भवन निर्माण प्रत्येक मनुष्य का एक सुन्दर स्वप्न होता है, जिसका साकार रूप सभी को नसीब नहीं होता है। कुछ भाग्यशाली लोगों का ही यह सपना पूरा होता है और उसमें शनि की अहम् भूमिका होती है। जिन जातकों कि कुण्डली में शनि ग्रह स्वक्षेत्री , उच्चस्थ और मित्रक्षेत्री होकर बलवान होता है, निःसंदेह उन जातकों को बड़े भवन कि प्राप्ति का सुयोग प्राप्त होता है। इसके विपरीत शनि के पीड़ित और कमजोर होने कि स्थिति में प्राय भवन का निर्माण नहीं हो पता है और यदी हो भी गया, तो उसके काम नही आता है। भवन में स्टोर रूम, अलमारी, वार्ड रोब और ऐसा क्षेत्र जहाँ पर्याप्त प्रकाश नहीं हो तथा जहाँ पर वस्तुओं का भण्डारण होता हो, शनि के अधिकार क्षेत्र में होते हैं। शनि पश्चिम दिशा का स्वामी होता है, अतः इसके कारक अंगों को यथासंभव वास्तु के अनुरूप रखने पर शनि का प्रभाव हमें सकारात्मक मिलता है जैसे; पश्चिम दिशा में सीढिया बनाना शुभ है, जो इसके मित्र ग्रह बुध की होती है तथा बैडरूम बनाना भी शुभता लिए होता है, जो कि इसके मित्र अलावा इस दिशा में टायलेट बनाना भी शुभ होता है, जो इसके मित्र ग्रह राहू होता है। स्टोर अथवा भण्डारण स्थान या गैराज शनि के मित्र ग्रहों की कारक दिशा उत्तर, दक्षिण-पश्चिम या दक्षिण-पूर्व में बनाना भी शुभता लिए होता है। शनि के शत्रु ग्रहों के स्थान पर शनि के अंगों को स्थापित नहीं करअ चाहिए जैसे; उत्तर-पूर्व में स्टोर नहीं होना चाहिए।
दक्षिण, उत्तर-पश्चिम अथवा पूर्व में स्टोर नहीं होना चाहिए। इसके अलावा गंदे पानी कि नालियाँ, टायलेट के पीपे पश्चिम दिशा में दिए जा सकते हैं। भवन के अंदर रंगों का चयन भी शनि के रंगों से मिलन करके करना हितकर होता है। शनि एक शुष्क ग्रह है, अतः पश्चिम दिशा में नमी नहीं होना चाहिए। अगर पश्चिम दिशा में लान लगाकर अथवा पानी व्यस्था कर नमी बनाई जाती है, तो वहा रहने वालों को जोड़ों के दर्द क सामना करना पड़ता है। शनि ग्रह को शुभता प्रदान करने के लिए नीले/हरे रंगों का प्रयोग करते हुए भारी करना ज्यादा उपयुक्त रहता है। शनि कि वस्तुएं तथा; चारपाई, ट्रंक, अलमारी, स्टील के बक्से, गेहूं के भंडारण के लिए लोहे के पात्र, भरी बर्तन, ड्रम और जुटे के रैक इस दिशा में रखने से उपयुक्त शुभता प्राप्त की जा सकती है।
पश्चिम में रोशनदान नहीं रखना चाहिए और खिड़कियाँ छोटी होनी चाहिए, दरवाजे नहीं रखने चाहिए। यदी आवश्यक हो, तो खिड़की-दरवाजे छोटे होने चाहिए और अक्सर बंद रहने चाहिए। मुख्या दरवाजा दिशा विशेष में उचित स्थान पर नापकर ही रखना हितकर रहता है।
जब मुखिया को साढेसाती चल रही हो, उस अवस्था में जातक को सलाह-मशवारा कर दिशा विशेष में कार्य करना चाहिए, क्योकि पश्चिम दिशा में स्थित वास्तुदोष भी साढेसाती के दोषों को बढाने वाला होता है। निर्माणधीन स्थल पर गंदाती नहीं फैलाएं और यथासंभव बास्तु के नियमों क पालन करते हुए पश्चिम दिशा और नैऋत्य कोण को हमेशा ऊँचा और भरी बनाते जाएँ, जिससे कार्यस्थल पर एक सुन्दर संतुलन देखने को मिलेगा और कार्य करने और करवाने वाले दोनों ही सुखी रहेंगे एवं निर्माणवधि में होने वाले व्यर्थ के तनावों से बचा जा सकता है।
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