया गया। मंदिर के वर्तमान भवन और परिसर का निर्माण श्री सोमनाथ ट्रस्ट ने करवाया है। इसे सन् 1995 में राष्ट्र को समर्पित किया गया था। सोमनाथ का मंदिर इस बात का प्रतीक की सृजनकर्ता की शक्ति हमेशा विनाशकर्ता से अधिक होती हैं।
नागेश्वर
द्वारका स्थित नागेश्वर ज्योतिर्लिंग के उद्भव की कथा भी बहुत रोचक है। शिवपुराण में इस ज्योतिर्लिंग की कथा का वर्णन है। दारूका नामक एक राक्षस ने एक निरपराध शिवभक्त सुप्रिया को कारावास में कैद कर दिया था।
निर्दोष सुप्रिया ने अपनी रक्षा के लिए ॐ नम: शिवाय मंत्र का जाप किया। उसने जेल में अन्य कैदियों को भी मंत्र का जाप करना सिखा दिया। उन सब की भक्तिभाव से परिपूर्ण पुकार सुनकर भगवान शिव वहाँ पर प्रकट हुए और उन्होंने दारूका नामक दैत्य का वध किया। उसके पश्चात् वे ज्योतिर्लिंग के रूप में वहीं पर निवास करने लगे।
महाकालेश्वर
उज्जैन (मध्यप्रदेश) स्थित महाकालेश्वर ज्योतिर्लिंग एकमात्र दक्षिणमुखी ज्योतिर्लिंग है। इसलिए इस ज्योतिर्लिंग का पौराणिक और तांत्रिक महत्व सबसे ज्यादा है। यह ज्योतिर्लिंग भी स्वयंभू है। महाकाल ज्योतिर्लिंग के सच्चे मन से दर्शन करने वाले भक्तों को अभय दान मिलता है। महाकाल के भक्तों को मृत्यु और बीमारी से भय नहीं लगता है। दरअसल महाकाल ज्योतिर्लिंग को देवता के साथ-साथ उज्जैन के राजा के रूप में भी पूजा जाता है। इसके उद्भव की कथा में ही इसे अवंतिका (उज्जैन) के राजा के रूप में प्रतिष्ठित किया गया है।
अवंतिका के राजा वृषभसेन भगवान शिव के अनन्य भक्त थे। उनका पूरा समय शिवभक्ति में बीतता था। एक बार वृषभसेन के पड़ोसी राज्य के राजा ने अवंतिका पर हमला कर दिया। वृषभसेन की सेना ने उसके हमले को निष्फल कर दिया। तब आक्रमणकारी राजा ने एक असुर दुशान की मदद ली, जिसे अदृश्य होने का वरदान प्राप्त था। दुशान ने अवंतिका पर खूब कहर बरपाया। ऐसे समय अवंतिका के लोगों ने भगवान शिव को पुकारा। भगवान शिव वहाँ साक्षात् प्रकट हुए और उन्होंने अवंतिका की प्रजा की रक्षा की। इसके बाद राजा वृषभसेन ने भगवान शिव से अवंतिका में बसने और अवंतिका का प्रमुख बनने की विनती की। राजा की प्रार्थना सुनकर भगवान वहाँ ज्योतिर्लिंग के रूप में प्रकट हुए। भगवान महाकाल को आज भी उज्जैन का शासक ही माना जाता है।
मल्लिकार्जुन
आंध्रप्रदेश के कुर्नुर जिले में कृष्णा नदी के किनारे पर मल्लिकार्जुन मंदिर में 'श्रीसेलम' ज्योतिर्लिंग स्थित है। स्कंद पुराण में एक पूरा अध्याय' श्रीसेलाकंदम' इस ज्योतिर्लिंग की महिमा का वर्णन करता है। मल्लिकार्जुन मंदिर के बारे में एक प्राचीन कथा है, जिसके अनुसार शिवगण नंदी ने यहाँ तपस्या की थी। उनकी तपस्या से प्रसन्न होकर भगवान शंकर और देवी पार्वती ने उन्हें मल्लिकार्जुन और ब्रहृमारंभा के रूप में दर्शन दिए थे। इस ज्योतिर्लिंग का वर्णन महाभारत में भी है। पाण्डवों ने पंचपाण्डव लिंगों की स्थापना यहाँ पर की थी। भगवान राम ने भी इस मंदिर के दर्शन किए थे। भक्त प्रहलाद का पिता राक्षसराज हिरण्यकश्यप भी यहाँ पर पूजा अर्चना करता था।
भीमशंकर
महाराष्ट्र में पुणे के समीप स्थित भीमशंकर ज्योतिर्लिंग भीमवती नदी के किनारे है। इस ज्योतिर्लिंग के उद्भव के बारे में प्रचलित कथा इस प्रकार है। सहृयाद्रि और इसके आस-पास के लोगों को त्रिपुरासुर नामक दैत्य अपनी असुरी शक्तियों से बहुत सताता था। इस दैत्य से मुक्ति दिलाने के लिए भगवान शंकर यहाँ भीमकाय स्वरूप में प्रकट हुए। त्रिपुरासुर को युद्ध में पराजित करने के बाद भक्तों के आग्रह पर भगवान शंकर वहाँ ज्योतिर्लिंग के रूप में प्रकट हो गए। कहते है कि युद्ध के बाद भगवान शंकर के तन से जो पसीना बहा उस पसीने से वहाँ पर भीमवती नदी का जन्म हुआ।
