12 जनवरी 2010

अविश्वसनीय

गोमती हमेशा की तरह लेट थी। कोई कितनी ही डींगे हांके, इस देश का रेल विभाग न अब तक संभला है, न आगे संभलेगा। आमदनी बढाने के कितने ही फर्जी आंकडे गिनाए जाएं, अपने प्रबंध-कौशल की कितनी ही प्रशंसा कर लें, ट्रेनें न वक्त पर चल सकती हैं, न उनमें भीड-भडक्का कम हो सकता है, न गुंडागर्दी थम सकती है, न नकली वेंडरों पर लगाम कसी जा सकती है, न खाने-पीने की चीजें सही मिल सकती हैं, न साफ-सफाई और रख-रखाव ठीक हो सकता है, न दुर्घटनाएं रुक सकती हैं, न रेल-कर्मचारियों की लापरवाहियां रुक सकती हैं, स्लीपर क्लास हो या ए.सी. डिब्बे, हर जगह सौदेबाजी से सीटें पाने वालों को न रोका जा सकता है.. न लूटपाट, उठाईगीरी, जहरखुरानी रुक सकती है, न पुलिस वालों की धन वसूली की आदतें, न चोरी गए बल्ब, ट्यूबलाइट्स और न, न चलने वाले पंखों को दुरुस्त किया जा सकता है..।
गरमी बेतहाशा थी। बेतहाशा गरमी हो, लू चल रही हो और लू से बचने का दिल्ली हो या कोई भी स्टेशन, आम आदमी पर कोई उपाय न हो तो वह सिवा झल्लाने और रेल विभाग को कोसने के और कर ही क्या सकता है? दिल्ली स्टेशन पर गोमती पकडने के लिए जब मैं आया था तो जलती लाल रंग की रोशनियां बता रही थीं, गाडी दो घंटे देरी से आ रही है, यानी लू और गरमी में दो घंटे प्लेटफार्म पर और भुनना पडेगा। भुनता हुआ आदमी भुनभुनाएगा ही। हजार गालियां रेल विभाग को देता, बुरी तरह झल्लाता, कुढता, सीढियां चढ रहा था। सामान कुछ खास नहीं था, सिर्फ एक बैग था, जिसे कंधे पर लटकाए था।
प्लेटफार्म पर कहीं पांव तक रखने को जगह नहीं थी, बाप रे! इतने लोग हर दिन, हर वक्त कहां जाते रहते हैं? इनके पास और कोई काम नहीं है क्या? बसें तो भरी हुई। हवाई यात्री भी परेशान, टिकटें नहीं! क्या मुसीबत है। अस्पतालों में जगह नहीं, बाजारों में कंधे छिलते हैं। मॉल बन गए तो वहां रईसजादों की रेलपेल..। होटलों-रेस्तराओं तक में पहले से बुक न कराओ तो जगह नहीं मिलती। स्कूल-कालेजों में एडमीशन समस्या है.. सीटें कम, दाखिला चाहने वाले लाखों! बेरोजगारों की भीड, बाप रे बाप.. हर जगह भीड, कहीं चैन नहीं! कहीं पांव रखने की जगह नहीं! क्या होगा इस देश का? इस देश की बेतहाशा-बेलगाम हो रही आबादी का? गेहूं की पैदावार घट रही है। कृषि उपज गिर रही है। जमीन का पानी खत्म हो रहा है। नहरें सूखी पडी हैं। पहाडों के ग्लेशियर खत्म होते जा रहे हैं। नदियां जहरीली हो गई हैं। लौकी-तोरई तक की बेलों में ऑक्सीटोसिन के इंजेक्शन लगाए जा रहे हैं, रात भर में लौकी हाथ भर लंबी कर ली जाती हैं। बाबाजी रोज कहते हैं, लौकी का जूस पिओ! मरोगे क्या? ऑक्सीटोसिन से लंबी की गई लौकी का जूस! कैंसर पाओ, किडनी फेल कराओ!
