यह अनूठा तीर्थ स्थल प्रदेश के देवास जिले की बागली तहसील में चापड़ा से मात्र 8 कि.मी. दूर इंदौर-बैतूल राष्ट्रीय राजमार्ग 59-ए पर स्थित ग्राम मातमोर से 3 कि.मी. दक्षिण दिशा में स्थित है। प्रदेश ही नहीं अपितु राजस्थान, गुजरात व महाराष्ट्र राज्य के हजारों दर्शनार्थियों के लिए यह स्थल महत्वपूर्ण होता जा रहा है।
लगभग 2 करोड़ की लागत से निर्मित दुनिया का एकमात्र श्री त्रिभुवन भानु पार्श्वनाथ भगवान का रथाकार मंदिर, स्वयंभू श्री माणिभद्र वीर बाबा का मंदिर, श्री सिद्ध चक्र गुरु मंदिर की भव्यता व कलात्मकता देखते ही बनती है। यह लगभग 35 बीघा क्षेत्रफल में फैला तीर्थ है।
समाज के संत पू. पन्यास प्रवर वीररत्नविजयजी का इस धरा पर पावन पदार्पण होने के बाद ही तीर्थ की कल्पना ने आकार लेना प्रारंभ किया। अपने आराध्य देव की खोज में निकले मुनिश्री को इस धरा पर पहुँचते ही यहाँ का प्राकृतिक वातावरण भा गया। ध्यान लगाते ही मुनिश्री को दिव्य संकेत मिला।
23 मार्च 1988 को इस पावन भूमि का भूमिपूजन संपन्न हुआ था। भूमिपूजन के बाद लगभग 2 माह के समय में ही 19 मई 1988 बैशाख शुक्ल छठ के दिन रवि पुष्य नक्षत्र में तीन आम्र वृक्षों के मध्य स्वयंभू श्री माणिभद्र वीर बाबा का प्रकटीकरण हुआ। तभी से सिलसिला शुरू हुआ इस तीर्थ स्थल को महातीर्थ बनाने का।
स्वयंभू बाबा श्री माणिभद्र को भव्य मंदिर बनाकर प्रतिष्ठित किया गया। प्रतिवर्ष बसंत पंचमी पर पूर्ण श्रद्धा के साथ बाबा का जन्मोत्सव मनाया जाता है।
14 फरवरी 1994 को गुजरात से आए पत्थरों को राजस्थान के कारीगरों ने दिल खोलकर तराशा और देखते ही देखते दुनिया का सबसे बड़ा रथाकार जैन मंदिर अपनी भव्यता, कलात्मकता व आस्था के अनुरूप बनकर तैयार हो गया।
इस रथाकार मंदिर में 17 प्रभु प्रतिमाओं से समालंकृत मुख्य मंदिर है। मुख्य गंभारा (सभागृह) के गुम्बज में देव-देवी, चामरधारी (इंद्र-इंद्राणी) तथा श्रावक-श्राविकाओं से युक्त 24 तीर्थंकरों की प्रतिमाओं को देखकर मन को अद्भुत शांति मिलती है। रथाकार मंदिर के आठों पहियों पर जैन संतों के 14 स्वप्नों की कलाकृति तथा अष्ट मंगल के प्रतीक चिह्न उत्कीर्ण हैं।
रथाकार मंदिर को चलायमान-सा प्रतीत करते दो काष्ठ (लकड़ी) निर्मित घोड़े हैं, जो अपने आकार व सजीवंतता से श्रद्धालुओं को प्रभु के दर्शन के लिए खींचते हैं।
तीर्थ में प्रवेश करते ही रथाकार मंदिर के दाहिनी ओर माणिभद्र बाबा का चमत्कारी मंदिर है तथा बाईं ओर श्री सिद्ध चक्र गुरु मंदिर है। गुरु मंदिर बनाने में उड़ीसा के कलाकारों ने पाषाण में अपनी रचना शक्ति का बखूबी उपयोग कर प्राचीन शिल्प की याद ताजा करा दी। गुरु मंदिर के गुम्बज में भगवान सुधर्मा स्वामी से लेकर जैनाचार्य श्री दान सूरीश्वरजी म.सा. तक 75 सूरी देवों की मूर्तियाँ स्थापित की गई हैं।
उक्त तीनों प्रमुख मंदिरों के अलावा ज्ञान मंदिर, धर्मशाला, भोजनशाला की भी व्यवस्था है, जहाँ संपूर्ण सुविधाएँ श्रद्धालुओं को उपलब्ध करवाई जाती हैं। इस महातीर्थ की एक प्रमुख विशेषता यह भी रही है कि यहाँ अभी तक करोड़ों रुपए के निर्माण कार्य हो चुके हैं, लेकिन कभी किसी प्रकार का धन संग्रहण (चंदा) नहीं लिया गया।
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