12 जनवरी 2010

वचन

आलीशान बंगले का शयनकक्ष है यह..। मानसी के हाथो डेकोरेट किया गया यह कमरा, आज भी उसे मानसी के करीब होने का एहसास कराता है। बिस्तर के ठीक सामने दीवार पर जो कैनवास है उसमे शोख, चंचल, गहरी आँखो वाली एक लडकी कही शून्य मे ताक रही है। खिडकियो पर डोलते हुए झीने आसमानी पर्दो से झांकती हुई हरियाली, नीला आकाश सब कुछ अत्यन्त मोहक, सपनो के घर जैसा। पर उसका मन आज भी विचलित है सदा की तरह। मानसी की यादे आदित्य के जीवन की एकमात्र धरोहर है। वह सोचने मे मग्न था तभी मेन गेट की कुण्डी खटकी और पोस्टमैन की आवाज आई। वह लिफाफा लेकर शयनकक्ष मे आ गया। लिफाफे की हस्तलिपि से पहचान गया, मानसी का पत्र! उसका दिल तीव्र गति से धडकने लगा, पूरे पाँच वर्ष हो गये थे मानसी से अलग हुए कुछ देर असमंजस की स्थिति मे रहने के बाद उसने लिफाफा खोला, और पत्र पढने लगा।
आदित्य,
पाँच वर्षो मे पहला पत्र है यह मेरा, आज पूरे पाँच वर्ष हो गये तुमसे जुदा हुए, शादी के लिए मैने ही मना किया था, तुम यह सोचकर मुझसे नफरत करते रहे होगे कि मैने तुम्हारा जीवन तहस नहस कर दिया, आज तुम कुछ अधिक उदास हो मै जानती हूँ। एक सपना है मेरे पास, जिसे संवारकर रखा है मैने, वह यह कि एक बार तुम्हारे साथ पाँच वर्ष पूर्व बिताये हुए प्रेम से ओत-प्रोत क्षण पुन: दोहराऊँ। आदित्य, मैने तुम्हारे साथ न्याय नही किया, आज भी मै अपने बोझिल उदास क्षणो को क्या तुम पर थोपकर अन्याय नही कर रही हूँ? जब मै अमेरिका आयी शुरू मे तुम्हारी कमी बहुत खलती थी फिर धीरे-धीरे आदत सी हो गयी, तुम सोचते होगे मेरा एक सुखी संसार है। पति और बच्चे है। परन्तु आज बताती हूँ मैने विवाह नही किया। मैने तुमसे झूठ बोलकर भारत छोडा था कि मै अमेरिका के एक बडे लेखक से शादी करने जा रही हूँ। सच तो यह है मेरा अमेरिका मे कोई राईटर मित्र था ही नही। मुझे कंधा चाहिए, तुम्हारा स्पर्श, मै टूट चुकी हूँ मेरे हिस्से मे अभी भी सपने है आदित्य..। उन सपनो का एक घरौदा बनाकर मैने अपने अन्तर्मन मे संभालकर रख छोडा है। मै जीवन से कभी निराश नही हुई तुम्हारी आँखे आज भी मुझे जीने के लिए प्रेरित करती रहती है। तुम्हारे साथ बिताये हुए क्षणो मे से एक क्षण मै कभी भूल नही सकती। उस रोज की एक-एक बात मेरे मन की गहराईयो मे दर्ज है। जब प्रथम बार हम दोनो एक नई राह पे चले थे और तुमने मेरा हाथ पकडकर कहा था मानसी..! तुम इतनी पढी लिखी लडकी, तुम्हारा हाई सोसाइटी का जीवन, मै एक गरीब इन्सान। कही तुम्हे आगे चलकर पछताना न पडे।
तब मैने ही तो कहा था। आदित्य, मैने कसम खायी है एक दिन मै तुम्हे अपने बराबर लाकर खडा करूँगी, तुम्हे अपने काबिल बनाकर पापा से तुमको मिलाऊँगी।
अक्सर तुम परेशान होकर कह उठते थे।
मानसी! तुम मुझपर तरस खाकर तो मेरा जीवन नही संवारना चाहती हो..?
