दुनिया में रहते हुए अनेक लोगों को कई बार ऐसा लगता है कि किसी बड़ी हस्ती की निकटता प्राप्त हो जाए। कोई दिव्यात्मा हमें स्पर्श कर ले और यदि ऐसा होता है तो कभी-कभी हमें एक नई ऊर्जा प्राप्त होती है। इसे अध्यात्म ने सान्निध्य ऊर्जा कहा है एनर्जी ऑफ प्रॉक्सीमिटी और जब ऐसी ऊर्जा मिले तो उसका उपयोग करना हमें आना चाहिए।
श्री हनुमानजी के जीवन में एक अवसर ऐसा आया था। राजा सुग्रीव के आदेश पर जब वानर चारों दिशाओं में सीताजी की खोज के लिए भेजे गए तो कहते हैं हनुमानजी सबसे पीछे थे। श्रीराम सबको बिदाई दे रहे थे तो लिखा गया है च्च्पाछें पवन तनय सिरु नावा, जानि काज प्रभु निकट बोलावाज्ज जो व्यक्ति सबसे पीछे आया है राम ने उन्हें काम का विचार कर अपने निकट बुलाया। श्रीराम को सीताजी के पास दूत के रूप में भेजने के लिए किसी का तो चयन करना ही था। ये सारी संभावना उन्हें हनुमानजी महाराज में दिख गई। हर बीज वृक्ष नहीं बनता लेकिन चैतन्य लोग उस एक बीज को पकड़ लेते हैं जिसमें वृक्ष बनने की संभावना है।राम चैतन्य थे और हनुमान, बीज में भरी हुई संभावना थे। बात यहीं समाप्त नहीं हुई च्च्परसा सीस सरोरुह पानी। करमुद्रिका दीन्हि जन जानी।।ज्ज अपने हाथों से श्रीरामजी ने हनुमानजी को स्पर्श किया और अंगुठी सौंप दी। यहां हनुमानजी को एक दिव्य सत्ता की निकटता और स्पर्श दोनों मिल गए। इस सान्निध्य ऊर्जा का उपयोग उन्होंने लंका में जाकर किया। हमें यही सीखना है। अच्छे, समझदार सक्षम और बड़े लोगों का साथ मिले ऐसा प्रयास करें किंतु उस संग से जो ऊर्जा मिले उसका भरपूर सद्उपयोग किया जाए। साथ देने के लिए इस समय सर्वाधिक सुलभ देवता हनुमानजी महाराज हैं। वे आपके पास कभी भी आ जाएंगे।
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