दूध सिंथैटिक, उसमें यूरिया, वाशिंग पाउडर, सफेदा, वनस्पति घटिया वाला और न जाने क्या-क्या! पिलाओ अपने बच्चों को और मारो बेमौत उन्हें! पूरा देश मानो एक वृद्ध निठारी बना जा रहा है! बच्चियां गर्भ में मार दो, बच जाएं तो कोई न कोई निठारी, फिर भी बदकिस्मती से बच जाएं तो अपहरण करवा दो, मुंबई-कलकत्ता-दिल्ली के चकलाघरों में बेच आओ! दुष्टाएं फिर भी घरों में रह जाएं तो उन्हें कुपोषण से मार दो, मरगिल्ली बना दो! फिर भी बच जाएं तो दहेजलोभियों या शराबियों-व्यभिचारियों को ब्याह दो! वह उन्हें जला कर मार देगा या फिर धंधे में डाल कर घर बैठा मुफ्त की तोडेगा! है कोई इस देश में किसी से कुछ पूछने वाला। सेंसेक्स उछालें ले रहा है। देश विकास कर रहा है। मॉल पर मॉल बने रहे हैं। नई-नई मंहगी कारें बाजार में धडाधड बिक रही हैं। अर्थव्यवस्था ठाठें मार रही हैं। चारों तरफ बूम है, धूम मची हुई है! इंडिया छलांगे रहा है, शाइन कर रहा है। हर कोई नाच-गा रहा है, अखबारों में, टीवी पर, पत्रिकाओं में। एक महानायक के बेटे की नायिका से शादी क्या हुई, टीवी पर सिर्फ वही शादी! किसान आत्महत्याएं कर रहे हैं। मंहगाई की मार से आदमी बिलबिला रहा है। आलू-प्याज तक रोटी खाने को नसीब नहीं हो रहे, और हमारे नेताओं के लिए अर्थव्यवस्था सेंसेक्स की तरह उछालें मार रही है।
कुढता, भुनभुनाता, झल्लाता, झुंझलाता, लगातार गरमी में तपता, लू के थपेडे सहता प्लेटफार्म पर वह जगह तलाश रहा था, जहां थोडी ठंडक मिले, तपन कम हो, चैन मिले। फिर सोचा, पानी लिया जाए, ठंडा मिनरल वाटर! गला तर किया जाए, वरना मुंह सूख चुका है। लेकिन पेशाब लग आया है। है कहीं, जहां..?
किसी का मोबाइल बजा.. मोबाइल में किसी तारिका का कलेजा ये दहक रहा था और वह चीख रही थी- बीडी जलईले करेजवा में बडी आग है। लडके भी कैसी-कैसी ट्यूनें मोबाइलों में फीड कर लेते हैं। करेजवा में तो मेरे भी आग जल रही है पर मैं बीडी या सिगरेट नहीं जला सकता। ठंडे के स्टाल पर पहुंचा? रेल नीर लिया। पता नहीं साला शुद्ध होगा या देश की गंगा-यमुना के पानी की तरह प्रदूषित। किसी पर भरोसा नहीं किया जा सकता। हर जगह पैसा कमाऊ लोग बगुलाभगती कर रहे हैं। मौका मिला कि आप मछली की तरह गडप!
पानी ठंडा था। गटागट, लगभग आधी बोतल उतार गया। बोतल पीने का अभ्यास न होने के कारण कुछ पानी शर्ट और शर्ट की जेब में रखे रुपयों और टिकट पर गिरा। भींग गए होंगे। भींग जाएं! लू में फिर सूख जाएंगे! मैं भी कितना वाहियात आदमी हूं! एकदम बेशऊर! ठीक से पानी भी नहीं पी सकता!
