दुख एक आग की तरह होता है जो व्यक्ति को जलाता है, तपाता है। सामान्यत: दुखी व्यक्ति के मन में यही ख्याल होता है कि भगवान भी उसका दुश्मन हो गया है परंतु ऐसा नहीं है।
जिस तरह सोना आग में तपने के पहले भी सोना ही होता है परंतु उसका मूल्य और उसकी सुंदरता किसी को लुभाने वाली नहीं होती। वही सोना आग में तपने के बाद चमकीला और बहुमूल्य हो जाता है। उसी तरह यदि कोई दुखों से घिरा हुआ है तो इसका मतलब यही है भगवान उसे दुखों की आग में तपा कर सोने के समान चमकीला और बहुमूल्य बनाना चाहता है।
दुख को एक और उदाहरण से समझा जा सकता है हार्स रेस में जॉकी घोड़े को पीटता है, मारता है ताकि वह तेज दौड़े। घोड़ा के मन में भी यही होता है कि ये दर्द, ये मार उसे क्यूं झेलना पड़ रही है। परंतु इसी दर्द की वजह वह रेस जीत जाता है। उसी तरह हमारे दुख-दर्द के समय यही सोचना चाहिए कि भगवान भी चाहता है यह जीवन की रेस जीत जाए।
अत: दुख से घबराना नहीं चाहिए और उसका हंसते हुए सामना करने से ही दुख से निपटा जा सकता है।
18 अप्रैल 2010
दुःख से घबराना नहीं, सामना करों
Posted by Udit bhargava at 4/18/2010 09:49:00 pm
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