असली त्याग तब होता है जब आप ये जान लेते हैं कि हमारा कुछ भी नहीं है और जब इस भाव से छोड़ते हैं तब त्याग घटता है। लोग संसार छोड़ने की बात करते हैं लेकिन गहराई में देखा जाए तो संसार हमारा है ही कहां जिसे हम छोड़ेंगे। इसे समझ लेंगे तो संसार में रहने का मजा ही बदल जाएगा। गौतम बुद्ध ने एक बड़ी सुंदर बात कही है। जैसे भंवरा फूल और उसकी गंध को बिना नुकसान पहुंचाए उसका रस ले लेता है वैसे ही हमारे मुनिगण गांव में भिक्षाटन करें। बात बहुत बढ़िया है। जैसे भंवरा बिना कोई नुकसान किए रस लेकर चल दिया वैसे ही हम जिंदगी को बिना कोई हानि पहुंचाए जीवन को जी लें। यह अहिंसा का उदाहरण है। हम रस तो ले सकते हैं पर किसी को नुकसान पहुंचाने के अधिकारी नहीं हैं। अहिंसा का ऐसा भाव जीवन में आते ही अशांति चली जाएगी। बुद्ध समझा रहे हैं जीवन हमें जो भी रस दे उस रस को ले लिया जाए और धन्यवाद दे दिया जाए। कहीं ऐसे भंवरे न बन जाएं जो रस चूसने में इतने मशगूल हो जाते हैं कि फिर उड़ना ही भूल जाते हैं और शाम को जब कमल के फूल की पंखूड़ियां बंद हो जाती है तो उसमें कैद हो जाते हैं। बस दुनिया में यही हमारी जिंदगी का उसूल हो जाए। यह दुनिया हमारे लिए कारागृह न बन जाए। रस लें आभार दें और बिना कोई नुकसान पहुंचाए मुक्त हो जाएं। प्रकृति से जो संबंध बुद्ध ने जोड़ा है उसके लिए भारतीय पद्धति का आश्विन मास (इस वर्ष ४ सितंबर से ४ अक्टूबर) बड़ा अनुकूल है। इसी माह में नवरात्रि आरंभ होती है। नवरात्र का अर्थ है नई रातें। यहीं से दिन छोटे और रात बड़ी होने लगेंगी। इस ऋतु परिवर्तन काल में नौ दिन शक्ति आराधना से हम भंवरे की तरह फूल को बिना नुकसान पहुंचाए रसानुभूति कर सकते हैं।
22 अप्रैल 2010
भगवान का अनमोल तोहफा है जीवन
असली त्याग तब होता है जब आप ये जान लेते हैं कि हमारा कुछ भी नहीं है और जब इस भाव से छोड़ते हैं तब त्याग घटता है। लोग संसार छोड़ने की बात करते हैं लेकिन गहराई में देखा जाए तो संसार हमारा है ही कहां जिसे हम छोड़ेंगे। इसे समझ लेंगे तो संसार में रहने का मजा ही बदल जाएगा। गौतम बुद्ध ने एक बड़ी सुंदर बात कही है। जैसे भंवरा फूल और उसकी गंध को बिना नुकसान पहुंचाए उसका रस ले लेता है वैसे ही हमारे मुनिगण गांव में भिक्षाटन करें। बात बहुत बढ़िया है। जैसे भंवरा बिना कोई नुकसान किए रस लेकर चल दिया वैसे ही हम जिंदगी को बिना कोई हानि पहुंचाए जीवन को जी लें। यह अहिंसा का उदाहरण है। हम रस तो ले सकते हैं पर किसी को नुकसान पहुंचाने के अधिकारी नहीं हैं। अहिंसा का ऐसा भाव जीवन में आते ही अशांति चली जाएगी। बुद्ध समझा रहे हैं जीवन हमें जो भी रस दे उस रस को ले लिया जाए और धन्यवाद दे दिया जाए। कहीं ऐसे भंवरे न बन जाएं जो रस चूसने में इतने मशगूल हो जाते हैं कि फिर उड़ना ही भूल जाते हैं और शाम को जब कमल के फूल की पंखूड़ियां बंद हो जाती है तो उसमें कैद हो जाते हैं। बस दुनिया में यही हमारी जिंदगी का उसूल हो जाए। यह दुनिया हमारे लिए कारागृह न बन जाए। रस लें आभार दें और बिना कोई नुकसान पहुंचाए मुक्त हो जाएं। प्रकृति से जो संबंध बुद्ध ने जोड़ा है उसके लिए भारतीय पद्धति का आश्विन मास (इस वर्ष ४ सितंबर से ४ अक्टूबर) बड़ा अनुकूल है। इसी माह में नवरात्रि आरंभ होती है। नवरात्र का अर्थ है नई रातें। यहीं से दिन छोटे और रात बड़ी होने लगेंगी। इस ऋतु परिवर्तन काल में नौ दिन शक्ति आराधना से हम भंवरे की तरह फूल को बिना नुकसान पहुंचाए रसानुभूति कर सकते हैं।
Posted by Udit bhargava at 4/22/2010 05:51:00 pm
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