कर्म को समस्त धर्मों में अत्यंत महत्वपूर्ण माना गया है। हिंदू धर्म एवं दर्शन में तो कर्म को ईश्वर प्राप्ति का एक प्रामाणिक मार्ग कहा गया है। बोलचाल की भाषा में कर्म शब्द अत्यंत सहज एवं सामान्य प्रतीत होता है किंतु कर्म का मर्म (गहराई) बहुत गूढ़ एवं गंभीर है। इंसान अपने ही कर्मों से स्वर्ग या नर्क की रचना करता है।कर्म ही मनुष्य को प्रतिष्ठित करता है और कर्म से ही मनुष्य पतन के गड्ढे में गिरता है। कर्म से ही मनुष्य स्वर्ग प्राप्त करता है और कर्म से ही उसे नर्क की प्राप्ति होती है। स्वर्ग का अर्थ उस वातावरण और उन परिस्थितियों से है जो मनुष्य को दिव्य शांति, दिव्य आनंद एवं दिव्य जीवन की अनुभूति कराते हैं। दूसरी तरफ नरक उस वातावरण को कहते हैं जहां घोर अशांति, दु:ख, क्लेश, भय, शोषण, आदि हिंसा दुगुर्णों का निवास होता है। धर्म अध्यात्म में कर्म को योग की श्रेणी में रखा गया है। तथा कर्मयोग कहकर कर्म की महिमा व्यक्त की गई हैं। बाहर से देखने में कोई भी कर्म छोटा या बड़ा नहीं होता । एक मोची द्वारा जूते बनाना और कलेक्टर द्वारा प्रशासनिक कार्य करना बिल्कुल एक समान है। यहां तक कि उस मोची का काम उस भ्रष्ट कलेक्टर से अधिक श्रेष्ठ है जो अपना काम पूरी ईमानदारी और मेहनत से करता है।
18 अप्रैल 2010
स्वर्ग जाएं या नर्क मरजी आपकी
Posted by Udit bhargava at 4/18/2010 10:06:00 pm
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