ओंकारेश्वर
मध्यप्रदेश स्थित ओंकारेश्वर ज्योतिर्लिंग नर्मदा नदी के किनारे स्थित है। इस स्थान पर भगवान शिव के दो मंदिर हैं- ओंकारेश्वर और ममलेश्वर। कहते है कि देवताओं की प्रार्थना पर यहाँ का शिवलिंग दो भागों में विभक्त हो गया। ओंकारेश्वर की खासियत यह है कि यहाँ की पहाड़ी ॐ के आकार की प्रतीत होती है। इसके साथ ही पर्वत पर से देखने पर नर्मदा नदी भी ॐ के आकार में बहती हुई दिखाई देती है। ओंकारेश्वर के साथ भी अनेक दंतकथाएँ जुड़ी हैं। कहते है कि शंकराचार्य के गुरू ओंकारेश्वर की एक गुफा में निवास करते थे।
केदारनाथ
उत्तराखंड में हिमालय पर्वत की गोद में केदारनाथ मंदिर बारह ज्योतिर्लिंग में सम्मिलित होने के साथ चार धामों में भी शामिल हैं। यहाँ की प्रतिकूल जलवायु की वजह से यह मंदिर अप्रैल से नवंबर माह के मध्य ही दर्शन के लिए खुलता है। पत्थरों से बने इस खूबसूरत मंदिर के बारे में कहा जाता है कि इसका निर्माण आदि शंकराचार्य ने करवाया था।
काशी विश्वनाथ
वाराणसी भारत का एक प्राचीन नगर है। यहाँ पर स्थित विश्वनाथ मंदिर बारह ज्योतिर्लिंगों में से एक है। यह मंदिर पिछले एक हजार वर्षों से यहाँ पर स्थित है। काशी विश्वनाथ मंदिर का हिंदू धर्म में एक विशिष्ट स्थान है। एक बार इस मंदिर के दर्शन करने और पवित्र गंगा में स्नान कर लेने से मोक्ष की प्राप्ति होती है। हर व्यक्ति जीवन में एक बार यहाँ पर दर्शन के लिए आना चाहता है। इस मंदिर में दर्शन करने के लिए आदि शंकराचार्य, रामकृष्ण परमहंस, स्वामी विवेकानंद, स्वामी दयानंद, गोस्वामी तुलसीदास सभी का आगमन हुआ हैं।
त्र्यंबकेश्वर
नासिक (महाराष्ट्र) स्थित त्र्यंबकेश्वर ज्योतिर्लिंग में ब्रह्मा, विष्णु और महेश तीनों ही विराजित हैं यही इस ज्योतिर्लिंग की सबसे बड़ी विशेषता है। अन्य सभी ज्योतिर्लिंगों में केवल भगवान शिव ही विराजित हैं। गोदावरी नदी के किनारे स्थित त्र्यंबकेश्वर मंदिर काले पत्थरों से बना है। मंदिर का स्थापत्य अद्भुत है। इस मंदिर में कालसर्प शांति, त्रिपिंडी विधि और नारायण नागबलि की पूजा संपन्न होती है। जिन्हें भक्तजन अलग-अलग मुराद पूरी होने के लिए करवाते हैं।
रामेश्वरम्
तमिलनाडु स्थित रामेश्वरम् ज्योतिर्लिंग समंदर किनारे स्थित हैं। यहाँ पर स्वयं श्रीराम ने भगवान शंकर की पूजा की थी। रावण के साथ युद्ध में कदाचित कोई पाप न हो जाए इसलिए भगवान राम ने मंदिर में शिवजी की आराधना की थी। रामेश्वरम् हिंदू धर्म के प्रमुख तीर्थ स्थानों में से एक है। हिंदू धर्म का हर अनुयायी अपने जीवन में एक बार इस मंदिर के दर्शन करने की अभिलाषा अपने मन में रखता है।
घृष्णेश्वर
महाराष्ट्र में औरंगाबाद के नजदीक दौलताबाद से 11 किलोमीटर दूर घृष्णेश्वर महादेव का मंदिर स्थित है। यह बारह ज्योतिर्लिंगों में से एक है। कुछ लोग इसे घुश्मेश्वर के नाम से भी पुकारते हैं। बौद्ध भिक्षुओं द्वारा निर्मित एलोरा की प्रसिद्ध गुफाएँ इस मंदिर के समीप ही स्थित हैं। इस मंदिर का निर्माण देवी अहिल्याबाई होलकर ने करवाया था। शहर से दूर स्थित यह मंदिर सादगी से परिपूर्ण है।
बैद्यनाथ
यह ज्योतिर्लिंग झारखंड के देवघर नाम स्थान पर है। कुछ लोग इसे वैद्यनाथ भी कहते हैं। देवघर अर्थात देवताओं का घर। बैद्यनाथ ज्योतिर्लिंग स्थित होने के कारण इस स्थान को देवघर नाम मिला है। यह ज्योतिर्लिंग एक सिद्धपीठ है। कहा जाता है कि यहाँ पर आने वालों की सारी मनोकामनाएँ पूर्ण होती हैं। इस लिंग को 'कामना लिंग' भी कहा जाता हैं।
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