तब मेरा जवाब होता। वास्तव मे मै तुम्हे बहुत प्रेम करती हूँ तुम्हे बदलकर रहूँगी देखना। तब तुम मुझे आलिंगन मे बाँध लेते और अधीर होकर कहते, मानसी! तुम मुझे संसार की हर वस्तु से अधिक प्रिय हो, तुमसे अधिक प्रिय मुझे कुछ भी नही। कभी हमे बिखरने मत देना, तुम बिन जी न सकूँगा। तुम कभी भी परिस्थिति के आगे विवश होकर कोई निर्णय मत लेना, मै हर हाल मे तुम्हारे साथ हूँ। तुम्हारी ये बात, ये वचन ही तो है जिनके सहारे मै जी सकी हूँ। राज की बात बताऊँ! मैने तुमसे बेवफाई इसलिए की थी, पापा ने अपनी कसम दी थी कि उनके जीते जी मै तुम्हारे साथ शादी न करूँ। और मैने उनकी सौगन्ध मान ली थी, परन्तु तुमसे किया वादा भी मैने निभाया है मैने किसी और से शादी नही की! अगर मै तुमसे यह न कहती कि मै अमेरिका एक बडे लेखक से शादी करने जा रही हूँ। तो तुम शायद वह न बन पाते जो आज हो। तुम्हारे पास बिजनेस, धन-दौलत, हाई सोसाइटी का जीवन सभी कुछ तो है। आशा करती हूँ प्रिय आदित्य, तुम मुझे माफ कर दोगे। अब पापा भी नही रहे, यहाँ तन्हाई मे मेरा दम घुटता है। अपना पता दे रही हूँ।
केवल तुम्हारी मानसी..।
पत्र पढने के बाद आदित्य ने आँखे मूंद ली, मानसी का चेहरा मुंदी पलको मे सेध लगाकर पुतलियो पर नाचने लगा, वह कराह उठा, मानसी..! एक बार फिर तुम मेरे अधूरे जीवन को पूर्ण कर दो। तुमने कठिन घडी मे भी मुझे बिखरने न दिया और आज, आज तो सम्पूर्ण जीवन की खुशियाँ लौटा दी। मानसी! तुम्हे कितना मेरा ख्याल रहा।
मानसी को आदित्य से गहरा प्रेम था परन्तु वह अपने लेखन कैरियर के प्रति भी बहुत सजग थी। उसके दो सपने थे एक तो वह स्वयं एक उच्चकोटि की लेखिका बनना चाहती थी दूसरे वह आदित्य को एक कामयाब इन्सान के रूप मे देखना चाहती थी, उसके दोनो ही सपने परिपूर्ण हो गये थे। परन्तु पाँच वर्षो की लम्बी प्रतीक्षा वेदना के बाद..। आदित्य ने बेमन से नाश्ता किया और आफिस पहुँच गया। उसके नीरस जीवन मे बसंत का मौसम आ गया था।
पहली बार जब उसका परिचय मानसी से हुआ था, तो क्या पता था कि बस मे सफर कर रहे दो अजनबी मुसाफिर एक डगर पे चल पडेगे, फिर उन दोनो मे दोस्ती हुई। धीरे-धीरे प्रेम ने जन्म लिया। जाने उसके व्यक्तित्व का जादू था या संयोग, आदित्य लगातार उसकी ओर झुकने लगा था।
आदित्य उसे बहुत अधिक चाहता था उसने मानसी को वचन दिया था वह आखिरी साँस तक केवल उसी का रहेगा।
फिर, वह उसे बीच राह पर अकेला छोडकर अमेरिका जा बसी अपने पापा के पास। वह अकेली सन्तान थी जब तक बेटी इण्डिया मे नानी के पास रह रही थी वह मिलने आया करते थे फिर उन्हे पता चला उनकी लाडली ने एक साधारण युवक के साथ घर बसाने का फैसला कर लिया है। वह तो इस बार इण्डिया यह सोचकर आये थे कि बेटी के सामने अपने करोडपति दोस्त के बेटे का प्रस्ताव रखेगे। किन्तु आदित्य से संबंधो को लेकर उन्हे बेटी के भविष्य की चिंता हुई। उन्होने सदैव बेटी की हर फरमाईश आगे बढकर पूरी की थी, लेकिन आदित्य के मामले मे उन्होने मानसी