अरण्मूल श्रीपार्थसारथी मंदिर केरल के प्राचीनतम मंदिरों में से एक है। यहाँ भगवान श्रीकृष्ण श्रीपार्थसारथी के रूप में विराजमान हैं। मंदिर पथानमथिट्टा जिले के अरण्मूल में पवित्र नदी पंबा के किनारे पर स्थित है।
कहा जाता है कि अरण्मूल मंदिर का निर्माण अर्जुन ने युद्धभूमि में निहत्थे कर्ण को मारने के अपराध के प्रायश्चित स्वरूप किया था। एक अन्य कथा के अनुसार यह मंदिर सबरीमाला के पास नीलकल में बनाया गया था और बाद में मूर्ति को बाँस के छह टुकड़ों से बने बेड़े पर यहाँ लाया गया। इसीलिए इस जगह का नाम अरण्मूल पड़ा जिसका मलयालम में अर्थ होता है बाँस के छह टुकड़े।
प्रतिवर्ष भगवान अय्यप्पन के स्वर्ण अंकी (पवित्र गहना) को यहीं से विशाल शोभायात्रा में सबरीमाला तक ले जाया जाता है। ओणम् त्योहार के दौरान यहाँ प्रसिद्ध अरण्मूल नौका दौड़ भी आयोजित की जाती है। मंदिर में 18वीं सदी के भित्ति चित्रों का भी ऐतिहासिक संग्रह है।
अरण्मूल श्रीपार्थसारथी मंदिर केरल की वास्तुकला शैली का अद्भुत नमूना है। पार्थसारथी की मूर्ति छह फीट ऊँची है। मंदिर की दीवारों पर 18वीं सदी की सुंदर नक्काशी है। मंदिर बाहरी दीवारों के चार कोनों के चार स्तंभों पर बना है। पूर्वी स्तंभ पर चढ़ने के लिए 18 सीढ़ियाँ हैं और उत्तरी स्तंभ से उतरने के लिए 57 सीढ़ियाँ हैं जो पंबा नदी तक जाती हैं।
मंदिर की प्रतिमा की स्थापना की वर्षगाँठ के उपलक्ष्य में प्रतिवर्ष 10 दिन उत्सव तक मनाया जाता है। यह उत्सव मलयालम माह मीनम में पड़ता है।
ओणम् (केरल का मुख्य त्योहार) के दौरान अरण्मूल मंदिर अपने पानी के उत्सव के लिए अधिक लोकप्रिय है जिसे अरण्मूल वल्लम्कली (अरण्मूल बोट रेस) के रूप में जाना जाता है। इस दौरान नौका में चावल और अन्य पदार्थ भेजने की प्रथा है जिसे पास के गाँव में नजराने के तौर पर भेजा जाता है। इसे मानगढ़ कहते हैं जो त्योहार की उत्पत्ति से संबंधित है। यह प्रथा आज भी जारी है। उत्सव की शुरुआत कोडियेट्टम (ध्वजारोहण) से होती है और इसकी समाप्ति मूर्ति की पंबा नदी में डुबकी लगाने पर होती है जिसे अरट्टू कहा जाता है।
गरूड़वाहन ईजुनल्लातु, उत्सव के दौरान निकलने वाली रंगारंग शोभायात्रा है जिसमें भगवान पार्थसारथी को गरुड़ पर, सजाए गए हाथियों के साथ पंबा नदी के किनारे ले जाया जाता है। उत्सव के समय वल्ला सद्या जो एक महत्वपूर्ण वजिपाडू अर्थात् नजराना होता है, मंदिर को दिया जाता है।
खांडवनादाहनम् नामक एक अन्य उत्सव मलयालम माह धनुस में मनाया जाता है। उत्सव के दौरान मंदिर के सामने सूखे पौधों, पत्तियों और झाड़ियों से जंगल का प्रतिरूप बनाया जाता है। फिर महाभारत में खांडववन की आग के प्रतीक के रूप में इन्हें जलाया जाता है। भगवान श्रीकृष्ण का जन्मदिन अष्टमीरोहिणी के रूप में इस मंदिर में धूमधाम से मनाया जाता है।
कैसे पहुँचें:-
सड़क मार्ग: अरण्मूल पथानमथिट्टा के जिला मुख्यालय से 16 किमी की दूरी पर है जहाँ पहुँचने के लिए बस उपलब्ध है।
रेल मार्ग: यहाँ से निकटतम रेलवे स्टेशन चेनगन्नूर है जहाँ से बस द्वारा 14 किमी की यात्रा तय कर मंदिर तक पहुँचा जा सकता है।
हवाई मार्ग: यहाँ से निकटतम हवाई अड्डा कोच्चि है जो अरण्मूल से 110 किमी दूरी पर स्थित है।
09 जनवरी 2010
अरण्मूल का पार्थसारथी मंदिर
Posted by Udit bhargava at 1/09/2010 07:21:00 pm
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