त्रिदेव - ब्रह्मा-सर्जक, विष्णु-पालक, शिव-संहारक।
तीन गुण - सत्व, रज, तम।
तीन काल - भूतकाल, वर्तमानकाल, भविष्यकाल।
तीन लोक - स्वर्ग्लोग, मृत्युलोक, पाताललोक।
ताप त्रय - दाहिक, दैविक, भौतिक।
चार आश्रम - ब्रह्मचर्य, गृहस्थ, वानप्रस्थ, और संन्यास।
चतुर्युग - सतयुग, त्रेता, द्वापर और कलियुग।
चार धाम - पूर्व में जगन्नाथ, पश्चिम में द्वारिका, उत्तर में केदारनाथ और दक्षिण में रामेश्वरम।
चार पुरुषार्थ - धर्म, अर्थ, काम और मोक्ष।
चार अन्तरेंद्रिय - मन, बुद्धि, चित और अहंकार।
पांच ज्ञानेन्द्रियाँ - नेत्र, कान, नासिका, जीभ, त्वचा।
पांच कामेंद्रियाँ - मुख, हाथ, पैर, गुदा, उपस्थ।
पांच तत्व - पृथ्वी, जल, तेज, वायु, आकाश।
पांच प्राण वायु - प्राण, अपान, समान, व्यान, उदान।
पांच सम्रदाय - वैष्णव, शैव, शाक्त, गाणपत्य, सौर।
पांच पुष्प - चम्पा, आम, शमी, कमल, कनेर।
पञ्चकन्या - अहल्या, द्रौपदी, कुंती, तारा, मंदोदरी।
पंचोपचार पूजा - गंध, पुष्प, धुप, दीप, नैवेध अर्पण करना।
पञ्च रत्न - सोना, हीरा, मोती, माणिक्य, नीलम।
पञ्चपल्लव - बट, गुलर, पीपल, आम, पाकड़, पांच वृक्षों के पत्ते पञ्चपल्लव कहे जाते हैं. पूजा के समय में प्रयोग होते हैं।
पञ्चगव्य - गो दूध, गो मूत्र, गोबर, गाय घी, गाय दही, पांच पदार्थों से पूजा से पूर्व इन से स्नान और पान आतंरिक और बाह्म शुद्धी हेतु किया जाता है।
मधुपर्क - घी, शहद और दही का मिश्रण ही मधुपर्क है।
पंचामृत - दूध, दही, घी, मधु, शक्कर के मिश्रण से तैयार होता है। पूजा अभिषेक में इस का प्रयोग किया जाता है।
पंचामृत पान करने से क्या लाभ है। दूध-बौद्धिक और मानसिक शक्ति, दही-विजय प्राप्ति, घी-विद्या प्राप्ति, मधु-आयु, शक्कर-शत्रुनाश और पाँचों के समिश्रम से भक्ति प्राप्त होती है।
षटविकार - काम, क्रोध, लोभ, मोह, मद, मात्सर्य।
षट रस - मधुर, अम्ल, तिक्त, कटु, लावन, कषाय।
वेद के छ: अंग - शिक्षा, कल्प, व्याकरण, ज्योतिष, छ्न्द, नीरूक्त।
गृहस्थ के नित्य छ: कर्म - देव पूजन, अतिथि सत्कार, तुलसी पूजा, गौयास, सूर्य अर्द्ध, दीपदान
मुख्य छ: सरोवर - राजस्थान में पुष्कर, कुरुषेत्र में ब्रह्मसरोवर, निमिषारण्य में चक्तीर्थ, कुरुषेत्र महाभारत युद्धस्थली में ज्योतिसार, पंजाब में अमृतसर और गोवर्धन में मानसी गंगा।
सप्तसागर - क्षारोद, इक्षुरसोद, सुरोद, घृतोद, क्षोरोद, दधिमण्डोद, शुद्धोद।
सप्तद्विप - जम्बू, प्लक्ष, शालमलि, कुश, कौंच शाक, पुष्कर।
सात प्रकार का दान - अन्न, सम्पत्ति, बुद्धि, श्रम, रक्त, जीव, कन्यादान।
सप्त ऋषि - गौतम, भारद्वाज, विश्वामित्र, जमदग्नि, वशिश्ठ, कश्यप, अत्रि।
सप्तपुरि - काशी, कांची, माया, (हरिद्वार), अयोध्या, द्वारिका, मथुरा अवन्तिका (उज्जैन)।
प्रमुख सात बन - काम्यक, अदिति, व्यास, फ़लकी, सूर्य, मधु, पुण्यशीत।
प्रमुख सात नदियां - गंगा, यमुना, सरस्वती, गोदावरी, नर्मदा, सिन्ध, कावेरी।
सात पर्वत - हिमालय, निषध, विन्ध्य, माल्यवान, पारियात्र, गंधमादन, हेमकूट।
अष्टगंध - चंदन, अगर, देवदारु, केसर, कपूर्र, जटामासी, गोरोचन, शैलज, आदि का मिश्रन यन्त्र लेखन में प्रयोग किया जात है।
अष्टांग अर्ध - जल, दूध, कुश, दही, अक्षत, तिल, जौ, पीली सरसों इन आठ वस्तुओं को मिला कर सूर्य अर्ध दिया जाता है.
नौ धातुएं - सोना चांदी, तांबा, पीतल, कांसा, सीसा, जस्ता, रांगा और लोहा।
नवधा भक्ति - श्रवण, कीर्तन, स्मरण, पादसेवन, अर्चन, बंदन, सख्य, दास्य, आत्मनिवदन।
नौ भूभाग - भारत, इलावर्त, किंपुरुष, भद्र, केतुमाल, हरि, हिरण्य, रम्य, कुश।
नवदुर्गा - शैलपुत्री, ब्रह्मचरिणी, चन्द्रघंटा, कुष्मांडा, सकन्दमाता, कात्यायनी, कालरात्रि, महागौरी, सिद्धिदात्री।
नौ कुमारी - कुमारिका, त्रिमूर्ति, कल्यानी, रोहिनी, काली, चंडीका, शांभवी, दुर्गा, सुभद्रा, इन नौ कुमारियों की पूजा दुर्गा पूजन के समय नौ कन्या के रूप में होती है।
षोडशोपचार पूजा - आहावान, आसन, पाघ, अर्ध्य, आचमन, स्नान, वस्त्र यज्ञोपवीत, सुगंध, अक्षत, पुष्प, धुप, दीप, नैवेद, ताम्बूल, पुष्पांजली, (प्रदक्षिना) आदि भगवान् के सोलह कला पूर्ण शरीर का निर्माण करना ही सोहल उपचार की पूजा का विधान है।
हवन हेतु उपयुक्त लकडी - शमी, ढाक, बट, पीपल, गूलर, जड, बेल, आम, चंदन कपूर्र, चीड, साल, देवदारू, और खैर के वृक्षों की लकडी हवन के लिये उत्तम है।
हवन सामग्री मिश्रण - एक भाग चावल, चावल से दो गुना घी, चावल से तीन गुना जौ, चावल से चार गुना तिल, और शक्कर इच्छानुसार का मिश्रण ही उत्तम समग्री बताई गई है।
23 अप्रैल 2010
कुछ ज्ञातव्य बातें ( kuch Gyaatvy baaten )
Posted by Udit bhargava at 4/23/2010 09:34:00 pm
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