13 जनवरी 2010

स्वर्ण-युग नहीं है पीछे

कहीं पीछे कुछ स्वर्ण नहीं हो गए हैं। कुछ अच्छे आदमी हुए हैं। स्वर्ण-युग तो उस दिन होगा जिस दिन सारे लोग बहुत अच्छे होंगे। वह भविष्य में हो सकता है। वह पीछे नहीं हुआ है। पुरानी से पुरानी किताब देखें। वह किताब भी यह नहीं कहती है कि आजकल के लोग अच्छे हैं।

वह किताब कहती है- पहले के लोग अच्छे थे। छः हजार वर्ष पुरानी किताब भी यही कहती है कि पहले के लोग अच्छे थे। तब जरा शक होता है, ये पहले के लोग कब थे? ये थे कभी या कुछ अच्छे लोगों की याद को आधार बनाकर उन्हें अच्छा कहा गया?

अगर महावीर की शिक्षाएँ उठाकर देखें, तो महावीर क्या समझाते हैं, सुबह से साँझ तक? चोरी मत करो, बेईमानी मत करो, दूसरे की स्त्री को मत भगाओ, हिंसा मत करो। अगर लोग अच्छे थे, तो महावीर यह किसको समझा रहे थे? बुद्ध भी यही समझाते हैं। क्राइस्ट भी यही समझाते हैं। दुनिया के सारे महापुरुष सुबह से शाम तक एक ही काम करते हैं- चोरी मत करो, हिंसा मत करो, बेईमानी मत करो, व्यभिचार मत करो। किसको समझाते हैं ये चौबीस घंटे? अगर लोग अच्छे थे, तो समझाने की कोई जरूरत न थी।

लेकिन लोग उलटे रहे होंगे। चोरों को ही समझाना पड़ता है-चोरी मत करो। बेईमानों को ही समझाना पड़ता है- बेईमानी मत करो। हत्यारों को ही समझाना पड़ता है- हिंसा बुरी है, अहिंसा परम धर्म है। सिर्फ हिंसकों को ही समझाना पड़ता है कि अहिंसा परम धर्म है।ये सारी शिक्षाएँ बताती हैं कि समाज कैसे लोगों से गठित था, कैसे लोग थे।


महावीर की शिक्षाएँ उठाकर देखें, तो महावीर क्या समझाते हैं, सुबह से साँझ तक? चोरी मत करो, बेईमानी मत करो, दूसरे की स्त्री को मत भगाओ, हिंसा मत करो। अगर लोग अच्छे थे, तो महावीर यह किसको समझा रहे थे? बुद्ध भी यही समझाते हैं। क्राइस्ट भी यही समझाते है ।

हमारी सारी शिक्षाएँ बताती हैं कि समाज अच्छा नहीं रहा है। समाज अच्छा हो सकता है, लेकिन समाज अपने आप अच्छा नहीं हो सकता है। समाज बुरा है, तो हमारे कारण है और समाज अगर अच्छा होगा, तो हमारे कारण होगा। हम कुछ करेंगे तो होगा।

लेकिन भारत मानता है कि हमारे किए तो कुछ होता नहीं, सब भगवान करता है। इस बात ने जितना हमें नुकसान पहुँचाया है, उतना किसी और बात ने नहीं। क्योंकि जिस आदमी को, जिस समाज को यह ख्याल हो जाता है कि सब भगवान करता है, वह समाज सबकुछ बंद कर देता है।