वह कहानी आपने सुनी होगी जब जंगल में आग लग गई थी तो एक लंगड़ा और एक अंधा था। वो दोनों बच के कैसे निकले? अंधा चल सकता था लेकिन उसे दिखाई नहीं देता आज हमारी स्थिति भी वैसी ही है।
विज्ञान और धर्म का एक समन्वय चाहिए। संसार की सफलता और भीतर की शांति इनका संयोग चाहिए वरना हम बड़े खतरे की स्थिति में हैं। अगर विज्ञान जैसा बढ़ता जा रहा है तो बिल्कुल अंधा है वह। चलने की ताकत उसके पास है, वो तरक्की करता जा रहा है लेकिन वह गड्ढे में जाकर गिरने वाला है उसको ये भी नहीं पता।
अगर थर्ड वर्ल्ड वार हुआ
तो आखिरी वार होगा, उसके बाद कोई बचेगा नहीं लड़ने के लिए। धर्म अकेला लंगड़ा है। उसको दिशा तो दिखाई देती है कि उसको कहाँ जाना है, कैसे जाना है लेकिन वह चल नहीं पाता। अगर इन दोनों में धर्म जल्दी ही एक संतुलन नहीं बना और विज्ञान में या संक्षेप में कह लें कि पूरब और पश्चिम में या हमारे बाहरी जीवन और आंतरिक जीवन का कह लें अगर ये संतुलन नहीं बना तो मानवता गिरने के करीब है।
अंधा जानता था कि जाना कहाँ है और लंगड़े को दिखाई देता था मगर वह चल नहीं सकता था तो कैसे जाएँ। और फिर संयोग बना, उनमें समझ डेवलप हुई। अंधे ने लंगड़े को अपने कंधे पर बिठा लिया, लंगड़ा राह दिखाता गया और अंधा चलता गया तब दोनों जंगल की आग से बाहर हो गए। आज हमारी स्थिति भी वैसी ही है। विज्ञान और धर्म का एक समन्वय चाहिए।
13 जनवरी 2010
विज्ञान और धर्म का समन्वय
Labels: प्रवचन
Posted by Udit bhargava at 1/13/2010 08:12:00 am
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