22 अप्रैल 2010

अगर सीधे पहुंचना हो परमात्मा तक

परमात्मा यानी उस परम शक्ति तक हम सीधे भी पहुंच सकते हैं। इसके लिए भक्ति नहीं हमें प्रयास करना होगा खुद को साधने का। खुद के स्वाभाव को फकीराना बनाना होगा। हम तीर्थो में जाते हैं तो मंदिर और प्रतिमाओं तक ही सीमित रह जाते हैं, कभी उसके भीतर यानी परमात्मा को समझने की कोशिश भी नहीं करते।

सीधे ईश्वर तक पहुंचने की तड़प आदमी के भीतर फकीरी ला देती है। मुस्लिम फकीरों की परंपरा में शिबली का नाम अदब से लिया जाता है। उनका आग्रह रहता था कि सीधे अल्लाह तक पहुंचो। अपनी इस बात को कहने के उनके ढंग निराले होते थे। धर्मस्थलों का लोगों ने उपयोग केवल दिखावे के लिए किया है इस पर शिबली को आवेश भी रहता था। एक बार वे हाथ में जलते हुए अंगारे लेकर घूम रहे थे। लोगों ने सवाल पूछा तो शिबली का जवाब था इससे खान-ए-काबा को जलाने की तैयारी है। लोगों को नाराजी आना स्वाभाविक थी। ये मुसलमान होकर काबा यानी मुसलमानों के सर्वश्रेष्ठ पवित्र स्थान के लिए ऐसा कह रहे हैं, लेकिन जब शिबली फकीर ने अपनी बात को और साफ करके जवाब दिया तो लोग चौंके, शर्मिन्दा भी हुए और खुश भी। बात इशारे में की गई थी। उनका कहना था इसलिए ऐसा करना चाहता हूं लोग केवल वहीं की इबादत पर टिक जाते हैं और सीधे खुदा की ओर नहीं चलते। शिबली का इशारा था लोग केवल काबा की जगह पर न टिकें बल्कि साहबे काबा (परमात्मा, उस स्थान के मालिक) पर टिकें।सचमुच हम लोगों का जीवन ऐसा ही हो जाता है कि हम खुदा को सुनते हैं खुदा की नहीं सुनते। एक दफा शिबली के हाथ जलती लकड़ियां देख फिर सवाल पूछा गया, अब किसे जलाने का इरादा है। जवाब बेमिसाल ही आया। जन्नत (स्वर्ग) और दोजख (नर्क) दोनों को जला दूंगा। अभिव्यक्ति की निराले तौर तरीके के साथ फकीर बोले जन्नत और दोजख के डर से लोग उस ऊपर वाले की इबादत करें यह गलत है। व्यक्ति निलरेभ, निर्भय और निर्दोष होना चाहिए। हमें समझना होगा कि जीवन एक सतत् प्रशिक्षण है। संत फकीर अपने-अपने अन्दाज से हमें सिखाते जाते हैं।