को अपनी कसम देकर बाँध दिया था कि वह उनके जीते जी इस लडके से शादी हरगिज नही कर सकती। वहाँ पहुँचकर उसने भी सोच लिया कि आखिरी साँस तक आदित्य की याद को गले लगाये रहेगी और लेखन कार्य मे जीजान से जुट गई। होनी और अनहोनी के बीच आदमी की जिन्दगी गुजरती रहती है। वह अपने लेखन कैरियर मे खुश थी, अचानक उस रात को पापा के हार्ट अटैक ने उसके जीवन की दिशा ही मोड दी थी। एक शाम वह उसे अकेला छोड कर चले गये तब वह बहुत रोई थी। परदेश मे उसको सहारा देने वाला आस बंधाने वाला कौन था सिवाय उसकी दोस्त जूली के। ऐसे मे आदित्य उसे बेहद याद आता।
जूली उसे हमेशा समझाती, कि आदित्य को भूलकर वह किसी और से विवाह कर ले। पर उसका कहना था,
नही जूली..! वह उसे धोखा नही देना चाहती, यदि विवाह करेगी तो केवल आदित्य से। आदित्य के साथ गुजारे हुए दिन स्मृति पटल पर जम से गये थे, पाँच वर्ष होने को थे परन्तु उसकी तस्वीर दृष्टि से धूमिल तक न हुई थी। वह उसके बारे मे हर सप्ताह इण्डिया मे अपनी दोस्त रंजना से पूछताछ करती रहती थी। वह बहुत बडा आदमी बन गया था उससे भी बडी बात थी उसने आज तक विवाह नही किया था सुनकर वह खुशी से सराबोर हो जाती। आदित्य को करीब से देखने की चाह उसके अन्दर और भी प्रबल हो गई। जिज्ञासा मनुष्य को अधीर बना देती है वह अपने को रोक नही पायी और आदित्य को पत्र लिखकर पोस्ट कर दिया। आदित्य को पत्र मिले दस दिन हो गये थे, परन्तु उसने अभी तक जवाब न दिया था।
उस रोज सुबह ऑफिस पहुँचकर जैसे ही आदित्य ने अपने केबिन का दरवाजा खोला, केबिन मे एक स्मार्ट लेडी को बैठा देखकर ठगा सा रह गया। वह झुकी हुई कोई पत्रिका देख रही थी, उसने पहचान लिया यह तो मानसी थी, आँखो पर चश्मा चढाये वह जरा भी नही बदली थी। इतने वर्षो के बाद एक दूसरे को सामने पाकर वह रोमांचित हो उठे थे। मानसी उसे एकटक देखती रही, आदित्य बहुत बदल गया था, वह पहले से कही अधिक आकर्षक और स्मार्ट हो गया था।
कैसे हो..? मानसी का स्वर आ‌र्द्र हो उठा।
ठीक हूँ... तुम कैसी हो..? पूछते हुए उसकी आँखे भर आयीं थीं, वह आशा भरी दृष्टि से उसे निहार रही थी, आदित्य..! मेरा सपना पूरा हो गया। तुम वह बन गये जो मै तुम्हे बनाना चाहती थी, काश! आज पापा जिन्दा होते तो वह तुम्हारी हैसियत तुम्हारा स्टेटस देखकर इन्कार न कर पाते। मानसी यह सब तुम्हारे प्यार के सहारे हुआ। क्या तुम मुझे आज भी उतना ही प्रेम करते हो..? वह पूछ रही थी। मानसी प्यार कभी छुपता है क्या..? वो तो उस सूरज की तरह होता है जो काले बादलो के बीच अपने होने का एहसास दिलाता है।
आदित्य...! मेरा इण्डिया आने का मकसद सिर्फ वह वचन है जो पाँच वर्ष पूर्व मैने तुम्हे दिया था। मैने कहा था न.. संभाला है तो साथ निभाऊँगी, मै तुम्हे कभी बिखरने नही दूँगी।
ओ मानसी॥! तुम कितनी अच्छी हो, मै बडा खुशनशीब हूँ, जो तुम जैसी लडकी मुझे मिली। मै तुम्हे कभी दुख नही दूँगा, आई प्रॉमिज यू..। यह कह कर आदित्य ने उसे आलिंगन मे बाँध लिया था।