द्वापर युग में महर्षि पाराशर के द्वारा सत्यवती के गर्भ से महर्षि व्यास का जन्म हुआ। महर्षि व्यास त्रिकालज्ञ थे तथा उन्होंने दिव्य दृष्टि से देख कर जान लिया कि कलियुग में धर्म क्षीण हो जायेगा। धर्म के क्षीण होने के कारण मनुष्य नास्तिक, कर्तव्यहीन और अल्पायु हो जावेंगे। एक विशाल वेद का सांगोपांग अध्ययन उनके सामर्थ से बाहर हो जायेगा। इसीलिये महर्षि व्यास ने वेद का चार भागों में विभाजन कर दिया जिससे कि कम बुद्धि एवं कम स्मरणशक्ति रखने वाले भी वेदों का अध्ययन कर सकें। व्यास जी ने उनका नाम रखा – ऋग्वेद, यजुर्वेद, सामवेद और अथर्ववेद। ऋग्वेद, यजुर्वेद, सामवेद और अथर्ववेद को क्रमशः अपने शिष्य पैल, जैमिन, वैशम्पायन और सुमन्तुमुनि को पढ़ाया। चूँकि स्त्रियों तथा शूद्रों को इन वेदों के अध्ययन का अधिकार नहीं था, उन्होंने पाँचवे वेद के रूप में पुराणों की रचना की जिसे कि सभी वर्ग के लोग पढ़ सकें। पुराणों को उन्होंने अपने शिष्य रोम हर्षण को पढ़ाया। व्यास जी के शिष्योंने अपनी अपनी बुद्धि के अनुसार उन वेदों की अनेक शाखाएँ और उप शाखाएँ बना दीं।
अंत में व्यास जी ने महाभारत की रचना की।
05 जनवरी 2010
भागवत (सुखसागर) की कथाएँ – वेदों का विभाजन
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Posted by Udit bhargava at 1/05/2010 06:49:00 pm
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