12 जनवरी 2010

उपहार

उस दिन शेरोजा का जन्मदिन था। इस मौके पर उसे ढेर सारे उपहार मिले। किसी ने खूबसूरत पेंटिंग्स दिए, तो किसी से मिला उसे मनपसंद घोडेवाला खिलौना। लेकिन एक उपहार इन सबसे बिल्कुल अलग था।दरअसल, शेरोजा के अंकल ने उसे एक चिडिया पकडने वाला पिंजरा (ट्रैप) दिया था।
मां-मां देखो न, अंकल ने कितना सुंदर उपहार दिया है। यह बेहद अलग है और सबसे खास भी, शेरोजा ने मां को पिंजरा दिखाते हुए कहा।
अरे, यह खेलने की चीज नहीं है और चिडिया पकडकर तुम क्या करोगे? मां ने हैरानी से पूछा।
मैं सुंदर-सुंदर चिडियों को इसमें फंसाकर रखूंगा, शेरोजा ने तुरंत कहा, मुझे चिडिया की आवाज बहुत पसंद है। बहुत मजा आएगा, जब वे मीठे सुरों में मुझे गाना सुनाएंगी। हां, उन्हें पिंजरे में यूं ही नहीं रखूंगा। उनकी पूरी देखभाल भी करूंगा। उन्हें दाना-पानी दूंगा और रोजाना पिंजरे की सफाई भी करूंगा, उसने प्रसन्नता से कहा।
शेरोजा भागकर गया और घर से कुछ दाने ले आया। अंकल के सुझाए गए तरीकों के मुताबिक, उसने घर के आंगन में पिंजरा रखकर उसमें दाने बिखेर दिए और वहीं खडा हो गया। दरअसल, वह देखना चाहता था कि कैसे इस ट्रैप में चिडिया फंसती है। लेकिन शायद शेरोजा की मौजूदगी के कारण वहां कोई चिडिया नहीं आ रही थी। शेरोजा को भूख लगी थी, इसलिए वह पिंजरे को वहीं छोडकर डिनर के लिए चला गया।
अरे वाह, इतनी सुंदर चिडिया। यह तो बहुत प्यारी है-डिनर से वापस आने के बाद शेरोजा ने पिंजडे में एक नन्ही-सी चिडिया को देखकर कहा। उसने देखा कि वह बार-बार पिंजरे की दीवार पर चोंच मार रही है और बाहर आने के लिए छटपटा रही है। उससे रहा नहीं गया और वह तुरंत पिंजरे को घर के अंदर ले आया।
मां देखो न, मैंने कितनी खूबसूरत चिडिया पकडी है-शेरोजा ने खुशी से लगभग चीखते हुए कहा।
मेरे खयाल से यह बुलबुल है। जरा देखने दो कि इसकी धडकन सही है या नहीं-चिडिया को हाथ में लेकर मां ने कहा, अरे, यह तो वाइल्ड कनारी है। जरा सावधान रहना। इसे तुम परेशान बिल्कुल मत करना। बेहतर होगा, यदि तुम इसे आजाद कर दो-मां ने शेरोजा को सलाह दी।
नहीं-शेरोजा ने तल्खी से कहा।
मैं जाता हूं और इसके लिए कुछ खाने-पीने का प्रबंध करता हूं -शेरोजा यह कहते हुए वहां से चला गया। उसने पक्षी को पिंजरे में दोबारा रख दिया और उसकी देखभाल करने लगा। दो दिनों तक लगातार उसने उस नन्ही-सी चिडिया की अच्छी देखभाल की। लेकिन तीसरे दिन से उसकी चिडिया में दिलचस्पी कम हो गई। पिंजरा बेहद गंदा हो चुका था। उसमें रखा पानी भी पुराना हो चुका था।
देखो, तुम चिडिया की देखभाल नहीं कर रहे हो। अब भी समझ जाओ शेरोजा। बेहतर होगा, तुम इसे आजाद कर दो-मां ने पिंजरे की तरफ इशारा करते हुए शेरोजा से कहा।
मां की बात पर ध्यान न देते हुए शेरोजा ने पिंजरे की सफाई शुरू कर दी। जब तक वह सफाई करता रहा, वह नन्ही चिडिया उसमें बुरी तरह फडफडा रही थी। शायद वह शेरोजा से बहुत डरी हुई थी।
पिंजरे की सफाई करने के बाद शेरोजा पानी लाने के लिए चला गया। इस दौरान वह पिंजरे का दरवाजा बंद करना भूल गया। मां ने जब यह देखा तो शेरोजा को आवाज दी- शेरोजा, पिंजरे का दरवाजा बंद कर दो। वरना चिडिया उड जाएगी। उसे चोट भी पहुंच सकती है-मां ने शेरोजा से इतना ही कहा। वह यह बताना भूल गई थीं कि पिंजरे का दरवाजा खुला देख चिडिया कितनी खुश थी और पंख फैलाकर कमरे में इधर-उधर फुदकने लगी थीं।
मां की आवाज सुनते ही शेरोजा दौडते हुए आया और चिडिया को फिर से पिंजरे में कैद कर दिया। अगले दिन उसने देखा कि चिडिया की सांसें तेज-तेज चल रही है और वह बिल्कुल अधमरी सी हो गई है। शेरोजा उसे बार-बार देख रहा था। उसे आभास हो चुका था कि जरूर कुछ बुरा हुआ है।
मां देखो न, चिडिया को क्या हो गया है। मैं अब क्या करूं?-शेरोजा ने रोते हुए मां से पूछा।
अब कुछ नहीं हो सकता। जो होना था, वह हो चुका-मां ने नाराजगी जाहिर की।
शेरोजा पूरे दिन पिंजरे को लिए बैठा रहा। वह देख रहा था कि कैसे पेट के बल लेटी हुई चिडिया अपनी अंतिम सांसें गिन रही है। रात को जब वह सोने गया, तब तक उसकी मौत हो चुकी थी। यह शेरोजा के लिए एक बडा सदमा था।
चिडिया की मौत ने उसे कई रातों तक सोने नहीं दिया। जब भी आंखें बंद करता, तो उसे पिंजरे में कैद फडफडाती और आजादी के लिए संघर्ष करती वह नन्ही-सी चिडिया ही दिखाई देती।
सुबह उसने देखा कि पिंजरे में चिडिया पीठ के बल लेटी हुई है। उसके दोनों पैर ऊपर की ओर हैं और एक-दूसरे से लिपटे हुए हैं। यह एक ऐसी घटना थी, जो उस उपहार की वजह से ही हुई थी। लेकिन शेरोजा को इससे मिला सबक उस उपहार के मूल्य से कहीं ज्यादा बडा था।

पेश है रूसी उपन्यासकार लियो टॉल्सटाय की कहानी द बर्ड।
जन्मदिन पर मिले उपहार ने एक बच्चे को कैसे सिखाया बड़ा सबक?
यही बयां कर रही है यह कहानी।