बुक स्टाल पर आ खडा हुआ। अंग्रेजी उपन्यासों पर नजर डाली। फिर पत्रिकाओं पर।
- नमस्ते सर.. नमस्ते! बगल में खडी लडकी की तरफ नजर गई.. पहचाना सर..?.. पहचान लिया, पर नाम याद नहीं.. प्रतिभा सर.. आपने बी.ए. में पढाया था सर.. हिन्दी। .. हां, याद आया.. यहां दिल्ली में कैसे? ..एक इंटरव्यू देने आई थी..। क्या उम्मीद है? नौकरी मिल जाएगी?.. आप तो जानते हैं सर, हर जगह सोर्स-सिफारिश चलती है। फेयर सिलैक्शन कहां होता है? सिफारिश न हो तो कैश या काइंड.. और लडकी के पास तो .. हां वो तो है। नौकरी न मिली तो क्या करोगी? कुछ कर रही हो?.. हां सर। एल.एल.बी. में एडमीशन ले रखा है। फायनल इयर है सर। .. अच्छा है। कभी किसी मुकद्में में फंसा तो काम आओगी तुम! खीसें निपोरने लगा।
- जरूर सर! कोई मर्डर भी कर देंगे तो बचा लूंगी सर!.. मर्डर करना तो चाहता हूँ पर करने की हिम्मत नहीं है। काश! आतंकवादी या नक्सली होता तो. बहुत नाराज हैं क्या आप?.. वह हंसने लगी।.. बहुत! मैं झल्लाया।
- क्या बताएं प्रतिभा! अब यह गाडी देखो.. नाम गोमती! कभी देश की नामी-गिरामी गाडी थी! अब कई साल से कभी टाईम पर नहीं आती! क्यों आए? सुपरफास्ट है तो क्या हुआ? नेता लोगों ने अपनी शताब्दी चला ली! या हैलीकॉप्टर हवाई जहाज से आते-जाते हैं! मरे कम्बख्त पब्लिक! उसकी किसे फिकर है? मैं तो आत्महत्या करने वाले किसानों से कहना चाहूंगा, अरे सुसरों मर तो रहे ही हो! दो-चार हरामियों को मार कर मरो न! कम से कम जनता को कुछ तो सुकून मिले!
- सर आपका तो बहुत परिचय है.. कहीं मेरी कुछ जुगाड फिट करिए।
क्या चाहती हो?.. कहीं पांव टिकाने की जगह सर! एम.ए. अंग्रेजी से किया है। किसी डिग्री कालेज में डेली वेजेज पर रखवा दीजिए..।
- कौन सी डिवीजन है एम.ए.?.. पांच नंबर से फ‌र्स्ट डिवीजन मारी गई सर.. कालेज में खूब नकल की सर.. पर अंतिम पेपर के वक्त यूनिवर्सिटी का उडनदस्ता आ गया! नकल का मैटर फैंकना पडा! अगर टीप लेती तो फ‌र्स्ट आती सर! बेड लक सर!
- नकल करके खुद पास हुई हो, डिग्री क्लासों को पढाओगी कैसे?
.. आजकल पढता-पढाता कौन है सर? आप खुद प्रोफेसर रहे हैं सर.. आपने देखा नहीं है क्या सर?.. क्लासों में कभी कोई पढने आता है? कालेज तो पिकनिक स्पाट है सर.. लडके इश्क लडाने आते हैं और लडकियां अपनी फैशन दिखाने।.. हर किसी पर मोबाइल है, हर किसी पर विक्की या बाइक। कोई न पढना चाहता है, न कोई पढाना चाहता है। बट्टे की तनखा मिलती है सर!
डेली वेजेज पर तुम्हें मिलेगा क्या..? पांच हजार पर दस्तखत कराएंगे, हजार-पन्द्रह सौ देंगे! उसके पीछे घिरी रहोगी दिन भर कालेज में और बेमतलब ही-ही करती डोलोगी स्टाफ के बीच! सुंदर लडकी हो, साला कोई शोहदा पीछे पड गया तो एसिड-वेसिड फेंक देगा चेहरे पर।.. कालेजों में रोज तो कांड होते हैं। गोली चलना मामूली बात है। किसी को कानून का डर तो रह नहीं गया। सब बडे बाप के बेटे हैं, सबकी पहुंच ऊपर तक है! सब तीस मार खां हैं। कहां फंसना चाहती हो? देश-प्रदेश में कहीं कानून-व्यवस्था रह गई है?
- फिर भी सर.. कुछ तो करना ही पडेगा.. लॉ पढ रही हूं। पर घाघ वकील लोग कहते हैं.. वकालत में अब कुछ नहीं रह गया है। बहुत बुरी हालत है कोर्ट-कचहरी की।
किसी की अच्छी हालत है इस देश में?.. बताओ? कभी-कभी तो लगता है कि यह देश बर्बाद हो चुका है! अब तो शायद सब कुछ नष्ट होने के बाद ही भले संभले।..
उसे कोल्ड पिलाने के लिए लिवा ले गया.. जिससे करेजवा की आग कुछ बुझ सके!